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अंतर्वासना के पाठकों को अंश बजाज का प्रणाम। दोस्तो, एक महिला पाठक के आग्रह पर उनकी आपबीती आप तक पहुंचाने का प्रयास किया है।
आजकल के ज़माने में लड़कियों की सेक्सुअल और सोशल लाइफ में किस तरह के उतार चढ़ाव आते हैं, बता रही हैं सरिता शर्मा।
मेरा नाम सरिता शर्मा है, चूंकि यह एक सेक्स साइट है इसलिए अपना नाम बदलकर बता रही हूं। मैं तो यह भी नहीं जानती कि मेरी यह कहानी साइट पर प्रकाशित हो भी पाएगी या नहीं लेकिन बहुत हिम्मत करने के बाद एक कोशिश कर रही हूं बताने की अपनी पहली कहानी।
मैं अपनी उम्र नहीं बताऊंगी लेकिन इतना जरूर कहूंगी कि जवानी में कदम रखते ही ज़िंदगी ने मेरे जज्बातों का जूलूस निकाल कर मुझे अपना असली रूप दिखा दिया।
बात उन दिनों की है जब मैंने बी.ए. की पढ़ाई के बाद दिल्ली में सरकारी नौकरी के लिए कोचिंग लेना शुरु किया था। यूं तो मैं दिल्ली की ही रहने वाली हूं लेकिन मेरे घर से कोचिंग सेंटर काफी दूर पड़ता था। कुछ दिन मैंने मैट्रो में जाकर देखा लेकिन सफर काफी लंबा हो जाता था और मुझे पढ़ने का टाइम मिल ही नहीं पाता था। मैं परेशान होने लगी थी; सुबह शाम का सफर और दिन में कई घंटे की कोचिंग क्लास, पूरा दिन ऐसे ही निकल जाता था। सेहत के साथ-साथ पढ़ाई का नुकसान भी हो रहा था। घर वाले मेरी हालत जानते थे, लेकिन लड़की हूं, इसलिए घर से आने-जाने के अलावा कोई चारा था ही नहीं।
पापा ने तो एक बार कहा था कि अगर ज्यादा परेशानी हो रही है तो वहीं पर कहीं पी.जी. लेकर रह ले, लेकिन माँ को यह बात मंज़ूर नहीं थी। मैं भी अच्छी तरह जानती थी कि माँ मुझे इस तरह शहर में अकेले नहीं रहने देगी। इसलिए मैं भी जैसे तैसे करके अपनी पढ़ाई करने में लगी हुई थी। महीने भर के बाद कमज़ोरी के कारण मेरी तबीयत खराब होने लगी। फीस भी भर दी थी और कोचिंग बीच में छोड़ने का कोई तुक नहीं था। न तो पढ़ाई ही छोड़ी जा सकती थी और न ही घर।
महीने भर में मेरी दोस्ती मेरी क्लास की फ्रेंड शिखा (बदला हुआ नाम) से हो गई। शिखा हरियाणा के झज्जर की रहने वाली थी; वो यहां पर रूम लेकर पढ़ाई कर रही थी। उसने मुझसे कहा कि तुम यहां से हरियाणा रोडवेज की बस लेकर जाया करो, वो काफी तेज़ चलती है और कुछ चुनिंदा स्टॉप पर ही रुकती है।
शिखा की बात मानकर मैंने बस से आना जाना शुरू किया; और उसकी बात काफी हद तक सही भी थी, दिल्ली की लचर लटक धीमी डीटीसी बसों में सफर करने की बजाय हरियाणा रोडवेज का सफर काफी आरामदायक लगा और टाइम भी कम लगता था।
मुझे रोज़ की परेशानी से थोड़ी राहत मिली। दिन गुज़रते गए और देखते ही देखते 2 महीने बीत गए। कोर्स 5 महीने का था; कोचिंग का टाइम फिक्स था और साथ ही बस का भी। मुझे सुबह शाम वही दो बसें मिलती थीं और वो हमेशा उसी टाइम पर छोड़ती थीं। अब तो बस का कंडक्टर भी मुझे पहचानने लगा था।
जुलाई का महीना आया और दिल्ली में मॉनसून के बादलों ने आंख-मिचौली खेलना शुरु कर दिया। कभी दिन में घनघोर अंधेरा छा जाता था तो कभी सुबह भीगी हुई मिलती थी। मौसम काफी सुहाना रहने लगा। मैं भी दिल्ली के माहौल में घुल-मिलने लगी थी।
शिखा काफी टाइम से यहां पर रह रही थी इसलिए उसने मुझे यहां के ढर्रे में पूरी तरह से ढाल दिया। मैं भी वहां की चहल पहल में रम गई। छुट्टी वाले दिन भी घर से बहाना बना कर शिखा के पास चली जाती और हम दोनों दिल्ली में खूब मस्ती करते; कभी चांदनी चौक की चाट खाने निकल जाते तो कभी मूवी।
एक दिन की बात है जब कोचिंग क्लास के बाद ज़ोरदार बारिश शुरु हो गई। कोचिंग सेंटर से निकले तो सड़क पर बारिश के पानी ने तालाब बना दिया था। दिल्ली में इस तरह की समस्या आम तौर पर रहती है। बारिश ज़ोरदार थी और जहां तक भी नज़र जा रही थी पूरी सड़क पर जाम ही जाम दिखाई दे रहा था।
शिखा और मैंने कुछ देर तक बारिश के थमने का इंतज़ार किया लेकिन बारिश कम होने की बजाय और तेज होती जा रही थी। कोचिंग सेंटर के सामने पानी का सैलाब उमड़ने लगा। सब लोग यहां वहां ऊंची जगहों पर खड़े हुए भीगने से बचने की कोशिश में झुंड बनाकर खड़े हुए थे।
शिखा ने कहा- आज तो फंस गई सरिता तू! मैंने कहा- कमीनी, शुभ-शुभ बोल! बारिश रुकने की तो बात कर नहीं रही है और उल्टा मुझे यहां फंसाना चाहती है! तू तो यहीं पर अपने रूम में जाकर घुस जाएगी लेकिन मेरा क्या होगा? शिखा ने कहा- अरे यार… मैं भी कितनी पागल हूं! अब तक तो हम सेफ जगह पर पहुंच चुके होते… तेरे साथ रहकर मेरे दिमाग में भी भूसा भर गया है! कहते हुए शिखा ने फोन निकाला और एक कॉल लगाई।
मैंने पूछा- किसको फोन किया है? उसने कहा- पता चल जाएगा तुझे, देखती जा!
5 मिनट बाद ही शिखा के फोन पर रिंग बजी और उसने पास ही की एक दुकान का नाम लिया। फोन काटकर उसने मेरा हाथ पकड़ा और बोली- चल, हमारी सवारी आ गई है! मैंने कहा- लेकिन?
मेरी बात पूरी होने से पहले ही उसने मुझे खींचा और अपने साथ दौड़ाते हुए भागने लगी। 2 मिनट में हम पास की एक मिठाई की दुकान के पास पहुंच गए जिसका छज्जा काफी बड़ा था; वहां पर भीड़ भी कम थी।
शिखा ने यहां वहां देखा और फिर एक लाल रंग की बाइक वाले लड़के को देखकर हाथ हिलाया। उसने मुंह पर रुमाल बांधा हुआ था। वो बाइक घुमाकर हमारे पास आ गया। शिखा ने कहा- चल बैठ जल्दी, नहीं तो भीग जाएंगे। मैंने कहा- लेकिन? वो बोली- तू लेकिन लेकिन बहुत करती है। जल्दी से बैठ नहीं तो सारी बुक्स भीग जाएंगी! मैंने कहा- पहले तू बैठ, मैं पीछे बैठ जाऊंगी। उसने माथे पर हाथ मारते हुए कहा- ठीक है मेरी मां। मैं ही बैठ जाती हूं पहले!
कह कर वो बाइक पर दोनों तरफ टांगे करके उस लड़के के पीछे बैठ गई; मैं भी शिखा के पीछे बैठ गई। लड़के ने पूछा- चलें? शिखा के हां करते ही लड़के ने बाइक की रेस दे दी घर्रर… घर्रर्र… की तेज़ आवाज के साथ और हम बारिश की बूंदों को चीरते हुए गलियों के बीच से कट मारते हुए एक गली के पिछवाड़े में घुस गए। पीछे की तरफ से गली काफी संकरी थी। देखने से साफ पता चल रहा था कि हम गली की बैक साइड में हैं और फ्लैट्स का मेन गेट दूसरी तरफ है। गली के बीचों बीच जाकर बाइक रुकी और शिखा ने मुझे उतरने के लिए कहा. हम दोनों एक-एक करके बाइक से उतरे और लड़के ने बाइक साइड में लगा दी।
बाइक को एक तरफ लगाकर लड़के ने अपनी जींस की पैंट से चाबी निकाल कर शिखा के हाथ में थमा दी। शिखा चाबी लेकर जल्दी से सामने वाले फ्लैट के लोहे के दरवाज़े के पास जाकर दरवाज़े में चाबी लगाने लगी। मैं वहीं छोटे से छज्जे के नीचे दोनों के बैग लिए खड़ी थी।
लड़के ने अपने मुंह पर बंधा रुमाल खोल दिया; रुमाल खोलते ही मैंने एक नज़र भर उसको देखा; मेरी नज़र ना चाहते हुए भी उसके चेहरे पर रुकना चाहती थी; काफी हैंडसम लड़का था; भीगे रुमाल को झटकाते हुए वो अपने चेहरे से पानी की बूंदे पौंछने लगा, उसके गहरे काले रंग के बाल भी बारिश में गीले हो चुके थे और बाइक पर तेज़ हवा लगने के कारण माथे पर बिखर गए थे।
लड़के ने अपने बालों में हाथ मार कर उनको सेट किया और ऐसा करते हुए उसकी नज़र मुझ पर पड़ गई। मैंने अपनी नज़र नीचे झुका ली और यहां वहां देखने लगी।
इतने में शिखा ने दरवाज़ा खोल लिया और आवाज़ लगाई; लड़का फटाक से अंदर घुस गया और पीछे पीछे मैं भी घुस गई। हम तीनों ही भीग चुके थे लेकिन लड़के की नीली जींस जांघों तक गीली हो गई थी और उसकी सफेद शर्ट के अंदर पहना हुआ बनियान भी अलग से उभर कर दिखाई दे रहा था।
शिखा ने बैग मेरे हाथ से लेकर पास ही रखी कुर्सियों पर पटक दिए और अपने गीले बालों को झटकने लगी। लड़के ने दीवार में बनी अलमारी खोलकर टॉवल शिखा की तरफ फेंक दिया।
वैसे तो गर्मियों के दिन थे लेकिन कपड़े भीगे होने के कारण हल्की सी कंपकंपी भी बंध गई थी। शिखा ने लड़के का परिचय करवाते हुए कहा- सरिता, ये सतेंद्र है मेरा दोस्त! सतेंद्र ने मुझसे ‘हैल्लो’ कहते हुए बैठने के लिए इशारा किया। मैं कुर्सी पर बैठ गई।
वो दो रूम का फ्लैट था जिसमें दोनों रूम साथ में सटाकर बनाए गए थे। हॉल में ही एक तरफ स्लैब डाल कर किचन बनाया गया था। अलमारी से कपड़े निकाल कर लड़का सामने वाले रूम का दरवाज़ा खोल कर अंदर घुस गया। मैंने फुसफुसाते हुए शिखा से पूछा- ये किसके रूम पर ले आई है तू मुझे? “तू टेंशन मत ले, अपना ही रूम है। ये जॉब करता है, पहले मेरे साथ ही क्लास जाता था लेकिन इसका सिलेबस पूरा हो गया इसलिए अब कोचिंग नहीं जाता, बस यहीं पर रहकर मज़े कर रहा है!”
शिखा ने कहा- तू भी घर पर फोन कर के बोल दे कि बारिश में फंसी हुई हूं, आज नहीं आ पाऊँगी, यहीं पर क्लास की लड़की के साथ रुकी हुई हूं! मैंने कहा- पागल है क्या..! कमीनी मरवाएगी मुझे! अगर माँ-पापा को ये पता चल गया कि मैं यहां पर किसी लड़के के रूम पर रुकी हुई हूं तो कोचिंग तो दूर मेरा घर से निकलना बंद कर देंगे! शिखा बोली- रहेगी तू डफर ही.. मैंने ये कब कहा कि तू लड़के के रूम के बारे में बता, बस इतना बोल दे कि एक लड़की के साथ यहीं पीजी पर रुक गई हूं। मैंने कहा- तू मेरी चिंता मत कर, मैं बारिश रुकने के बाद चली जाऊंगी, लेकिन अगर तेरी ये ऊट-पटांग बात मानी तो मेरा घर से निकलना बंद ही समझ तू! वो बोली- तेरी मर्जी, मैं तो तेरे भले के लिए कह रही थी।
कहते हुए उसने अलमारी खोली और एक टी-शर्ट और लोअर निकालकर मेरे सामने डली हुई फोल्डिंग चारपाई पर पटक दी। उसने एक जोड़ी और निकाली और जिस कमरे में सतेंद्र गया था उससे दूसरे वाले कमरे में घुस गई।
पांच मिनट के अंदर वो कपड़े बदल कर बाहर आ गई, मेरी तरफ देखकर डांटती हुई बोली- अब तेरे कपड़े भी मैं ही उतरवाऊँगी क्या… बेवकूफ कहीं की! अब तक चेंज क्यों नहीं किया, सर्दी लग जाएगी। कहते हुए शिखा ने मेरा हाथ पकड़ा और टी-शर्ट तथा लोअर के साथ मुझे साथ वाले कमरे में धकेल दिया।
जब तक मैं कपड़े बदल कर बाहर आई, शिखा किचन में खड़ी हुई चाय छान रही थी, उसने कांच के तीन ग्लासों में चाय डाली और एक मेरे हाथ में थमा दिया। मैं वहीं कुर्सी पर बैठकर चाय पीने लगी और वो सतेंद्र वाले कमरे में बिना दरवाज़ा खटखटाए ही घुस गई।
मैंने सोचा- बड़ी बेशर्म लड़की है ये… कम से कम दरवाज़ा तो नॉक कर लेती।
खैर, मैं चाय पीते हुए यहां वहां देखने लगी। साथ में ही स्टडी टेबल पर कुछ किताबें रखी हुई थीं। जिनको काफी टाइम से नहीं छुए जाने के कारण उन पर जमी हुई धूल अलग से दिखाई दे रही थी। मेरी चाय 3-4 मिनट में खत्म हो गई।
मैंने खिड़की से बाहर झांका तो बारिश अभी भी तेज़ थी। खिड़की वापस बंद करते हुए मैं फोल्डिंग पर आकर लेट गई; मैं मन ही मन शिखा को कोस रही थी कि आज ये मुझे मरवाएगी। इससे अच्छा तो मैं घर ही चली जाती।
मैंने अपने गीले कपड़ों की तरफ देखा तो सोचा कि क्यों न तब इनको ड्रायर में सुखा ही लूं क्योंकि कपड़े चेंज करते वक्त मैंने साथ वाले कमरे के वॉशरूम में वॉशिंग मशीन रखी हुई देखी थी। मैं कपड़े लेकर गई और 5 मिनट में सुखा कर बाहर आ गई; फैन ऑन किया और फिर से चेयर पर बैठ गई।
अब मुझे गुस्सा आने लगा था कि ये शिखा अंदर कर क्या रही है। तभी कमरे के अंदर से कांच का ग्लास गिरने की हल्की सी आवाज़ मेरे कानों में पड़ी। उत्सुक होकर मैंने चाबी वाले छेद से अंदर झांका तो दिल की धड़कन तेज़ हो गई।
सतेंद्र सामने फर्श पर बिछे गद्दे पर दीवार के सहारे कमर लगाकर लेटा हुआ था और शिखा उसकी बाहों में लिपटी हुई उसके होठों को चूस रही थी। सतेंद्र की टांगें गद्दे से नीचे आकर फर्श पर इधर उधर हिल डुल रही थीं और साथ में ही कांच का ग्लास फर्श पर लुढ़का हुआ था।
मैं चुपके से वापस आकर चेयर पर बैठ गई; दिल धक-धक कर रहा था, लेकिन पता नहीं क्यों मेरा मन किया कि एक बार फिर से जाकर इस सीन को देखूं। मैं दोबारा से चाबी वाले छेद पर आंख लगाकर झांकने लगी।
सतेंद्र शिखा के नितम्बों को अपने हाथों से दबाता हुआ उसके होठों को चूस रहा था। सतेंद्र ने अब अपने हाथ शिखा की लोअर के अंदर डाले और उसके नितम्बों को अच्छी तरह से दबाने लगा। मेरी नज़र वहीं पर बंध गई। शिखा ने सतेंद्र की टी-शर्ट को निकलवा दिया और उसकी चौड़ी छाती पर किस करने लगी। सतेंद्र नीचे से शिखा के चूचों को दबा रहा था। उसने शिखा की टी-शर्ट भी निकलवा दी और उसकी चूचियों को नंगा करवा दिया।
शिखा के चूचे हवा में झूलते ही सतेंद्र ने उनको अपने दोनों हाथों में थाम लिया और उनको दबाने लगा। शिखा उसके बालों में हाथ फेरती हुई चूचों के निप्पलों को उसके मुंह तक ले गई। सतेंद्र ने जीभ निकाली और चूचों पर फेरते हुए निप्पलों को मुंह में भर कर शिखा की नंगी कमर पर हाथ फिराते हुए चूचों को चूसने लगा।
शिखा के मुंह से हल्का सीत्कार होने लगा और उसने दोबारा से सतेंद्र के होठों को चूसना शुरु कर दिया। होठों से नीचे वो सतेंद्र की गर्दन पर चूमने-चाटने लगी, उसकी मर्दाना चौड़ी छाती के बीच से किस करते हुए उसकी नाभि को किस करने लगी।
सतेंद्र ने शिखा को अपने हाथों से नीचे धकेलने का प्रयास करते हुए अपनी लोअर में तने डंडे पर शिखा का मुंह रखवा दिया और उस डंडे को शिखा ने ऊपर से ही चूमना चाटना शुरु कर दिया। अगले ही पल सतेंद्र ने हल्का सा ऊपर उठकर लोअर को नीचे सरकाया और अपने तने हुए लिंग पर शिखा का मुंह रखवाते हुए लिंग को उसके मुंह में दे दिया।
शिखा उस पर ऊपर नीचे मुंह चलाती हुई लिंग-चूसन करने लगी। सतेंद्र के हाथ शिखा के सिर पर कस गए और उसने शिखा के सिर को ज़ोर-ज़ोर से अपने लिंग पर ऊपर-नीचे चलाना शुरु कर दिया। 2 मिनट तक यही चलता रहा, फिर अचानक सतेंद्र ने शिखा को एक तरफ पटका और उसकी लोअर निकाल कर एक तरफ डाल दी। शिखा की नंगी टांगों को अपने हाथों से चौड़ा करते सतेंद्र ने अपने एक हाथ से लिंग को शिखा की टांगों के बीच में सेट किया और उस पर दबाव बनाते हुए शिखा की चूचियों पर अपनी छाती सटाते हुए लेट गया।
लेटते ही शिखा के मुंह से सिसकारियां निकलना शुरु हो गईं और उसके हाथ सतेंद्र की कमर पर लिपट गए। शिखा की योनि में लिंग को डालकर सतेंद्र ने उसके होठों को फिर से चूसना चालू किया और शिखा सतेंद्र के नितम्बों को दबाते हुए अपनी योनि में उसके लिंग को एडजस्ट करवाने लगी।
कुछ पल में ही वापस उठते हुए सतेंद्र अपने दोनों हाथ शिखा के चूचों के अगल बगल में रखते हुए उसकी योनि में लिंग को अंदर बाहर करने लगा।
उंह्ह्ह… इस्स्स्स आईईईई… अम्म्म्म… की आवाजें शिखा के आनंद को बता रही थीं जबकि आहह्ह्ह… उह्ह… ऊह्ह्ह… आह्ह्ह के सीत्कार सतेंद्र की हवस को! दोनों ही तरह की कामुक ध्वनियाँ मुझे साफ साफ सुनाई देने लगी।
सतेंद्र की स्पीड तेज़ हुई और साथ ही शिखा के सीत्कार भी। सतेंद्र ने शिखा के मुंह पर हाथ रखा और पूरे ज़ोर से उसकी योनि का चोदन करने लगा। शिखा सतेंद्र के हाथ के नीचे ही उम्म्ह… अहह… हय… याह… .ऊंह्ह्ह कर रही थी।
3-4 मिनट तक सतेंद्र ने शिखा को दबाकर रगड़ा और अचानक उसकी स्पीड कम होकर थम गई और वो दूसरी तरफ गद्दे पर गिर गया।
उनकी यह काम-क्रीड़ा देखकर मेरे तन-बदन में आग सी लग गई थी; मेरी हालत खराब हो रही थी और मैं माथे का पसीना पोंछते हुए वापस चेयर पर जा बैठी; मेरे पैर कांप रहे थे।
हिंदी चोदन कहानी अगले भाग में जारी रहेगी. [email protected]
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