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इस कहानी के पिछले भाग में अब तक आपने पढ़ा कि आंटी यानि तनु की मम्मी ने अपनी आपबीती कहानी मुझे सुनाई और बताया कि कैसे उनके साथ जब वो गर्भ से थी, गलत काम हुआ, उस गलत काम से हुई मानसिक पीड़ा का असर उनके गर्भ में पल रही छोटी के दिमाग पर भी जरूर हुआ होगा.
और फिर बड़ी गंभीरता से मेरी ओर देखा और कहा- संदीप, मेरी जिन्दगी में छोटी से जुड़ी यही एक ऐसी घटना थी जिसे मैं तुम्हें बताना चाहती थी,इसके अलावा मेरा जीवन सामान्य ही रहा है, मेरे विवाहित जीवन में और बताने लायक कुछ नहीं है. अब तुम ही बताओ कि छोटी को कैसे ठीक किया जाये क्योंकि अपनी दोनों बेटियों के अच्छे या बुरे के लिए मैं स्वयं को जिम्मेदार समझती हूं।
अभी तक मैं आंटी की कहानी सुन रहा था, उनकी कहानी कामुक थी, या वेदना से भरी ये आप पाठक गण तय कीजिए। और हाँ.. आप लोगों को मैं पुनः बता दूं कि आंटी ने इतने खुले शब्दों का प्रयोग नहीं किया था जितने नग्न शब्दों का प्रयोग मैंने किया था. उन्होंने सांकेतिक शब्दों में अपनी बात कही थी। लेकिन आंटी ने अपने साथ उस दिन हुए दुष्कर्म की बात और ज्यादा विस्तार से मुझे बताई थी, जिसे मैंने सिर्फ एक पंक्ति में अप पाठकों का समझा दिया. आपने अनुमान लगा ही लिया होगा कि उस दिन आंटी के साथ क्या हुआ था.
अब उनकी आपबीती कहानी के खत्म होते होते शाम होने लगी थी और उनके सवाल छोटे किंतु गंभीर थे। इसलिए मैं बिना कुछ कहे उठ कर चला आया, ये सोचकर कि सही जवाब सही समय पर दूंगा। और छोटी के इलाज का उपाय सोचने लगा, साथ ही दुनिया के बारे में भी सोचने लगा कि दरिंदगी की हदें पार करने में भी लोग पीछे नहीं रहते।
सेक्स भी क्या अजीब चीज है ना.. कुंती ने खुशी से किया तो उसे मजे ही मजे मिले.. और आंटी के साथ जबरदस्ती हुई तो पूरी जिन्दगी बिखर गई। जब कुंती और आंटी की कहानी मेरे सामने आई तो मुझे कविता और छोटी की कहानी के भी सहज दर्शन हो आये।
अब मैंने आंटी को ज्यादा छेड़ना बंद कर दिया, यह सोच लिया कि जब उनकी तरफ से कोई हरी झंडी मिलेगी तब आगे की बात सोची जायेगी। अब वो भी बहुत खुश रहने लगी, या कहा जाये हमारे बीच औपचारिकताओं का सिलसिला खत्म सा हो गया। अब मैं जब भी जाता था तब आंटी कुछ भी करते रहती थी उसमें उसका हांथ बटाने लगता था, और छोटी की मालिश और छोटी के अन्य कामों को आंटी ने अब खुद सम्हाल लिया था, मैं अगर कभी उस वक्त पर पहुंच जाता तो साथ दे देता था, वरना वो अकेले ही कर लेती थी।
हमारी मालिश वाले उपाय, अच्छे खानपान और ज्यादा अच्छे रख रखाव की वजह से छोटी में काफी सुधार हुआ था, पर यह सुधार केवल शारीरिक रूप में था, उसकी मानसिक स्थिति में भी बदलाव आया था पर वो संतुष्टि के लायक नहीं था, आखिर में दुष्कर्म पीड़िता के दर्द का अनुमान लगा पाना भी संभव नहीं है। मैं तो बस हवा में तीर चला रहा था, जाने कौन सा तीर निशाने पर जा बैठे।
छोटी को लाईव सेक्स चिकित्सा दिये हुए बीस दिन गुजर गये थे, अब हमने उसे दूसरी बार वो चिकित्सा देने का दिन तय किया, और तनु को सेक्स के लिए तैयार होकर, सोमवार को आने के लिए कहा, उसने भी हाँ कहा, पर अचानक एक घटना हो गई। उसके पति के चाचा जी का देहांत रविवार को ही हो गया, और वो अचानक ही पैतृक गांव चले गये, और वहीं से फोन करके बताया, कि तेरहवीं और पगड़ी रस्म और मेहमानों का आना जाना, ये सब करके वो कम से कम बीस दिन गांव में ही रहेगी। उसके पति दुकान के कारण बीच में आयेंगे पर दो चार दिन में उनका आना जाना लगा रहेगा और उसका आ पाना तो संभव ही नहीं है।
अब ऐसी स्थिति में मैं कुछ कह भी नहीं सकता था, बीस दिन ऐसे भी हो चुके थे और बीस दिन और मतलब डेढ़ महीने का इंतजार मेरे लिए बहुत भारी पड़ने वाला था क्योंकि मुझे अपने हाथ ऐसा जैकपाट लगा था जिससे मुझे हफ्ते में एक या दो बार संभोग का आनन्द तो मिलना ही था। और अब मैं उस परिवार के साथ दिल से जुड़ चुका था इसलिए भी मुझे छोटी के इलाज में देरी अच्छी नहीं लग रही थी।
अब मैंने दिमाग लगा कर इस समस्या का हल ढूंढ लिया, जी हाँ… आप सभी सही समझ रहे हैं। मेरे दिमाग में बात आई कि क्यूँ ना सुमित्रा देवी यानि की आंटी जी के साथ ये सब किया जाये। पर मैंने दुबारा सोचा कि बेटा संदीप तुमने थो यह उपाय एक बार करने की कोशिश की थी तब तो कुछ कर नहीं पाये थे, और अब क्या उखाड़ लोगे।
फिर भी दिल ने कहा कि कोशिश करने में क्या जाता है, और ऐसे भी शुरुआती मुलाकातों और लंबे समय के मेलजोल वाले रिश्तों में काफी अंतर आ जाता है। दूसरे दिन मैं खुशी और आत्मविश्वास से लबरेज होकर उनके यहाँ पहुंच गया।
चूंकि अब हमारा संबंध मजाकिया भी हो गया था, इसलिए घर के अंदर पहुंचते ही आंटी ने मुंह से चू चचचू चचू बजाया जैसे हम चिड़ियों जैसी आवाज निकालते हैं और कहा- कविता (तनु) से बात तो हो ही गई होगी। अब तुम्हारे ये बीस दिन जाने कैसे गुजरेंगे। तनु ने वहाँ जाने और ना आ पाने वाली बात आंटी को भी फोन पर बताई होगी।
मैंने बड़े ही विश्वास के साथ कहा- ये बीस दिन मुझे नहीं, बल्कि आपको भारी पड़ने वाले हैं, क्योंकि लाईव शो देखने का मजा तो आपके हाथ से चला गया ना! तब उन्होंने मजाक में ही सही हँसते हुए एक गंभीर बात कह दी- बच्चू तड़पोगे तो तुम ही… क्योंकि हमें तो अब विरह सहने की आदत पड़ चुकी है।
उफ्फ… उनके एक शब्द ने मुझे हिला कर रख दिया, मैंने मुंह बनाया और हताशा की मुद्रा में कहा- ठीक है मैं चलता हूं, मैं तो आपसे कुछ बात करने आया था, पर आप हो कि ऐसी बातें करके हमारी बोलती ही बंद कर देती हो। तब उन्होंने कहा- अच्छा बाबा, अब माफ भी कर दो.. अब तुम क्या कहने आये थे वो तो कहो? और आज तुम नहीं रुकोगे तो मैं दिन भर चाय भी नहीं पी पाऊंगी। मैंने थोड़ा चिढ़ते हुए कहा- यार, अब मेरे रुकने से चाय का क्या संबंध है? तब उन्होंने कहा- आपको पता भी है हम पहले चाय पीते ही नहीं थे.. पर जबसे यहाँ आये हैं सिर्फ आपके लिए चाय पीना शुरू किया है, आपके लिए चाय जब भी बनती है एक दो या तीन बार हम भी उतनी बार आपका साथ देते हैं। और आपने हमें कितने ही दिन बिना चाय पिलाए रखा। और हाँ.. मर्दों को तो हर बात मुंह से ही सुननी होती है, और हम औरतों की हसरत होती है कि कोई हमें बिना कहे भी समझे।
बात यह छोटी सी थी, पर भावना इसमें बहुत बड़ी छुपी थी, मैंने भी मन ही मन उनकी भावना को नमन किया, क्योंकि धन्यवाद या आभार जैसे शब्द बहुत ही छोटे लग रहे थे। मैंने मुस्कुरा कर कहा- आगे से हम ध्यान रखेंगे, चलिए चाय बनाइए, फिर हम जो कहने आये थे वो भी कहेंगे। उन्होंने ‘ये हुई ना बात’ कहा और चाय बनाने चले गई।
हमने हमेशा की तरह आमने सामने बैठ कर चाय पी, पर आज चाय का मजा ही कुछ और आ रहा था। मैंने यहां आने से पहले अपने अंदर जो विश्वास महसूस किया था, पता नहीं अब कहाँ फुर्र हो गया, मैंने सामान्य स्वर में कहा- अब छोटी के इलाज में देर होगी, हमें उसे लाईव संभोग नियमित अंतराल में दिखाना था, पर ऐसे कभी कभार वाले इलाज का कुछ खास फर्क नहीं पड़ने वाला है। आंटी ने ‘हम्म्म… पर हम कर भी क्या सकते हैं.’ कहते हुए चुप्पी साध ली।
तब मैंने फिर थोड़ा झिझकते हुए कहा- मेरे पास एक उपाय है, मगर उसके लिए आपकी सहमति जरूरी है। यह कहते हुए मेरी जुबान लड़खड़ा सी गई। तब फिर आंटी ने कहा.. तुम पहले उपाय तो बताओ. फिर सोचेंगे की हाँ कहें या नहीं!
फिर मैंने एक आंख दबा कर बहुत डरपोक बच्चे की तरह कहा- अगर तनु नहीं है तो आप और मैं छोटी के सामने सम्भोग… बस इतना ही कह कर रुक गया।
फिर आंटी हंस पड़ी.. और कहा- बस इतनी सी बात के लिए इतना डर रहे थे, इतनी बड़ी बड़ी बात करने वाला संदीप डरता भी है। तब मैंने कड़े स्वर में कहा- मैं नहीं डरता और पहले भी तो मैंने आपको इस बात के लिए सीधे सीधे कहा था, तब तो नहीं डरा था। आंटी ने कहा- तो अब क्यों डर रहे हो बच्चू? मैं कुछ ना कह सका क्योंकि डरने का कारण मैं उन्हें नहीं बता सकता था, पर आप लोगों को बता सकता हूं।
पहले मुझे यह डर नहीं था कि आंटी मुझे अच्छा समझेगी या गलत, अगर उस समय उनसे मेरा संबंध खराब हो भी जाता तो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता, पर अब अगर वो थोड़ी भी नाराज हो गई तो मैं बेचैन हो जाऊंगा, और जिस बात के लिए वो मना कर चुकी हो, उसी बात के लिए उन्हें बार बार कहना भी तो गलत है। भले ही मुझे लगा हो कि वो राजी हैं पर ये सिर्फ मेरा वहम भी तो हो सकता था।
फिर मैंने हिम्मत दिखाते हुए कहा- आप मेरी बात पर इतना खुश हो रही हो, इसका मतलब आप तैयार हो ना? तो उन्होंने साफ कहा- मैंने ऐसा कब कहा? मेरे कहने का मतलब था कि मैं हाँ कहूं या नहीं… कम से कम तुम्हें खुलकर कहना तो चाहिए, एक अधेड़ उम्र की औरत को प्रणय निवेदन कर रहे हो और मर्दानगी नहीं दिखाओगे तो वह ऐसे ही कैसे मान जायेगी। मैं राजी नहीं हूं, मुझे तुम्हारी बात बिल्कुल मंजूर नहीं।
अब तक मेरे अंदर भी जोश आ गया था, मैं आंटी के सामने खड़ा हो गया और उसे भी अपने सामने खड़ा करके उसके दोनों कंधों को मजबूती से पकड़ा और कहा- देखो सुमित्रा देवी, अच्छे मौके बार बार नहीं आते, हमारे मिलन से छोटी का इलाज और हम दोनों की संतुष्टि बहुत आसानी से हो सकता है, छोटी कुछ जानने समझने के लायक नहीं है, और तनु को हम कभी पता नहीं चलने देंगे, हमें सिर्फ छोटी ही देखेगी, और ऐसे भी जो होगा रहा है वो सब उसी के लिए तो हो रहा है, और फिर इस चारदीवारी के भीतर की बात बाहर नहीं जायेगी तो बदनामी का कैसा डर? और फिर कब तक अपने अंदर की औरत को धोखा देते रहोगी। आगे आपकी मर्जी आप जो चाहो करो, अगर हाँ या नहीं जो कहना हो आप खुद ही कहना, पर आज के बाद मैं आपको इस विषय में दुबारा कुछ नहीं कहूंगा।
इतना कह कर मैं थोड़े दिखावे के गुस्से में लाल पीला होते हुए लौट आया।
कहानी जारी रहेगी. अपनी राय आप मेरे इन ईमेल पते पर भेज सकते हैं. [email protected] [email protected]
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