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अन्तर्वासना हिंदी सेक्स स्टोरीज डॉट काम पर मेरी पहली कहानी मेरी पहली बार गांड चुदाई प्रकाशित होने पर मुझे काफी सारे प्रोत्साहित करने वाले ईमेल मिले। मुझे अपने विचार भेजने के लिए मैं उन सभी पाठकों का धन्यवाद करता हूँ. कई लोग तो मुझे चोदने को लालायित लगे, लगता है, कि उन का लंड एक बार को तो जरूर मेरे लिए झड़ा होगा। आज मैं अपनी दूसरी कहानी जिसके बारे में पहली कहानी में संकेत किया था, लिख रहा हूँ, आशा है आप सभी को पढ़ कर और मजा आयेगा।
जैसा कि पहले लिखा जा चुका है कि मेरी पहली काम क्रिया को यानि मेरी गांड चुदाई होते हमारे पड़ोसी मिश्रा जी ने देख लिया था जो कि वरांडे में चहल कदमी कर रहे थे और कुटिल मुस्कान से मुझे ग्रीट किया था। मैंने भी मुस्कुरा कर उनका हौसला बढ़ाया था।
भ्राता श्री के साथ मजे मार मार कर मैं अनुभवी हो चुका था, उन से एक हफ्ते ट्यूशन का कमाल था कि मेरी निप्पल और गांड के उभार कुछ और निखर आए थे। और इस काम में आए मजे को फिर लूटने की दिली तमन्ना के कारण किसी भी चीज में मन नहीं लग रहा था और मैं बेचैन होने लगा।
हस्तमैथुन की सारी तकनीकें जो मैंने अभी तक उपयोग की थीं, इस आनन्द की समानता नहीं कर पा रही थी। फिर जब मेरी वासना का ज्वार हद से ज्यादा हो गया, मैंने मिश्रा जी को ट्राई करने का मन बना लिया।
उस दिन शनिवार था, सप्ताहांत का पहला दिन, इंस्टीट्यूट बंद रहता था लेकिन हम रिसर्च स्टूडेंट्स अपने काम से जाया करते थे। उस दिन संयोग से मेरे पास कुछ खास काम नहीं था तो मैं भी देर तक सोता रहा था। लगभग 11 बजे के करीब जब मैं कॉमन बाथ रूम की तरफ अपने नंगे बदन पर खाली तौलिया लपेटे पहुंचा तो वहाँ मिश्रा जी कपड़े धो रहे थे और वे भी केवल तौलिया लपेटे थे।
उन्हें नंगे बदन देख कर मुझ पर वासना हावी होने लगी, मैंने उन को हाय बोल कर एक वाशरूम में घुसते हुये अपना तौलिया इस तरह से उतारा कि दरवाजा बंद करने के पहले ही मेरे सुडौल नितंबों की झलक मिश्रा जी को दीवाना कर गई। उन का देहाती लंड मेरी हसीन गांड को भोगने को लालायित होकर सलाम करने लगा।
मिश्रा जी तुरंत मेरे वाले बाथरूम में डोर को धक्का मार कर घुस आए और एक हाथ से मेरी कमर पकड़ कर दूसरे हाथ से कुंडी लगा दी। मैं उनकी इस हरकत का स्वयं ही इंतजार कर रहा था, लिहाजा धीरे से फुसफुसाया- यार मिश्रा, क्या कर रहे हो? किसी ने देख लिया तो बेकार में हाला हो जायेगा?
वे बोले- बेटा, आज़ शनिवार है, लगभग सारा हॉस्टल खाली है, आज़ का मिला यह मौका मैं अब नहीं छोड़ने वाला, बहुत तरसाया है सिंह साहिब आपने मुझे।
इस के साथ ही मुझे किसी कमसिन कन्या की भांति जकड़ कर मेरे निप्पल मसलने लगे, उन का लंड मेरे नितंबों के भीतर घुसने का असफल प्रयास कर रहा था। मैंने कहा- यार, खड़े खड़े ही मेरी गांड मारने की कोशिश मत करो, आपका बहुत तगड़ा औज़ार है मैं तो इस पर देखते ही मर मिटा हूँ, रात में प्यार से कमरे में करेगें। वैसे भी ब्लू फिल्म की तरह या सेक्सी कहानियों की भांति लंड गांड के छेद पर रख कर धक्का लगाते ही अंदर नहीं चला जाता है, इस के लिए काफी अभ्यास की जरूरत होती है। पता नहीं आप ने किसी की मारी भी है या नहीं।
वे बोले- यार, कई बार कोशिश की मैंने अपने गाँव में अरहर के खेतों में, पर कभी सफलता नहीं मिली। मैंने कहा- तो आज आप की मनोकामना जरूर पूरी होगी। अभी फिलहाल चलो एक दूसरे का रगड़ रगड़ कर माल निकाल देते हैं। इस पर वे मुझ से लंड चूसने को कहने लगे.
लेकिन मैंने कहा- यार, मैं सुपारा प्रीकम आने तक चूस दूंगा, इसके आगे नहीं, क्योंकि मैं माल नहीं पी सकता, और इसमें कोई ख़ास स्वाद नहीं आता है। फिर मैं उन का लंड चूसने लगा, उन के आनन्द का चरमोत्कर्ष आने ही वाला था कि मैंने उस को दीवार की ओर 60 डिग्री के कोण पर मोड़ दिया, उन के लंड से गरमागरम माल की पिचकारी सामने दीवार पर गिरी और वहाँ डिजाइन बन गया, यह कलाकृति कई बरसों तक मेरी याद ताजा करती रही. जब बाथरूम में पुताई हुई तब उसके बाद मिटी।
इस बीच मिश्रा जी बारी बारी से मेरे नितंब व निप्पलों पर साबुन रगड़ते रहे। फिर मैंने उन को अपनी टेस्ट ट्यूब का उपयोग अपनी गांड पर कर के गांड की संरचना और गांड मारने और मराने में बरती जाने वाली सावधानियों के बारे में समझाया। यह टेस्ट ट्यूब का उपयोग मैं नहाने से पहले अक्सर करता रहता हूँ।
मिश्रा जी समाज शास्त्र के स्टूडेंट थे, इस लिए उन को सेक्स का, गांड चुदाई का सही ज्ञान देना हमारे जैसे बायोलाजी के स्कालर का कर्तव्य बनता था। आखिरकार अपनी गांड का ख़याल भी तो रखना था, जिस का सदुपयोग रात में धकापेल होने वाला था। आपने वो कहावत तो सुनी ही होगी: अनाड़ी का चोदना चूत का सत्यानाश!
लेकिन हम गांडू लोगों के लिए यह कहावत बन जाती है: अनाड़ी का चोदना गांड का सत्यानाश!
फिर हम नहा धो कर अपने अपने कमरों में चले गए।
शाम का इंतजार काफ़ी लंबा पड़ा होगा मेरे चोदू यार के लिए, लेकिन इंतजार में जो मजा है उस को दुगना करने के लिए मैं कुछ पूजा सामग्री जैसे मोगरा के फूल और लड्डू ले आया था, विधिवत पूजन कर के ब्राह्मण देवता को भोग जो लगाना था। मैं बहुत धार्मिक व्यक्ति हूँ और जैसा कि आजकल बाबाओं के बारे में न्यूज में अक्सर आता रहता है, के लिए अपने को सर्वथा उपयुक्त पाता हूँ।
योग और भोग एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, दोनों से ही मोक्ष की प्राप्ति होती है। कभी आपने सोचा कि चुदाई की लालसा जब बलवती हो उठती है तो संसार के सारे भेद मिटा कर हम पुरुष और प्रकृति एकाकार हो उठते हैं।
खैर अध्यात्म को गोली मारो आगे की गांड चोदन कथा अन्तर्वासना सेक्स स्टोरीज डाट कॉम पर पढ़ना जारी रखिए।
रात गहरा गई थी, प्रोग्राम के मुताबिक मेरा चोदू पुजारी मिश्रा जी मेरे मंदिर में आ चुका था। मैंने उनका स्वागत चाय की जगह बियर पिला कर किया क्योंकि गर्मी के दिन जो थे।
एक एक बोतल बियर गटक लेने के बाद हम दोनों अब पूरी तरह वस्त्र विहीन हो चुके थे और हम दोनों एक दूसरे को आलिंगन बद्ध कर रहे थे। फिर मैं बिस्तर पर गांड ऊपर कर लेट गया और मिश्रा जी को मोगरे के फूलों से मेरी गांड की पूजा करने को कहा।
उन्होंने मेरी नंगी गांड यानि चूतड़ों पर फूल चढ़ाये और मैंने श्लोक गाया: चूत चोदते चूतिये, बुर मारा करते शैतान, भले आदमी गांड मारते, भली किया करते भगवान! ओम शान्तिः! शान्ति!
यह करते हुये वासना, उत्तेजना की हालत यह हो गई कि क्रीम की पूरी डिब्बी मिश्रा जी ने मेरी गांड पर उलट दी और अपने हलब्बी लौंडे पर वहीं से रगड़ कर लगाने लगे। मैंने कहा- आज मेरे इन्सट्रक्शन को फालो करो, जब मैं एक बोलूँ तो तैयार हो जाओ और जब दो कहूँ तो ‘डू’ यानि घुसेड़ो। इस तरह लय व ताल से गांड चुदाई का मजा आएगा।
गिनती शुरू हुई, पहले दो पर मैंने ज्यों ही गांड को ढीला छोड़ा, मिश्रा जी का आधा लौड़ा अंदर घुसा जिसको एक बोल कर मैंने जकड़ लिया, फिर दो पर फिर ढीला किया. यह पूरा अंदर था और हल्के दर्द से मेरी चीख निकल गई। मिश्रा जी को डर लगा और उन का औज़ार बाहर स्लिप हो कर निकल गया। मैंने कहा- अरे देहाती लंड, चुदाई चालू रखो, कुछ नहीं हुआ है।
फिर क्या था, उन की वासना का जोश और मजा दोनों के बीच का तारतम्य देखने लायक था, जिस को मैं अपने खुफिया कैमरे में क़ैद करने का इंतजाम कर रखा था जिस का अंदाजा मेरे नए आशिक को न था। मैं इस क्लिप को जब भी देखता हूँ तो सोचता हूँ कि यह मैं ही हूँ या मेरा हम शक्ल कोई पॉर्न स्टार।
लगभग पंद्रह मिनट तक की धकापेल के दौरान मैं दो बार चरमोत्कर्ष के कारण झड़ चुका था। हमारे जैसे चिकने लौंडे जो बॉटम (गांड मरवाने का शौक रखने वाले) के रोल में होते हैं अक्सर 5-7 मिनट में ही खलास हो जाते हैं, लेकिन जो मजा आता है उस को लेकर उन का जल्दी फिर से खड़ा हो जाता है।
अब मिश्रा जी भी थक रहे थे, उन का मजा पूरे ज़ोर पर था, धक्कों की गति लगभग 40 धक्के प्रति मिनट पहुँच रही थी और उन के टेस्टीकल यानि टट्टे मेरे नितंबों पर तबले की सी थाप दे रहे थे धप्प… धप्प… धप्प… धप्प के साथ फ़च फ़च की आवाजें भी क्रीम की अधिकता व लण्ड के रसों के कारण माहौल को खुशगवार बना रही थीं। आखिरकार मिश्राजी का वह अजगर लण्ड गर्म गर्म लावा मेरी हसीन गांड में ही छोड़ कर निढाल हो गया।
हमें बहुत आनन्द आया था और इस की रात में पुनरावृत्ति की। ये सब कने के बाद मुझे बहुत अच्छी नींद आई क्योंकि अगले दिन भी रविवार की छुट्टी थी। फिर हर सप्ताहांत पर इस का आनन्द लेते लेते कब तीन साल गुजर गए पता ही नहीं चला।
हर बार वह मेरे गांड दान को ग्रहण कर दिल से मेरे ऊपर अपने शुभ आशीर्वादों की बौछार करते थे। जिस के पुण्य से मेरी पी एच डी उतार चढ़ावों के बावजूद पूरी हो गई और एक सरकारी संस्थान में मैं एसोशिएट प्रोफेसर बन कर बंगलुरु कर्नाटक चला गया। उत्तर भारतीय होने के नाते यहाँ पर राजभाषा अधिकारी का अतिरिक्त प्रभार भी देखता हूँ।
मेरे पहले चोदू भ्राता श्री और मिश्रा जी से आज भी साल में एक बार तो मुलाक़ात हो ही जाती है। वहाँ पहले तो नई जगह पर बहुत दिनों तक मैं शराफ़त का नकाब ओढ़े रहा, और फिर एक नया कन्नड लौंडा जो हिन्दी असिस्टेंट भर्ती हुआ था, उस को पटाया, जिसकी कहानी फिर कभी पाठकों के लिए लिखूंगा। इससे राजभाषा के प्रचार और प्रसार को अहिंदीभाषी संस्थान में बढ़ावा भी मिलेगा।
मेरी गे सेक्स स्टोरी पर अपनी प्रतिक्रिया अवश्य लिखें, वासना से खड़े और भीगे सभी लंडों को मेरा सादर प्रणाम और अन्तर्वासना को धन्यवाद मेरी गांडू कहानी प्रकाशित करने के लिए।
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