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मैं राज लखनऊ से एक बार फिर आप सबकी सेवा में हाजिर हूँ, काफी दिनों बाद अपनी नई कहानी लेकर आ रहा हूँ, कहानी लिखने में हुई देरी के लिए माफी चाहता हूँ। आप सबने मेरी पिछली कहानी प्यार में धोखा खाई अजनबी हसीना की चुदाई पसन्द की, कहानी की प्रशंसा में मुझे मेल भी किये, इसके लिये आप सब का बहुत बहुत धन्यवाद।
आज मैं एक नई कहानी लेकर आया हूँ जो मेरे और मेरे भाई की साली के बीच है, चूँकि वो मेरे भाई की साली है इसलिए मुझे भी जीजा जी ही बोलती है। मेरे भाई की साली का नाम कविता है, उसकी उम्र करीब 23 साल की है और भरपूर जवानी से इस समय वो तर बतर है, बड़ी ही कामुक दिखती है। कविता काफ़ी बोल्ड और सुंदर लड़की है, हर कोई का लंड खड़ा हो जाए उसको देख कर… ऐसी सेक्सी मस्त माल है. कविता का शरीर काफ़ी भरा पूरा है, चूचे बड़े बड़े लगभग 34 इंच के बिल्कुल पर्फेक्ट शेप के हैं। उनकी गांड चौड़ी और कमर पतली, जांघें मोटी गोल गोल, गाल गोरे गोरे, होंठ गुलाबी रंग के, बाल उसके घुंघराले हैं. साली बड़ी स्टाइल में रहती है, उसके हर एक्शन में अदा है. मैंने नोटिस किया कि उसका लड़कों की तरफ कोई झुकाव नहीं था पर वो मेरे प्रति काफ़ी अच्छी थी.
कविता दिल्ली में पढ़ती है और एक कमरे का फ्लैट किराये पर लेकर रहती है.
तो बात इस साल जनवरी की है जब मैं दिल्ली अपने किसी काम से गया तो भाभी के कहने से मैं कविता के फ्लैट पर रुक गया. जब मैं वहां पहुंचा तो कविता को देखता ही रह गया, वो एक टाइट टॉप और शार्ट में बड़ी सेक्सी लग रही थी, उसने मुस्कुरा कर मेरा स्वागत किया। उसका फ्लैट काफी खुला और सुन्दर था।
करीब 5 मिनट बाद कविता चाय ले कर आ गयी. जब वो आई तो मुस्कुरा रही थी. मैंने कहा- क्या मुस्कुराहट है आपकी साली साहिबा! कविता बोली- फ्लर्ट करना बंद करो यार! और हम दोनों चाय पीने लगे।
चाय पीने के बाद मैं फ्रेश होकर आराम करने लगा और सो गया, शाम को कविता ने मुझे जगाया तो मैंने देखा उसके हाथ में दो कप चाय के थे. मैंने कहा- क्या बात है साली साहिबा… आप तो कहर ढा रही हैं! तो वो थोड़ा शर्मा गयी।
फिर हम दोनों बालकनी में आकर चाय पीने लगे, अचानक मौसम ने करवट ली और बहुत तेज़ हवा चलने लगी, अब तक अँधेरा भी हो चुका था। पहले तेज आंधी चली और फिर उसके साथ बारिश भी शुरु हो गयी, तभी लाइट भी चली गयी।
कविता मोमबत्ती जलने के लिए कमरे की तरफ मुड़ी ही थी कि तभी बहुत जोर से बिजली कड़की और कविता चिल्ला कर मेरी बाँहों में घुस गई। मैंने अपनी साली को अपनी बांहों में जकड़ लिया, और कसने लगा। मुझे लगा कि आज मेरी इच्छा पूरी हो जायेगी और मैं अंदर से बहुत खुश हुआ।
कविता नहीं मुझसे अलग नहीं हो रही थी, शायद वो भी यही चाहती थी। अब मैं अपने हाथ धीरे धीरे उसकी पीठ पर चलाने लगा और अपने होंठ कविता के होंठ पर रख दिए और किस करने लगा. उनके गुलाबी होंठ काफ़ी लाल लाल हो गये थे, उसकी आँखें नशीली हो चुकी थी, मैंने उनके बूब को पकड़ा, वो सिहरने लगी, बोली- छोड़ो ना प्लीज़, कोई देख लेगा! मैंने कहा- यहाँ कोई नहीं है जो हमने देखेगा और इस अँधेरे में हम को कौन देख सकता है? उसने कहा- अच्छा, ज़रा छोड़ो तो… मुझे पहले सारे दरवाजे और खिड़कियां तो बंद कर लेने दो! मैंने कहा- ठीक है।
कविता चली गयी और मैं सोफे पर जाकर बैठ गया। कुछ देर में वो मेरे पास वापस आई और मैंने उसका हाथ पकड़ कर उसे अपनी गोद में बैठा लिया. मेरा लंड उसकी गांड की दरार के बीच में था. वो बोली- बहुत बड़ा लंड है आपका? ऐसा लग रहा है कि कोई लकड़ी का टुकड़ा मेरे नीचे रखा हो! और उसने मुझे कस के जकड़ लिया, वो मुझे मेरे लबों पर किस करने लगी.
मैं उसकी चुची को सहलाने मसलने दबाने लगा. वो काफी सेक्सी आवाजें निकालने लगी, सिसकारियां भरने लगी. मैंने उसकी टीशर्ट को ऊपर करके उसके बदन से अलग कर दिया. उसने अंदर काले रंग की जाली वाली ब्रा पहनी थी. मैं ब्रा के ऊपर से ही कविता की चुची को दबाने लगा. फिर मैंने उसकी केपरी को खोल कर उतार दिया, उसने मुझे इस काम से बिल्कुल नहीं रोका, जैसे वो पहले से ही सोच कर बैठी थी मेरे साथ सेक्स के लिये!
कैपरी उतरी तो नीच काले रंग की ब्रा से मैचिंग जाली दार पेंटी निकली. उसकी पेंटी और ब्रा दोनों इम्पोर्टेड थी, गोर रंग पर काले रंग की ब्रा पेंटी बड़ी ही अच्छी लग रही थी. मैं तो पूरी तरह से अपने भाई की साली के नागे और सेक्सी बदन पर फिदा हो गया था.
मैं उसको लगातार किस करता रहा, उसके अधनंगे बदन को सहलाता रहा. कुछ देर बाद मैंने कविता को बेड पे लिटा दिया और उसके ऊपर झुक कर उसके होंठों पर किस करने लगा. हम दोनों को बहुत मजा आ रहा था, हमरे मुख से पुच पुच की सी आवाजें निकाल रही थी. मैंने अपनी जीभ उसके होंठों के बीच में घुसा दी तो वो बड़े मजे से मेरी जीभ को चूसने लगी. फिर मैंने उसकी जीभ को भी उसी तरह से चूसा. हम दोनों ने पूरी तरह से चुम्बन का मजा लिया, कभी मैं उसका ऊपर का होंठ चूसता तो कभी नीचे का होंठ… ऐसे ही वो भी मेरे होंठों को चूस रही थी. दस से पन्द्रह मिनट तक हमने जोरदार किसिंग की.
फिर मैंने कविता की ब्रा के हुक को खोलना चाहा लेकिन उसकी ब्रा का हुक पीछे था, मैंने उसे उठाया और उसके होंठों पर होंठ रखते हुए उसकी पीठ पर दोनों हाथ लेजा कर उसकी ब्रा का हुक खोला. फिर उसके कंधों से ब्रा की पट्टियां सरका कर उसकी बाजुओं पर कर दी तो उसकी ब्रा के दोनों कप नीचे ढलक गए और कविता की दोनों गोरी चुची नंगी हो गई. कविता की नंगी चुची देख मेरे दिमाग में कामवासना का ज्वार भड़कने लगा, उसकी गोरी चूचियों पर उसकी हरी नीली रक्त शिराएँ मुझे स्पष्ट दिख रही थी. उसके निप्पल उसकी चुचियों के रंग से मिलते जुलते रंग के बस थोड़ा गुलाबीपन लिए हुए थे.
मैंने उसकी ब्रा दोनों बाजुओ से निकाल दी और उसकी दोनों चुची को अपने दोनों हाथों से दबाने लगा. कुछ देर बाद मैंने उसका एक निप्पल अपने मुंह में लिया और उसको चूसने लगा. दो मिनट में ही कविता के दोनों निप्पल किशमिश से अंगूर हो गए यानि उसके निप्पल काफ़ी टाइट और खड़े खड़े हो गये थे. अब कविता जोर जोर से सिस्कारियां भर रही थी, अपनी पीठ ऊपर को उचका कर अपनी चुची मुझे चुसवा रही थी.
दोनों चुची को जम कर चूसने के बाद मैंने कविता को फिर होंठों से चूसना शुरू किया और फिर धीरे धीरे नीचे सरकते हुए नाभि तक जीभ से चाटा, वो तो इतनी गर्म हो गयी कि वो बार बार अपने होंठों को अपनी जीभ से चाट रही थी, कभी वो तकिये को अपनी मुट्ठी में कस के पकड़ती, तो कभी उफ्फ फफ्फ़ उफ फफ्फ़ आह… आआआ आआहह की आवाज़ करती.
मैंने फिर उसकी पेंटी को नीचे किया और उसके पैर थोड़े फैला कर देखे, एक उभरी हुई चूत जिस पर बीच में चीरा लगा हुआ… चुत के होंठ आपस में चिपके हुए, चूत में उंगली भी ना जाए, चूत पे छोटे छोटे बाल आधा सेंटीमीटर जितने लम्बे!
मैंने कविता की चूत की दरार में जीभ लगाई तो वो ऊपर को फुदक पड़ी. मैंने कहा- क्या हुआ? तो बोली- गुदगुदी हो रही है! मैंने फिर जीभ से उसकी चूत चाटने लगा, उसकी चूत से नमकीन पानी निकलने लगा, मैंने जीभ से चाट से साफ कर दिया, वो बोली- और चाटो जीजा जी, बहुत अच्छा लग रहा है, आई लव यू… जीजा जी, आप मुझे भी चोदना जैसे बड़े जीजा जी दीदी को चोदते हैं। मैंने कहा- क्यों नहीं, मैं भी तो यही चाहता हूँ.
फिर मैंने कहा- लो लंड को चूसो! कविता बोली- नहीं नहीं, ये मुझसे नहीं होगा! तो मैंने भी जबर्दस्ती नहीं की.
मुझे अब चोदने की जल्दी पड़ी थी, इस वजह से मैंने उसके पैरों को फैला दिया, अपने लंड को बाहर निकाल लिया, अपने लंड को गीला करने की ज़रूरत नहीं थी क्योंकि चूत ऑलरेडी गीली थी, मैंने चूत के बीचोंबीच अपने लंड को रखा और कस के अंदर किया, पर चूत इतना टाइट थी कि मुश्किल से लंड 1 इंच चूत के अंदर गया और कविता की आँखों से आंसू आ गये. मैं समझ गया कि साली को दर्द हो रहा है, मैंने उसे समझाया- तुम पहली बाऱ चुदवा रही हो, इस वजह से तुम्हें दर्द हो रहा है, थोड़ी देर में ठीक हो जाएगा.
वो बोली- ठीक है… पर आप धीरे धीरे करना! मैंने फिर से धक्का लगाया, अभी 4 इंच तक गया था तब तभी 3 इंच मेरा लंड बाहर था, फिर मैंने एक धक्का लगाया, अब पूरा 7 इंच का लंड मेरी साली के चूत में अंदर चला गया पर वो मेरे हाथ को कस के पकड़े हुई थी, बोली- मैं मर गयी जीजा जी, बहुत दर्द हो रहा है.
फिर मैंने उसको काफी सहलाने लगा, वो और भी कामुक हो गयी, उसकी चूत से लगातार पानी निकल रहा था, मैंने अपने लंड को बाहर खींच कर दोबारा उसकी छोटी सी चूत पे रख कर धक्का लगाया और मेरा लंड थोड़ा गया, फिर तीन चार धक्के के बाद मेरा लंड उसके चूत में पूरा चला गया.
करीब मैंने बीस मिनट तक चुदाई की, उसकी चूत से खून भी निकल रहा था लेकिन मैं उसको लगतार चोद रहा था, कुछ देर में हम दोनों झड़ गए और एक दूसरे को किस करने लगे, वो मुझे अपनी बांहों में समेट लेना चाहती थी और मैं उसे अपने बाहों में समेट लेना चाहता था।
कविता बहुत खुश थी, वो बोली- मजा आ गया जीजू… ऐसा मजा अब मुझे हमेशा देते रहना। उसके बाद सारी रात हमने चुदाई की और जितने दिन मैं वहाँ रहा, खूब चुदाई की। इतनी चुदाई के बाद मेरे भाई की साली की चूत का छोटा सा छेद काफी बड़ा हो चुका था.
यह मेरी दूसरी रुय्ल सेक्स कहानी थी दोस्तो, उम्मीद करता हूँ आप सबको पसंद आयी होगी। आप सब मेल भेज कर मेरी इस कहानी के बारे में अपने विचार दें। मेरी मेल आईडी [email protected] है। धन्यवाद.
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