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मेरी हिंदी पोर्न स्टोरीज पढ़ कर पाठकों के बहुत से मेल आते हैं. सबका जवाब नहीं दिया जा सकता इसलिए जो पाठक सबसे ज्यादा एक जैसे सवाल करते हैं, उनके जवाब देकर आज की कहानी से शुरुआत करती हूँ. कुछ सवालों के जवाब संक्षेप में:
सवाल- लड़कियां भी लड़कों जैसा पोर्न देखती पढ़तीं हैं? जबाव- जी हाँ दोस्त, जिस तरह से लड़के चोदना चाहते हैं. उसी तरह से लड़कियां भी चुदवाना चाहती हैं. लेकिन कई बार लड़कियां परिवार, समाज और गर्भवती हो जाने के डर से कह नहीं पाती हैं. वह भी अपने जिस्म की आग को आंशिक रूप से ठंडा करने के लिए पोर्न देखती पढ़ती हैं. चूत में उंगली या सेक्स टॉयज जैसे डिल्डो डाल लेती हैं.
सवाल- मेरी गर्लफ्रेंड नहीं है, कैसे बनाऊं, अब तक सेक्स नहीं किया? जबाव- वैसे तो सही राय है, शादी करो. दांपत्य सुख भोगो. फिर भी किसी लड़की को चोदना चाहते हो तो पहले उससे दोस्ती करो, उसका दिल जीतो. फिर जब तुम उसको सुरक्षित माहौल दे सको, तब ही उसको चोदो. लेकिन कभी भी ज़बरदस्ती मत करो. उनको ब्लैकमेल मत करो, यह सब अपराध है. सबसे आसान लड़की सिस्टर होती है, जैसे मामा की लड़की, बुआ की, चाचा की. चाहो तो सगी बहन भी हो सकती है. लेकिन कुछ लोग इसको बुरा मानते हैं. यहाँ पर आपको अपने विवेक से काम लेना होगा, मेरी इसमें कोई राय नहीं है.
सवाल- किस उम्र की लड़की की चूत ली जा सकती है? जबाव- बालिग़ हो चुकी लड़की को चोदा जा सकता है.. लेकिन हर तरह से सहमति ज़रूरी है.
सवाल- मेरी बहन चुदवा रही है या नहीं कैसे जानें? उत्तर- यह बेवजह का सवाल है. उसको अपनी लाइफ जीने दो. जिस तरह से कोई तुम्हारी गर्लफ्रेंड है, वैसे ही वह भी किसी की गर्लफ्रेंड हो सकती है.
सवाल- बहन को चोदना चाहता हूँ, हेल्प करो? जबाव- याद रखो बहन भी एक लड़की ही है.. तुम नहीं चोदोगे तो बाहर किसी न किसी से चुदवा लेगी. पश्चिमी समाज में ऐसा होता है लेकिन हमारे समाज में इसको अच्छा नहीं मानते. लेकिन अगर बहन राज़ी है तो मेरी नज़र में कुछ भी गलत नहीं है. मैं कोई हेल्प नहीं कर सकती. जो लोग मेरा व्ट्स ऐप नंबर मांगते हैं. मुझे चोदना चाहते हैं, उनके लिए जवाब है कि ऐसा संभव नहीं है.
अब आते हैं असल कहानी पर.
मेरे बारे में जो दोस्त नहीं जानते हैं उनको दो चार लाइन में ही बता दूं. मेरा नाम मेघा है, मैं दिल्ली से हूँ. मेरे दोस्त प्यार से मुझे ‘टीन मेघा’ बोलते हैं. इकलौती होने की वजह से मम्मी डैडी के लाड़ प्यार के कारण मैं बचपन से ही बिगड़ैल हो गई थी. स्कूल से कॉलेज पहुँचते पहुँचते मैं एक नंबर की झूठी और नकचड़ी और फैशनबाज़ हो चुकी थी. जहाँ तक कि घर से पैसे भी बिना बताये ले लेती थी. अमीर घर से थी तो किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता था. मेरी गलतियों को बचपन की शैतानियों में ही गिन कर सब माफ़ कर दिया जाता.
इन सबके बाद भी मुझ पर किसी तरह की कोई रोक टोक नहीं थी. लेकिन कॉलेज पहुँचने पर मेरी दोस्ती अपने से बड़े सीनियर लड़कों से हो गई. कई लड़के मेरे आगे पीछे रहते, मैं उनको अपने इशारों पर नचाती. लेकिन धीरे धीरे उन्होंने मेरा एक नई दुनिया से एहसास कराया. मैं कच्ची कली सी महक रही थी. लेकिन जब उन लड़कों ने मुझे छुआ तो मैं कली से फूल बनने को मचल उठी.
एक दिन उन्होंने मुझे कॉलेज के पुरानी बिल्डिंग में चलने को कहा. अगर मैं वहां रुक जाती हूँ, तो मुझे वह सब दोस्त मिलकर मुझे एक एक डेरीमिल्क चॉकलेट देंगे.. वरना मैं एक दूंगी.
सौदा मुनाफे का था, मैं राज़ी हो गई. मुझे चार से पांच चॉकलेट मिलने पक्के थे. मैं समझी कि वह लोग मुझे भूत से डराना चाहते हैं. मैंने कहा कि मैं किसी भूत वूत से नहीं डरती. जब उन लोगों में मुझे उकसाया तो मैंने गुस्से से कह दिया कि ‘भूत की माँ की चूत.’
वे सब हंस दिए. शर्त के अनुसार मुझे दस मिनट रुकना था. मैं उनके साथ हो ली.
कॉलेज के पुराने टूटे क्लासों के पीछे वहां अन्दर का नज़ारा ही कुछ और था. कुछ सीनियर लड़के लड़कियां पूरी तरह से लिपटे चिपटे हुए थे. किसी का हाथ लड़की की सफ़ेद सलवार में उसके हिप को मसल रहा था तो कोई किसी लड़की के सामने बैठकर उसकी चूत चाट रहा था. कोई लड़की की टी-शर्ट में हाथ डाले उसके मम्मों को मसल रहा था. मैंने ऐसा पहली बार देखा था. मेरी हालत खराब हो गई.. मैं वापस मुड़ने को हुई तो सबने मुझे रोक लिया. दस मिनट तक मैं उनके साथ वह सब देखती रही. किसी को भी हमारे वहाँ होने से कोई फर्क नहीं था. एक लड़की झुक कर एक लड़के का लंड मुँह में लेकर चूस रही थी. वह सब वैसे ही लगे हुए थे. सच बोलूँ तो न जाने क्यों मुझे अच्छा लग रहा था. हालांकि मैं वहां अकेली नही थीं. कॉलेज की कम से कम आठ से दस लड़कियां लड़कों से जम के चुदवा रही थीं. कुछ पैसे के लिए चुदवाती थीं कुछ मेरी तरह मज़े के लिए.
इस तरह से कॉलेज के बंद पड़े क्लास में ही उन्होंने मेरे नाज़ुक जिस्म को मसल कर मुझे धीरे धीरे सेक्स की एक मशीन बना दिया. वह मुझे पकड़ लेते और मेरी सफ़ेद शर्ट को खोलकर उभरती हुई निम्बू जैसी चूचियों को मसलते और उसको बारी बारी से चूसते. मैं बस सिसकारी भरती रहती. मुझे बेहद आनन्द आता.
“मेघा चल न चलते हैं. एक क्विक वाला बस..” कोई भी दोस्त हाथ पकड़ कर बोलता. “अभी नहीं शहनाज़ मैडम की क्लास होने वाली है.. क्लास के बाद.” “अरे वह ख़ुद एक नंबर की चुदक्कड़ औरत है. अच्छा चड्डी में हाथ तो डालने दे यार..”
बेंच पर साथ बैठा कोई न कोई लड़का मेरे स्कर्ट के नीचे से मेरी चड्डी में हाथ डालकर मेरी चूत को सहलाता रहता. कभी कभी तो एक साथ दो दो लड़कों के हाथ मेरी चड्डी में घुसे हुए मेरी चूत को सहलाते मसलते रहते. सामने मैडम क्लास लेती रहतीं. धीरे धीरे मैं उनसे इतनी खुल गई कि मैं अब उस बंद पड़े टूटे क्लास में सबके सामने हँसते हुए अपनी चड्डी घुटनों पर सरका देती. “झुक जा मेघा बेबी.” और कोई भी सीनियर लड़का मेरी स्कर्ट उठाकर, मेरे छोटे छोटे गोरे चूतड़ों को थपकी देते हुए मुझे दीवार के सहारे झुका देता.
मेरे ही क्लास का एक लड़का अविनाश मुझे लाइन मारता था. मैंने शुरू शुरू में तो उसको मना कर दिया. वह पीछे पड़ा रहा, मैं भाव खाती रही. लेकिन फिर मुझे एहसास हुआ कि मैं अभी बहुत छोटी मासूम सी हूँ जिस कारण सीनियर लड़कों का मुझे चोदने के अलावा किसी बात में कोई इंटरेस्ट नहीं है. जिसको मैं सीनियर लड़कों को उंगलियों पर नचाना समझती थी, वह अब समझ आ रहा था. मैं उनको उंगलियों पर नहीं नचाती थी, वह सब मुझे अपने लंड पर बिठाते थे. जबकि अविनाश मुझे प्यार करता था. मैंने उसका प्रोपोज़ल स्वीकार कर लिया.
अब मैं सीनियर लड़कों से दूर रहने लगी. लेकिन चार दिन से ज्यादा न रह सकी. मेरी मासूम सी नाज़ुक चूत में जैसे चीटियाँ रेंगने लगी थीं. चड्डी में जैसे फुरफुराहट ही होने लगती थी. मुझे कच्ची उम्र में ही अलग अलग लंड लेने की आदत सी लग गई थी.
उस दिन मैं तुरंत अविनाश के साथ बाइक से एक पार्क में गई और वहां झाड़ियों की आड़ में उसके लंड को निकाल कर चूसने लगी. पहले तो वह घबरा गया, लेकिन फिर वह भी शुरू हो गया. उसने मुझे वहीं लिटा दिया और मेरी लेग्गिंग को जांघ तक सरका कर मेरी नन्हीं सी प्यासी चूत को वहीं गिरा कर चूसने लगा.
सर्दी का दिन था मैं चश्मा लगाए दो चोटी बांधे कुरते पर जीन्स का जैकेट पहने, वहीं पत्तों पर लेटी थी. अविनाश मेरे दोनों पैरों को ऊपर उठा कर मेरी चूत को चाट रहा था.
मैं कच्ची उम्र से ही चुदवा रही थी, तो मुझसे चुदाई की आग सम्हाले नहीं सम्भल रही थी. मैं कहीं भी होती अविनाश के लंड पर अपनी चूत रगड़ने लगती. वह समझ जाता कि मैं चुदासी हूँ.
धीरे धीरे एक साल गुज़र गया. पढ़ाई में मैंने बड़े बड़े अंडे उबाले थे. लेकिन मॉम डैड ने पैसे के दम पर मामला सुलटा लिया और मैं अच्छे नम्बरों से पास हो गई थी.
अब मेरा जिस्म भर चुका था. दोस्तों की एक साल की मेहनत मेरे जिस्म पर साफ़ दिख रही थी. अब तक मुझे पांच छह लड़के चोद चुके थे. मैं अपनी दुनिया में पूरी मस्ती के साथ जी रही थी.
फिर एक दिन अचानक मेरे पापा ने आत्महत्या कर ली. इस सदमे से उबरने के लिए मैं शराब पीने लगी. उन लड़कों ने ही मुझे नाईट पार्टी में बियर पिलाना शुरू किया. धीरे धीरे सब पास होकर निकल गए, मैं अकेली सी रह गई. बस पार्टी में जाकर अविनाश से जम कर चुदवाती. कई बार इसके अलावा नशे में उससे बहाना करके वाशरूम को जाती और जेंट्स वाशरूम में अनजान लड़कों से भी चुदवा लेती. कोई थोड़ी सी भी ज़बरदस्ती दिखाता, तुरंत डरने की एक्टिंग करते हुए चड्डी सरकाती हुई झुक जाती. नशे में धुत्त पार्टी में कोई भी लड़का मुझे लाइन देता, मैं बहाना करके उसके साथ कभी कार में, तो कभी वाशरूम में चली जाती.
मुझे क्विक सेक्स में बहुत मज़ा आता. मैं बड़ी हो चुकी थी लेकिन कम उम्र की मासूम सी दिखती थी, इस लिए हर कोई मुझे ही चोदना चाहता था. इस तरह से मैं एक बार फिर अविनाश के अलावा अनजान लड़कों से जम कर चुदने लगी.
एक दिन नाईट पार्टी में एक मुझसे दुगनी उम्र के एक व्यक्ति ने मुझे इशारा किया, मैं उसक साथ चली तो गई, लेकिन उसके जिस्म को देखकर मेरा दिल जोर जोर से धड़क रहा था. वह मुझसे काफी बड़ा था. मैं उसके सामने उसकी बेटी की उम्र की थी. उसने पार्किंग में खड़ी अपनी कार में मुझे ले जाकर मेरी लाल चड्डी खींच दी और स्कर्ट ऊपर करके अन्दर ही झुका दिया.
“झुक जाओ बेबी.. तुम बहुत प्यारी हो.” मेरी चूत गीली होने लगी और उसके मोटे लंड को लेने के लिए मचल उठी. मैं कार में झुकी कुतिया बनी हुई थी. मैं उससे चुदवाना तो चाहती थी, लेकिन थोड़ा झिझक रही थी. “क्या नाम है तुम्हारा बेबी?” उसने मेरा मिनी स्कर्ट ऊपर करके, मेरे नन्हे सफ़ेद चूतड़ों को अपने अंगूठी से भरे हाथ से सहलाते हुए कहा. “जी मेघा..” मैंने झुके हुए ही धड़कते दिल से जवाब दिया. “बहुत प्यारा नाम है.. सेक्स की गुड़िया दिखती हो तुम.. आज बहुत सर्दी है, लेकिन यह पार्किंग बेसमेंट में है यहाँ तुमको सर्दी नहीं लगेगी. डिस्को में किसके साथ आई हो?” “जी दोस्तों के साथ आई हूँ. वे लोग अन्दर हैं.” “बेबी सी दिखती हो.. ले लोगी मेरा? काफी मोटा है.. मैं तुम्हारे पापा की उम्र का हूँ?” “बेबी दिखती हूँ लेकिन मैं तो बेब हूँ… मस्त बेब… अंकल, आपसे पहले ले चुकी हूँ कई दोस्तों का.. लेकिन यहाँ कोई देख न ले?” मैंने खुली हुई कार की सीट पर सैट होते हुए अपनी गांड ऊपर करते हुए कहा.
उसकी पापा वाली बात मुझे अन्दर तक रोमांचित कर गई थी. मेरी चूत पूरी तरह से गीली हो चुकी थी. लेकिन उस दिन कुछ नया ही हुआ. मुझे उसकी उम्मीद नहीं थी. उसने मेरे स्कर्ट को खोलते हुए मेरी छोटी सी लाल चड्डी नीचे सरका दी और फिर मेरे छोटे छोटे चूतड़ों को विपरीत दिशा में खोला और मेरी गांड पर अपने लंड के टोपे को रगड़ने लगा. “अम्म्म.. बिल्कुल गुलाबी है.. सील पैक.” “यह क्या कर रहे हो आप?”
उसने मेरी गांड के छेद पर थूक लगाया और उसमें उंगली डालकर उसको चिकना करने लगा. मैं सहम गई.. मेरे अन्दर घबराहट सी होने लगी थी. “कुछ नहीं होगा बेबी.. बस ऐसे ही झुकी रहो. तेरी गुलाबी गांड बहुत मस्त है. तेरी गांड मारने में मज़ा आएगा.”
मेरा दिल जोर जोर से धड़क रहा था. मैं उसकी कार में घुटनों तक चड्डी सरकाए झुकी हुई थी. उसने मुझे फुसलाते हुए अपना लंड मेरी गांड में पेल दिया. मैं दर्द से छटपटाने लगी- आएईई… उफ़ आहह्ह.. मम्मी.. नहीं नहीं सर प्लीज यह नहीं.. अभी यहाँ मत डालो.. उफ़..” मैंने दर्द से आँखें भींच लीं. “कुछ नहीं होगा लड़की.. बस धीरे धीरे बैठ जा मेरी गोद में.”
मैं खुद को छुड़ाना चाह रही थी लेकिन उसने मेरी मचलती हुई कमर को कसकर पकड़ा हुआ था. धीरे धीरे उसने मुझे अपनी गोद में बिठा लिया. उसका मोटा लंड मेरी नाज़ुक सी छोटी गांड में किसी मूसल की तरह पेवस्त हो गया.
“बहुत दर्द हो रहा है प्लीज निकाल लो.. उफ़.. मम्मी.. अह्ह्ह.. मरी मैं तो.. गांड नहीं मरवाऊँगी.. गांड मत मारो प्लीज़ सर दुखती है..” “बस बस बस मेरी बेटी, बस हो गया.. ऐसे ही ऊपर नीचे होती रह.. आह्ह्ह… जन्नत है रे तू.. मासूम कली.. मेरी बेटी तेरी ही उम्र की ही लन्दन में पढ़ती है अभी..”
मैं दर्द से बिलबिला रही थीं. लेकिन उस पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा था. उस रात में उस व्यक्ति ने ज़बरदस्ती मेरी गांड में लंड घुसेड़ दिया था. मैं दर्द से बिलबिला रही थी, लेकिन वह मेरी गुलाबी गांड के छोटे से छेद में अपना मोटा लंड घुसाए हुए था.
“आह्ह्ह.. बहुत प्यारी है रे तू… तेरी जैसी कच्ची गांड मारने में बहुत मज़ा आता है.” “आह्ह्ह्ह… अंकल प्लीज़ बहुत दुःख रही ही मेरी गांड.. उफ़.. मम्मी.. आईई.. मत करिए न..” मेरे को तेज़ दर्द हुआ.. पर उस व्यक्ति को कहाँ दया आने वाली थी. उन्होंने फिर से धक्का मारा. मुझे ऐसा लगा कि मेरी छोटी सी गांड में गरम सरिया घुस रहा है. मैं तेज़ी से साँस ले रही थी.
अब उन सर ने कस के मेरी कमर को पकड़ा, मैं इतनी छोटी थी कि मेरी कमर उनके दोनों हाथ में आ गई थी. उन्होंने पूरा प्रेशर लगा के लंड घुसा दिया. इस बार लंड थोड़ा सा और अन्दर चला गया और मेरी चीख मेरे गले में घुट के रह गई. मेरे आंसू निकल कर गालों पर बहने लगे. पर अभी तो बहुत सारा लंड घुसना बाकी था. वो बोले- अभी से चीख रही है मेरी प्यारी बेटी.. अभी तो ढाई इंच ही गया है. चार इंच अभी बाकी है.
ये सुनते ही मेरे होश उड़ गए. सर ने लंड पे ज़ोर लगाना बदस्तूर जारी रखा. मैं दर्द के मारे चीख रही थी, पर आवाज़ नहीं निकल रही थी. आँखों के सामने अंधेरा छा रहा था. वो ज़रा सा लंड बाहर निकालते और धक्का मार के पहले से ज़्यादा लंड घुसा देते. पता नहीं कितनी देर ऐसा चलता रहा. लेकिन अब दर्द कम हो चुका था.
फिर सर की आवाज़ आई- जितना सोचा था उससे ज़्यादा लंड ले लिया तूने. पूरी रंडी है तू.. देखती जा आज तेरी गांड कैसे खोलता हूँ मैं.. बस मुश्किल से एक इंच बचा है.. वो जाने के बाद तेरी गांड अच्छे से चोदूँगा.
ये कहते ही एक ज़ोर का धक्का लगाया. मैं तो कार की पिछली सीट पर फंसी हुई थी, आगे भी नहीं हो पा रही थी, तो पूरा ज़ोर मेरी गांड पे ही लग रहा था. मेरी एक और चीख गले में दब के रह गई.
फिर सर ने “टप्प..” से अपना लंड पूरा बाहर निकाला और मेरी गांड पे और थूक डाला. अपना मुँह मेरी गांड पे लगा के थूक मेरी गांड के अन्दर भी भर दिया. अब लंड वापस मेरी गांड में था.. और बिना किसी दया के एक ज़ोर के धक्के से पूरा लंड मेरी गांड में उतार दिया गया. मैं समझ गई कि अब मेरी अच्छी वाली चुदाई होने वाली है.
बस अब तो वो फुल स्पीड में चालू हो गए थे. हर बार पूरा लंड बाहर निकाल के एक झटके में फिर से जड़ तक घुसा देते. मैं दर्द के मारे बेहाल हुई जा रही थी.
जैसे जैसे चुदाई होती जा रही थी, मेरी गांड खुलने लगी थी और दर्द थोड़ा कम हो गया था. मुझे अब अच्छा लग रहा था.
“आह्ह्ह.. आह.. बोल बेटी, कैसा लग रहा है अब.. आह्ह्ह.. मेघा बेबी..” “आहह्ह्ह… अब अच्छा लग रहा है सर.. गांड मरवाने में मज़ा आ रहा है.. सर.. आहह..” “बोला था न.. बस मीठा मीठा दर्द होगा, अब मज़ा ले गांड चुदाई का आह्ह..” “हां सर मज़ा आ रहा है.. मेरी मासूम गांड मारो आह्ह.. सर.. वहाँ कोई है.. कोई हमको देख रहा है.. रुको..” “कोई नहीं है मेरा ड्राईवर है, रखवाली कर रहा है.”
अब वो मेरी गांड मारते हुए मेरे चूतड़ों पर हाथ से मारने लगे थे. हर बार जब हाथ पड़ता तो मेरी रूह काँप जाती. फिर वो मेरे ज़ोर ज़ोर से हिलते चुचों पे भी मारने लगे. मैं चाह कर भी कुछ नहीं कर सकती थी. शायद 30-40 बार मारने के बाद उन्होंने हाथ मारना बंद कर दिया.
सर बोले- तेरे लाल लाल चुचे और गांड मस्त लग रहे हैं.
फिर मेरी चुदाई रुकी, पर लंड अभी भी गांड में ही था. अब सर ने मुझे वैसे ही गोद में उठाया. उनका लंड मेरी गांड में ही था. मेरे आँसू दर्द से बहे जा रहे थे. मेरे को लगा कि अब सर मेरी गांड मारना बंद कर देंगे. पर इतनी अच्छी किस्मत कहाँ थी मेरी. सर ने कार में ही पोजीशन बदली और मुझे अपने ऊपर बैठा लिया.. और फिर से आगे से मेरी जम के गांड मारना शुरू कर दी.
मैं चीखना चाहती थी, पर चीख भी नहीं सकती थी.. चुदाई चालू रही.
सर ने मेरा चेहरा अपनी तरफ किया और बोले- देख तेरी शानदार चुदाई के कारण तुझे सर्दी में भी पसीना आ रहा है. मैंने देखा कि वाकयी इतनी सर्दी में भी मैं पसीने में नहा चुकी थी.
करीब दस मिनट मेरी गांड चोदने के बाद सर ने लंड बाहर निकाला और मेरी स्कर्ट को भी निकाल दिया. मैं खुलेआम पार्किंग में अपनी से दुगनी उम्र के अंकल से गांड मरवा रही थी. मुझे बस यही डर था कि मेरे दोस्त मुझे इस तरह से अनजान आदमी से गांड मरवाता न देख लें.
अभी सोच ही रही थी कि अंकल ने मेरे को वापस कार की सीट पे लिटाया, मेरी पतली पतली टांगें अपने कंधों पे रख के फिर से लंड मेरी गांड में उतार दिया. मेरे दोनों नन्हें चुचे उनके हाथों में थे और हर धक्के के साथ वो मेरे चुचे भींच देते. अब तक मेरी गांड भी काफ़ी खुल चुकी थी, दर्द भी काफ़ी कम हो गया था. सो मैं थोड़ा आराम में थी.
अचानक उन्होंने मेरी पीठ के पीछे से मेरे कंधे जकड़ लिए और मेरे ऊपर पूरा झुक के अपनी स्पीड बढ़ा दी. मेरे को समझ में आ गया था कि उनका पानी निकलने वाला है. फिर 15-20 और धक्के देने के बाद सर ने “फ़च्छ.. फ़च्छ..” करते हुए मेरी गांड में अपना पानी भर दिया.
वो झड़ने के बाद मेरे ऊपर ही पड़े रहे और उनका लंड मेरी गांड में पानी निकालता रहा. मैं मासूम बच्ची उनसे चिपटी रही. उसके बाद सर ने अपना लंड बाहर निकाल लिया.
मैं वहीं सीट पे पड़ी रही. गांड की पहली चुदाई में मैं बहुत थक गई थी. हाई हील सैंडल पहने मेरी खुली हुई टांगें कार से बाहर सीट से नीचे लटकी हुई थीं और चौड़ी खुली हुई थीं. मुझे अपनी टांगों में सर्दी लग रही थी. अब मेरी गांड से सर का पानी टपक रहा था. सर ने अपना मोबाइल निकाला और मेरे सामने आए. फिर मेरे को बोला कि अपनी टांगें चौड़ी खोल. जब मैंने टांगें चौड़ी कर लीं तो उन्होंने मेरी कई सारी फोटो निकाल लीं.. और ताज़ी चुदी हुई गांड की फोटो भी खींच ली.
फिर मेरे को दिखाई. मैं तो देख के घबरा गई. गांड अभी भी खुली हुई थी और उसमें से सर के लंड का पानी निकल रहा था.
फिर सर ने मेरे को बोला- चल बेबी अपने कपड़े पहन और वापस जा तेरे दोस्त ढूंढ रहे होंगे. ‘हाँ जाती हूँ.. गांड बहुत दुःख रही है.’
‘कुछ नहीं होता बेबी पहली बार में तो तुम्हारी चूत भी दुखी होगी. जब भी पैसा चाहिए हो बताना.’ उसने अपने पर्स से दस हज़ार के नोट निकाले, एक विजिटिंग कार्ड के साथ मेरे ब्रा में खोंस कर वहां से निकलने को कह दिया. मैंने अपनी लाल चड्डी से पहले अपनी गांड से बहता हुआ उसका वीर्य साफ़ किया और कपड़े ठीक करके वहाँ से निकल गई. दो दिन तक मेरी गांड दुखती रही. मेरी जवानी की चुदाई की इस हिंदी पोर्न स्टोरी के लिए आपके मस्त कमेंट्स का मुझे इन्तजार रहेगा. [email protected]
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