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मेरी हिंदी सेक्सी कहानिया के पिछले भाग में आपने अकीरा उर्फ़ सिमरन और शालिनी उर्फ़ दीपिका के मिशन की कहानी पढ़ी, शालिनी की पहली चुदाई के बारे में पढ़ा.
अब चंडीगढ़ में विक्रांत के पास आते हैं. विक्रांत उस रात को काफी देर से सो पाया क्योंकि वो अकीरा से फ़ोन पे बात करता रहा, वो अकीरा को मनाने की कोशिश कर रहा था कि वो ईशा के सामने नंगा नहीं हो सकता. पर अकीरा ने कहा कि उसे उसकी शर्त माननी ही होगी वरना वो उससे नाराज़ हो जाएगी! आखिर में विक्रांत को हार माननी ही पड़ी और उसने अकीरा की शर्त को मान लिया। उसने अलसाई आँखों से घड़ी की ओर देखा, 6 बज रहे थे, रामु काका भी न टाइम के पक्के हैं, पक्का उठाने आये होंगे. उसने सोचा और सिर्फ कच्छे में ही दरवाजा खोलने के लिए खड़ा हो गया, उसे याद ही नहीं था कि उसका नौकर तो छुट्टी पर गया है और उसकी जगह उसकी बेटी रुक्मणी होगी। उसने बंद आँखों से ही दरवाजा खोला- आइए रामू काका!
रुक्मणी विक्रांत के नंगे सुडौल बदन को देख शरमा गयी और न चाहते हुए भी उसकी नज़र नीची हो गयी और विक्रांत के कच्छे का उभार देख उसके पूरे बदन में आग सी लग गयी जिसके कारण वो हकलाते हुए बोली- मालिक मैं हूँ रुक्मणी, आपके के लिए गर्म पानी लाई थी नींबू और शहद डाल के। महिला की आवाज सुनते ही उसकी सारी नींद फुर्र हो गयी उसने झट से बेड पर पड़ी चादर उठा ली और तौलिए की तरह कमर पर लपेट ली- सॉरी, मैं भूल ही गया था कि रामू काका नहीं हैं।
रुक्मणी- जी कोई बात नहीं। आप अभी जॉगिंग के लिए जाएंगे या गीज़र ऑन कर दूँ? विक्रांत- रुक्मणी तुम इतनी सुबह सुबह किस लिए उठ गई और मुझे तो गर्म पानी पीने की आदत वादत नहीं है। रुक्मणी- मालिक, मैं तो हमेशा ही 5 बजे उठ जाती हूँ. और सभी को सुबह सुबह गर्म पानी में नींबू और शहद डाल के पीना चाहिए, सेहत के लिए बहुत अच्छा होता है। विक्रांत ने एक नज़र भर अपनी नौकरानी को देखा, भीगे बाल उसके गोरे गालों पे झूल रहे थे और सफेद और लाल रंग की साड़ी में वो बंगाली परी जैसी लग रही थी।
विक्रांत ने खुद नार्मल किया और रुक्मणी के हाथ से गिलास लेते हुए खुद बिस्तर पर बैठ गया और उसे भी बैठने को कहा। रुक्मणी उसके सामने कुर्सी पर बैठ गयी। विक्रांत- रुक्मणी, तुम इस घर को अपना ही समझना.
वो उसे चाबियों का एक गुच्छा देते हुए बोला- रामू काका जाते हुए मुझे वापिस दे गए थे, इसमें किचन, स्टोर रूम और मेरे रूम की चाबियां हैं। अगर कभी भी पैसों की ज़रूरत पड़े तो इस अलमारी से ले लेना, पूछने की ज़रूरत नहीं। रुक्मणी- नहीं नहीं, यह आप क्या कर रहे हैं मैं कैसे यह? विक्रांत- रुक्मणी, तुम अब इस घर हिस्सा हो और तुम्हारे बच्चे भी मेरे बच्चों जैसे ही हैं, किसी भी ज़रूरत के लिए पैसे चाहिए हों तो बेझिझक ले सकती हो और यह तुम्हारा हक है, तुम्हारे पिता ने पिछले 15 सालों से अपनी तनख्वाह नहीं ली, जमा करवाते रहे, बस कभी ज़रूरत हुई तो पैसे ले लेते थे पर वो मेरे पिता जैसे हैं, उनके नाम के 20000 रुपये मैं हर महीने उनके बैंक खाते में जमा करवाता रहा हूँ. और यह उनका हक है, मेरी पत्नी के जाने के बाद उन्होंने ही तो बच्चों को और इस घर को संभाला है।
रुक्मणी- आप यह क्या कह रहे हैं, इतना तो कोई बेटा भी नहीं करता। आपका यह एहसान कैसे उतारेंगे हम? वो अपने आँसू पोंछते हुए बोली। विक्रांत- यह एहसान नहीं है, तुम्हें यह सब इसीलिए बताया ताकि तुम खुद को परिवार का हिस्सा मानो न कि नौकर… और यह सब दौलत तुम्हारे पिता के कारण ही तो कमा पाया हूँ, वो घर को न संभालते तो अपने कारोबार पे ध्यान दे पाता? तुम ही बताओ। रुक्मणी- जी अब आगे से ऐसी कोई बात नहीं कहूँगी जिससे आपको ठेस पहुंचे।
विक्रांत- हम्म… और आज रश्मि को पलविका के साथ मार्केट भेज देना, वो रश्मि को कालेज के लिए कपड़े और दूसरी ज़रूरी चीजें दिलवा दे देगी क्योंकि कल से उसे कॉलेज जाना है, उसका दाखिला हो गया है। दोनों के बीच कुछ देर ऐसी ही बातें होती रही, फिर रुक्मणी रसोई में आ गयी और विक्रांत ट्रैक सूट पहन के जॉगिंग के लिए रेडी हो गया।
पर घर के बाहर ही उसे दिनेश मिल गया जो उसी से मिलने आ रहा था। दिनेश- विक्रांत जी, गुड मॉर्निंग आज लेट हो गए? विक्रांत- बस रात को सो नहीं पाया ठीक से… आयो न चाय पीते हैं। वैसे इतनी सुबह तुम इधर कैसे? कोई ज़रूरी बात है क्या?
विक्रांत और दिनेश घर के अंदर आ जाते हैं, रुक्मणी दिनेश को पानी पिलाती है। दिनेश रुक्मणी की गांड को घूरते हुए- यार ये चोखा माल कहाँ से ले आया? विक्रांत- यार, कुछ तो कंट्रोल किया कर, रामू काका गाँव गए हैं, यह उन्ही की बेटी है। दिनेश- वही जिसके पति ने छोड़ दिया था? विक्रांत- हां… तुझे कैसे पता? दिनेश- एक बार रामू काका ने बताया था। चल यह सब छोड़ और बता की अकीरा की शर्त पूरी करने का कोई आईडिया सोचा या नहीं? विक्रांत- भाई मेरे दिमाग में कोई आईडिया होता तो तुझे क्यों कहता मदद के लिए? सोचा कोई आईडिया? दिनेश- सोच भी लिया और आधा काम मैंने कर दिया है। मैं आज ईशा के घर गया था उसकी नौकरी के बारे में पूछने के बहाने… मैंने उसे जमाल घोटा खिला दिया है, वो पूरा दिन टॉयलेट जाती रहेगी, तूने बस अब ये बटन कैमरा ऑफिस बाथरूम में फिट करना है और उसके आने से पहले बाथरूम में जाकर नंगा नहाने की एक्टिंग करनी है। विक्रांत- पर मुझे कैसे पता चलेगा कि वो कब बाथरूम जाने वाली है।
दिनेश- यार इसका भी हल है मेरे पास! आज मैं उसे तेरे आफिस तक लिफ्ट दे दूँगा और इतना घुमा के तेरे ऑफिस तक पहुंचाऊंगा कि ऑफिस पहुँचते ही वो सीधा तेरे बाथरूम में घुसेगी और उसे तेरे ऑफिस के बाहर ड्रॉप करते ही मैं तुझे मेसेज कर दूंगा। विक्रांत- प्लान तो बढ़िया लग रहा है, अब देखते हैं क्या होता है।
दिनेश- यार एक बात मुझे परेशान कर रही है। विक्रांत- बोल क्या बात है? दिनेश- यार कुछ दिनों से मुझे ऐसा लग रहा है कि कुछ अनहोनी होने वाली है। यार हमें एक मीटिंग बुला लेनी चाहिए ताकि आगे की प्लानिंग की जा सके। विक्रांत- यार कह तो तू सही रहा है। पोप (धर्म गुरु) पे एक बार हमला हो चुका है दूसरी बार भी हो सकता है। दिनेश- यार अब समय आ गया है कि हम अपने बच्चों को सब सच-2 बता दें नहीं तो ऐसा कत्लेआम होगा जिसे इतिहास ने आज तक नहीं देखा होगा और हमारे बच्चे ये भी न जान पाएंगे कि हुआ क्या, क्यों हुआ और यह कि वो हैं कौन! विक्रांत- यार तू कह तो सही रहा है. पर हमारी वर्ल्ड कमेटी का फैसला तो तू जानता ही है कि किसी भी किम्मत पर यह राज़ राज ही रहना चाहिए। दिनेश- वो पता है मुझे पर 25 साल पहले हम उन्हें रोक पाए थे क्योंकि हमें पता था कि हमें किससे लड़ना है पर आज की पीढ़ी को तो कुछ पता ही नहीं है। विक्रांत- हम्म ठीक है मैं इंडियन कमेटी के हेड से बात करके देखता हूँ। दिनेश- मुझे तो उस पर भरोसा नहीं है। चल अब मैं चलता हूँ। विक्रांत- इतनी जल्दी क्या है ब्रेकफास्ट साथ में करते हैं। दिनेश- नहीं यार मुझे कुछ काम है फिर ईशा के घर भी तो जाना पड़ेगा। चल मैं निकलता हूँ। विक्रांत- चाय तो पी जा इतनी जल्दी क्या है?
विक्रांत ने रुक्मणी को चाय लाने के लिए आवाज़ लगाई और दिनेश का हाथ पकड़ के बैठने के लिए कहा। कुछ ही देर में रुक्मणी चाय लेकर आ गयी और जब वो चाय रखने के लिए झुकी तो उसका दुप्पटा हट गया जिससे उसकी भरपूर गोरी गोरी छातियाँ स्पष्ट दिखने लगी। “यार क्या मम्में हैं इसके, चूसने का मन कर रहा है.” दिनेश ने विक्रान्त के कान में फुसफुसा के कहा। “यार वैसे तू कुछ ज्यादा ही ठरकी है पर इसने तो मेरा भी बम्बू बना दिया है.” विक्रान्त ने वैसे ही फुसफुसा के जवाब दिया।
रुक्मिणी- लगता है मैं गलत समय आ गयी, आप कुछ पर्सनल बात कर रहे हो। दिनेश रुक्मणी को घूरते हुए- नहीं नहीं ऐसा कुछ नहीं है, मैं तो बस ये कह रहा था कि दूध काफी ज्यादा है… चाय में! रुक्मणी- आपके दोस्त पीते ही नहीं, कितना कहती हूँ मैं तो कि दूध पी लो पर ये पीते नहीं। दिनेश- तुम मुझे पिला दो, मुझे तुम्हारे दूध बड़े पसंद हैं।
दिनेश की यह बात सुनकर रुक्मणी को आभास हुआ कि दिनेश कौन से दूध की बात कर रहा है. उसके चेहरे पर लज्जा का भाव उभर आया, उसने अपना दुपट्टा ठीक किया और रसोई की तरफ भाग गई। कितने सालों से वो अपने तन की आग को बलिदान के पानी से बुझाती आई थी, अब तो उसकी सारी उम्मीदें ख्वाहिशें पत्थर बन चुकीं थी। उसे तो कभी कभी लगता था जैसे वो औरत ही न हो. 20 साल… पूरे बीस साल हो चुके थे उसे किसी मर्द के साथ सोए हुए। इतने सालों बाद अचानक उसका मन मर्द की कल्पना करने लगा था, जो आएगा औऱ अपने भरपूर झटकों से उसकी बरसों की प्यास मिटाएगा उसके स्तनों को निचोड़ेगा, उसकी सख्त चूचियों को चूसेगा… पर यह तो हो नहीं सकता, वो अपने पति के होते हुए भी विधवा है।
रुक्मणी ने एक लम्बी आह भरी और ज़मीन पर दीवार का सहारा ले बैठ गयी. उसका तन जल रहा था और मन बेचैन था। वो माँ थी पर औरत भी तो थी और औरत के बदन को प्यार चाहिए … मर्द का प्यार।
दोस्तो, रुक्मणी को कुछ देर अकेला छोड़ देते हैं और हम अकीरा और शालिनी जो अब सिमरन और दीपिका हैं उनके पास चलते हैं. दोनों सुबह 7 बजे जबलपुर स्टेशन पहुँची तो पता चला कि कामगढ़ के लिए कोई सीधी ट्रेन या बस नहीं है, उन्हें पहले सुल्तानपुर जाना होगा बस से और वहां से उन्हें कामगढ़ के लिये बस मिलेगी। सुल्तानपुर जाने वाली बस 11 बजे चलने वाली थी इसिलए दोनों ने आराम करने के लिए एक 3 स्टार होटल में रूम ले लिया।
शालिनी- रूम तो अच्छा है, मुझे लगा था कि रूम नार्मल सा ही होगा। अकीरा- यह तो है रेट के हिसाब से रूम काफी अच्छा है। यार मैं तो थक गई हूँ, नहाने का मन हो रहा है। शालिनी कपड़े उतारते हुए- मैं भी शावर लूँगी, उसके बाद ही कुछ और करूँगी।
शालिनी ने कपड़े उतार दिए और केवल ब्रा और पैंटी में ही बेड पर लेट गयी. हल्के हरे रंग की ब्रा पैंटी उसके तराशे हुए बदन पर आकर्षक लग रही थी, उसके बड़े और कसे हुए स्तन रैपर में लिपटी हुई टॉफ़ी जैसे लग रहे थे। अकीरा शालिनी की ब्रा देखते हुए- बेहद खूबसूरत लग रही हो इस ब्रा में! काफी महंगी होगी? शालिनी- यार बेचारे इन कबूतरों को सारा टाइम जेल में रहना पड़ता है तो जेल आराम दायक होनी चाहिये या नहीं। अकीरा सलवार कमीज उतारते हुए- कबूतर क्या नाम रखा है! वैसे तेरे कबूतर काफी मोटे ताज़े हैं। शालिनी- मेरी जान, तेरे तो मेरे से भी हट्टे- कट्टे हैं, तेरी इस स्पोर्ट्स ब्रा से भी संभाले नहीं जा रहे। अकीरा- नहीं यार, सच में बड़े आकर्षक लग रहे है तेरे बूब्स।
शालिनी अपनी ब्रा उतारते हुए- तुझे अच्छे लग रहे हैं तो पीयेगी इनका रस? वो अकीरा के चेहरे को पकड़ कर अपने स्तनों पे लगा देती है। अकीरा भी वैसा ही रिस्पांस देती है और शालिनी के बाएँ मम्में को दबाते हुए उसका निप्पल मुँह चूसने लगती है और अपना हाथ शालिनी की पैंटी में घुसा उसकी चूत रगड़ने लगती है. अपनी चूत में तो उसने कई बार उंगली की थी पर आज किसी और की फुद्दी को वो पहली बार छू रही थी। शालिनी की आह… उममह… ओह की कामुक आहें उसे उत्तेजित कर रही थी, खेल वो रही थी शालिनी की चूत से पर चूत उसकी भी कुलबुलाने लगी थी, गीली हो रही थी और खेले जाने की माँग कर रही थी।
शालिनी और अकीरा की पलभर के लिए नज़रें मिली और अगले ही पल दोनों के नर्म गुलाबी होंठ एक दूसरे से मिल गए एक लम्बे चुम्बन के बाद शालिनी ने अकीरा को प्यार भरा हल्का सा धक्का दे बिस्तर पर गिरा दिया और कूद कर उस पर चढ़ गई।
शालिनी अकीरा की पैंटी उतारते हुए- देखूँ तो इस परी की मुनिया (योनि) कैसी है?… ओह देखो तो कितनी छोटी और प्यारी है पर कितनी सूज गयी है। अकीरा- हां, दर्द भी कर रही है। शालिनी- अभी मालिश करके दर्द को भगाती हूँ।
शालिनी एक पल के उठी और अपने हैंडबैग में से एक डिल्डो (नकली लिंग) और तेल की शीशी ले कर वापिस आ गयी। अकीरा- तुम नकली लन्ड भी रखती हो? शालिनी- मेरी जान, यह कोई ऐसा वैसा डिल्डो नहीं है, इसे मैंने जापान से मंगवाया है, इसका साइज अपने हिसाब से कम ज्यादा किया जा सकता है और इसमें क्रीम को भर के वीर्ये के निकलने वाला मज़ा भी लिया जा सकता। अकीरा- ओह अच्छा इतना खास है यह डिल्डो?
शालिनी अकीरा की योनि पर जैतून का तेल गिराते हुए- सिर्फ इतना ही नहीं, चाहो तो इसे तुम अपने आगे चिपका सकती हो और मेरी चुदाई कर सकती हो। अकीरा- अच्छा… पर तुम तो तेल मेरी चूत पे गिरा रही हो, अब क्या तुम इससे मेरी चुदाई करोगी? शालिनी- नहीं मेरी जान, कल के हमले के बाद तेरी चूत काफी सूज गयी है, अभी अगली चुदाई के लिए रेडी नहीं हुई। तेल तो मालिश के लिए है पर मालिश मैं हाथ से नहीं करूँगी। अकीरा- फिर कैसे करोगी? शालिनी अपनी जीभ लपलपाते हुए- अपनी जीभ से।
शालिनी अकीरा की टाँगों के बीच आई और आइसक्रीम की तरह अकीरा की तेल लगी फुद्दी को चाटने लगी, वो अपनी पूरी जीभ से अकीरा की चूत को नीचे से ऊपर तक चाटने लगी. “उम्म्ह… अहह… हय… याह… शालू… आह… मर जाऊंगी… ओह गॉड… इतना अच्छा लग रहा है आह…” अकीरा मदहोश होकर बड़बड़ाने लगी तथा अपनी ब्रा को खोल कर अपने स्तनों को मसलने लगी. शालिनी अपनी लम्बी गर्म जुबान को उसकी कमसिन चूत के अंदर बाहर करने लगी. इधर अकीरा और शालिनी प्रेम रस में डूबती जा रही थीं और दूसरी तरफ विक्रान्त अपने पहले काम में बस सफल होने ही वाला था।
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