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दोस्तो, मेरा नाम सीमा है और मैं 42 साल की एक खूबसूरत, गदराए बदन और मदमस्त जवानी की मल्लिका हूँ। शादीशुदा हूँ, बाल बच्चेदार हूँ। घर परिवार सब सही चल रहा था। मगर अभी तक हमने अपना घर नहीं बनाया था इसलिए हमें कई मकान बदलने पड़े, इसी चक्कर में हमने दो साल पहले ही एक और मोहल्ले में अपना घर लिया। आस पास पूरा बाज़ार है, घर के साथ ही बहुत सी दुकानें हैं।
नए घर में आकर थोड़े दिनों में ही आस पास के घरों में भी जान पहचान हो गई। हमारे बिल्कुल साथ वाला घर उस्मान भाई का था। उनकी पास में हलाल की दुकान थी। उनके भी हमारे तरह ही एक बेटा और एक बेटी है और उनके बेटा बेटी भी मेरे बच्चों की ही उम्र के हैं। कुछ दिनों में ही बच्चे आपस में दोस्त बन गए। मेरी भी उस्मान भाई की बीवी रुख़साना से काफी अच्छी बनने लगी। धीरे धीरे एक दूसरे के घर आना जान बहुत हो गया क्योंकि मेरे पति ऑफिस होते थे और उस्मान भाई दुकान पर… तो घर में सिर्फ हम औरतें या बच्चे ही होते थे।
हमारे घरों में सिर्फ एक छोटी सी दीवार थी, जिसे हम सभी टाप कर ही एक दूसरे के घर में चले जाते थे। हमारा बेडरूम ऊपर की मंज़िल पर है और हमारे बेडरूम के बिल्कुल सामने ही उस्मान भाई का भी बेडरूम है।
एक बात ज़रूर थी कि बेशक उस्मान भाई से मेरी कोई बहुत ज़्यादा बात नहीं होती थी, मगर वो अक्सर मुझे घूरते थे। कद 6 फीट 2 इंच, तगड़ा जिस्म, मगर बिल्कुल काला रंग… देखने से ही बहुत वहशी सा दिखते थे, मगर बोलचाल में बहुत ही ठंडे और मीठे स्वभाव के। जब कभी भी मैं बाज़ार में उनकी दुकान के आगे से गुजरती तो भी वो मुझे अपनी बड़ी बड़ी आँखों से घूरते हुये मिलते।
मुझे उनका घूरना बहुत बुरा लगता… मैं अक्सर सोचती कि जिस आदमी की अपनी बीवी इतनी गोरी चिट्टी और हट्टी कट्टी हो, उसे किसी और को घूरने की और क्या ज़रूरत है। और सबसे खास बात, जो चीज़ मर्दों को किसी भी औरत में सबसे अच्छी लगती है, वो है उसके मम्मे। अब हम औरतें तो अक्सर एक दूसरी के सामने बेपर्दा हो जाती थी तो मैंने तो रुख़साना के मम्मे देखे थे, इतने विशाल, इतने गोरे और खूबसूरत! गोरे क्या… मैं तो कहूँगी के उनके मम्मे गुलाबी रंग के थे, कोई भी मर्द देखे तो देख कर मचल जाए उनसे खेलने के लिये।
फिर उस्मान भाई मुझे क्यों घूरते थे, मुझ में ऐसा क्या था, जो उनकी बीवी में नहीं थी, बल्कि उनकी बीवी के पास मुझसे सब कुछ ज़्यादा ही था। वो मुझ से ज़्यादा भारी थी, उनके मम्मे और उनकी गांड मुझसे कहीं ज़्यादा बड़ी थी। मैं अभी खाने पीने का ख्याल रखती थी कि मोटी न हो जाऊँ, मगर रुख़साना तो इतना खाती थी, जैसे उसे अभी और फूलना हो। अपने मम्मे और अपनी गांड और भारी करनी हो।
मगर उस्मान भाई की आँखों में मेरे लिए जैसे एक खास चाहत थी, जो उनके देखने के नज़रिये से साफ झलकती! इसमें कोई प्रेम नहीं था, बस एक हवस नज़र आती थी। कभी कभी बुरा लगता, और कभी कभी अच्छा भी लगता कि शायद मुझ में ऐसा तो कुछ है तो उस्मान भाई को मेरी तरफ आकर्षित करता है।
फिर मेरे पति का तबादला दूसरे शहर में हो गया, पहले तो मुझे लगा के हम सब को शहर छोड़ कर जाना पड़ेगा, मगर मेरे पति ने कहा कि यहाँ इसी मोहल्ले में हम ठीक हैं, ये घर छोड़ कर हम दूसरे शहर नहीं जाएंगे। सिर्फ मेरे पति ही अपनी नई पोस्टिंग पर चले गए।
उनके जाने के बाद तो मैं बिल्कुल अकेली हो गई। कुछ दिन बाद तो मुझे रात को नींद आनी बंद हो गई। रात को मैं बिस्तर पर लेटी तड़पती, मेरे बदन में आग लगती मगर मेरे जिस्म की आग बुझाने वाला कोई नहीं था। मैं अक्सर रात को अपने कमरे से बाहर निकल कर छत पर घूमती रहती, जब थक जाती तो आकर बिस्तर पर सो जाती। बड़ी बेकार सी ज़िंदगी हो गई थी।
एक दिन मैं शाम को बाज़ार से कुछ समान लेकर घर आ रही थी, तो जब मैं उस्मान भाई की दुकान के सामने से निकली तो अपनी आदत के अनुसार उन्होंने मुझे घूर कर देखा। मैंने भी उन्हें देखा तो उन्होंने बड़े प्यार से मुझे आदाब किया, मैंने भी जवाब दिया, मगर उनकी बड़ी बड़ी आँखें जैसे मुझे खा जाना चाहती हो। मैं उनकी दुकान के सामने से आ तो गई, मगर मुझे आज उनका घूरना बहुत अच्छा लगा, मेरे दिल में न जाने क्यों ये ख्याल आया कि मैं रुक कर उस्मान भाई की दुकान पर जाऊँ और उनसे कहूँ- ऐसे क्यों घूरते हो, लो मैं तो तुम्हारे सामने खड़ी हूँ, अब जी भर के देखो। मगर मैं ऐसा नहीं कर पाई, और अपने घर आ गई।
उस रात मैं करीब 11 बजे के करीब अपनी छत पर घूम रही थी कि तभी अचानक मेरी निगाह उस्मान भाई के बेडरूम में गई। मैंने जो देखा मैं तो देख कर जैसे पत्थर की मूरत ही बन गई। उस्मान भाई अपनी बीवी को चोद रहे थे, खुली खिड़की से अंदर का सारा नज़ारा साफ साफ दिख रहा था। दूध जैसी गोरी उनकी बीवी बिल्कुल नंगी बिस्तर पर अपनी टाँगें फैला कर लेटी हुई थी, और उस्मान भाई उनके दोनों पैर पकड़ कर उसकी टाँगें पूरी तरह से खोल कर उसे चोद रहे थे। मैं उन दोनों को साइड से देख रही थी।
कुछ देर की ज़बरदस्त चुदाई के बाद उस्मान भाई ने अपना लंड अपनी बीवी की चूत से निकाला। करीब सात साढ़े सात इंच का काला भुसंड लौड़ा! मेरी चूत में जैसे करंट लग गया हो उसका लंड देख कर।
उस्मान ने अपना लंड निकाल कर अपनी बीवी के मुँह के पास किया और उसने भी जब अपने पति का लंड अपने हाथ में पकड़ा तो मैंने देखा, क्या शानदार लंड था। 7 इंच का लंबा और मोटा लंड और पूरा तना हुआ, सख्त लंड… मेरी चूत में एक दम से गीलापन आ गया। “अरे यार!” मेरे मुँह से निकला। मैं और वहाँ खड़े रह कर नहीं देख सकती थी, मैं झट से अपने कमरे में आ गई, रूम की बत्ती बंद करके बिल्कुल अंधेरा कर दिया और अपनी रूम की खिड़की पूरी तरह खोल दी, ताकि मुझे उस्मान के रूम का पूरा नज़ारा दिख सके। खिड़की के पास खड़ी हो कर मैं देखने लगी।
उस्मान ने अपनी बीवी को घोड़ी बनाया और फिर पीछे से अपना लंड उसकी चूत में डाला और लगा पेलने! एक बात जो मुझे अजीब लगी वो ये थी कि उस्मान अपनी बीवी को बीवी की तरह प्यार से नहीं, बल्कि किसी रंडी की तरह बड़ी बेदर्दी से चोद रहा था, और वो भी बड़ी खुश हो हो कर अपनी कमर हिला हिला कर चुदवा रही थी। मार मार चांटे उस्मान ने उसके दोनों चूतड़ लाल कर दिये थे। जितनी वो गोरी, उतना ही उस्मान काला।
उसके बेदर्द चोदने के तरीके ने मेरे तन में भी चुदाई की आग भड़का दी। मैंने अपनी सलवार का नाड़ा खोला और अपनी सलवार नीचे गिरा दी। उधर उस्मान अपनी बीवी को मार मार कर चोद रहा था, उसके होंठ हिल रहे थे, शायद वो उसे गालियां भी दे रहा था, और इधर उनकी चुदाई देख कर मैं अपनी चूत को मसल रही थी। जितनी भयानक उस्मान की शक्ल थी, उतनी ही भयानक उसकी चुदाई थी। सारा वक़्त उसके हाथ भी चल रहे थे, अपनी बीवी के मोटे मोटे मम्मे दबा दबा कर उसने लाल कर दिये, चूतड़ मार मार कर लाल कर दिये।
मैं इधर अपनी जलती हुई चूत को हाथ से मसल कर ठंडा करने की कोशिश कर रही थी, मुझे तो उस्मान की बीवी से जलन होने लगी थी कि साली क्या ज़बरदस्त मर्द से चुदवाने का मज़ा ले रही है, और मैं यहाँ तड़प रही हूँ। इसी तरह अपनी चूत मसलते मसलते मैं तो झड़ गई, मगर वो दोनों अपने प्यार में डूबे एक दूसरे से कितनी देर खेलते रहे। झड़ने के बाद मैं तो वैसे ही अधनंगी हालत में सो गई।
अगले दिन मेरा उस्मान भाई को देखने का नज़रिया बदल गया। अब मैं हमेशा उन्हें अच्छे से देखती, बेशक मैंने उन्हें कभी स्माइल पास नहीं की, मगर मेरे चेहरे पर उनके लिए एक सम्मान की भावना होती थी, मगर मेरी आँखों में उनको अपने सामने नंगा देखने की चाहत थी, मेरे मन में उन्हें पाने की हसरत जाग रही थी, बेशक वो बेहद काले थे और देखने में बिल्कुल भी खूबसूरत इंसान नहीं थे। मगर खूबसूरती हमेशा चेहरे की नहीं होती, खूबसूरती हमेश देखने वाले की नज़र में होती है।
अब तो हर तीसरे चौथे दिन मैं रात को छत पर होती, सोने से पहले कितनी कितनी देर छत पर घूमती, इस लिए नहीं के मैं छत पे सैर कर रही होती, बल्कि इस लिए कि मैं उस्मान और रुख़साना की चुदाई देखने का इंतज़ार करती। हफ्ते में दो बार तो वो अपनी बीवी को चोदता ही चोदता।
धीरे धीरे मैंने रुख़साना से भी इस बारे में बात करनी शुरू की, तो उसने भी मुझे खुल कर बताया कि वो कैसे अपने मर्द से खुश है। मैं मन ही मन सोचती- अरे यार रुख़साना, अपने मर्द से बोल न के मेरी आग भी ठंडी कर दे। मगर मैं उस से कभी ये बात कह न पाई।
हम रात का खाना करीब 10 बजे खाते हैं, तो कभी कभी शाम को 7 बजे भी मैं चाय बना कर पीती हूँ। एक दिन मैं साढ़े सात बजे के करीब अपना चाय का कप लेकर ऊपर छत पर आ गई। अभी उस्मान भाई के बेडरूम की खिड़की खुली नहीं थी। मैं जा कर ग्रिल पर खड़ी हो गई और चाय पीने लगी, नीचे गली बाज़ार से जाते लोगों को देखने लगी।
जब चाय पी कर मैं वापिस मुड़ी तो देखा, उस्मान भाई के बेडरूम की खिड़की पूरी खुली है और वो खुद अपनी खिड़की में पूरा नंगा खड़ा है। उसके हाथ में उसका शानदार लंड था, पूरा तना हुआ, और वो मुझे देख कर ही अपना लंड हिला रहा था। पहले तो मैं बड़ी हैरान सी हुई कि उस्मान भाई ये क्या कर रहे थे, मगर जब उनका लंड देखा तो मैं समझ गई कि ये अपना लंड सिर्फ मुझे ही दिखा रहा था। उसकी नज़रों में जो बात थी, वही बात मेरी नज़रों में भी थी। उन्होंने अपना लंड हिलाते हुये मेरी तरफ देखा तो मैं भाग कर अपने रूम में चली गई। मेरा दिल धक धक कर रहा था और सांस तेज़ चल रही थी। ये क्या कर रहे थे, उस्मान भाई! मैं पहले तो घबरा सी गई, मगर फिर मैंने अपनी खिड़की थोड़ी सी खोली और बाहर देखा तो उस्मान भाई का ध्यान मेरी खिड़की की तरफ ही था। मेरी खिड़की खुलती देख कर उनके चेहरे पर मुस्कान आ गई, अपने उल्टे हाथ में अपना लंड पकड़ कर वो गोल गोल घुमाने लगे। मैंने अपनी खिड़की आधी के करीब खोली, जिस से वो मुझे ठीक से देख सकें कि मैं उन्हें ही देख रही हूँ। उन्होंने अपने हाथ से अपना लंड घुमाते हुये अपने सीधे हाथ से मुझे आदाब किया, अब तो मेरे पास इंकार की कोई वजह भी नहीं बची थी। मैंने भी उनको आदाब का जवाब आदाब से दिया। अब एक नंगा आदमी एक औरत को अपना लंड दिखा कर आदाब करे और औरत उस आदाब को कबूल करे, तो और कहने सुनने के क्या बाकी रह जाता है। फिर मैंने खिड़की बंद कर दी और नीचे किचन में आ गई।
किचन में मैं बेवजह ही इधर उधर कुछ ढूंढने लगी, क्या ढूंढ रही थी, मुझे भी नहीं पता। फिर फ्रिज खोला तो देखा कि फ्रिज में बैंगन पड़े थे। उनमें से सबसे लंबा और मोटा बैंगन मैंने निकाला और अपने दुपट्टे में छुपा कर मैं ऊपर अपने बेडरूम में चली गई। पहले थोड़ी सी खिड़की खोल कर देखा, उस्मान भाई जा चुके थे। मैंने अपने सारे कपड़े उतारे और अपनी खिड़की पूरी तरह खोल दी कि अगर उस्मान भाई फिर से आयें तो मुझे अच्छी तरह से देख लें कि मैं क्या कर रही हूँ।
मैंने वो बैंगन अपनी चूत में ले लिया और आँखें बंद करके सोचने लगी के ये उस्मान भाई का लंड है और मैं उस बैंगन को अपनी चूत में पेलने लगी। गीली चूत में चिकना बैंगन “पिच पिच” की आवाज़ करके अंदर बाहर आने जाने लगा, और मैं बिस्तर पर लेटी तड़पने लगी, अपने मम्मे दबाने लगी, अपने होंठ अपने दाँतों से काटने लगी, मुँह से बुदबुदाने लगी- आओ मेरे यार, मेरे उस्मान, आ जाओ और अपने शानदार लंड से पेल दो मुझे, चोदो मुझे, रुख़साना की तरह देर तक मेरी चुदाई करो, मार डालो मुझे खा जाओ मुझे, मारो पीटो, गालियां दो, मगर चोदो मुझे, मैं जल रही हूँ। मेरी चूत को ठंडा करो। आओ उस्मान आ जाओ यार, मत तड़पाओ।
और ऐसे ही बुदबुदाती, कसमसाती, तड़पती, बिलखती मैं बैंगन से अपनी चूत चोद कर झड़ गई। ठंडी तो मैं हो गई, मगर मेरा मन नहीं भरा था, मर्द मर्द ही होता है, कोई भी और चीज़ उसका मुक़ाबला नहीं कर सकती।
उसी रात फिर उस्मान ने रुख़साना को चोदा, वैसे ही खिड़की खोल कर, बत्ती जला कर। इस बार उसका ध्यान बार बार मेरी खिड़की की तरफ आता था। मैं अपने रूम में थोड़ी सी खिड़की खोल कर उसकी चुदाई देख रही थी और उसी बैंगन से फिर से अपनी चूत को चोद रही थी। मगर मेरे रूम की बत्ती बंद होने की वजह से उस्मान को ये पता नहीं चल रहा था कि मैं उसे देख रही हूँ।
काला बदन, बालों से भरा सीना और पेट, लंबा काला लंड, मैं तो मरी जा रही थी उस वहशी को अपने ऊपर चढ़ाने के लिए… मगर ऐसा कोई मौका नहीं मिल रहा था। 2-4 दिन बाद उस्मान ने जब फिर से अपनी बीवी को चोदा तो इस बार मैंने अपने रूम की खिड़की पूरी खोल दी और एक बात बत्ती जला कर खिड़की के पास खड़ी हो कर उस्मान की सीधा आँखों में देखा, वो मुझे देख रहा था, मैं उसे! वो अपनी बीवी को चोद रहा था, और मैं अपनी चूत में उंगली कर रही थी। मगर उसे नहीं दिख रहा था कि मैंने अपनी चूत में अपनी उंगली डाली हुई है। करीब 1 मिनट तक हमने एक दूसरे को देख कर ही अपनी सेक्स की पूर्ति की, फिर मैंने बत्ती बंद कर दी, ताकि रुख़साना कहीं देख न ले। मैंने अपने सारे कपड़े उतार दिये और बिल्कुल नंगी होकर खिड़की के पास खड़ी, उस्मान को चुदाई करते देखते रही, उस्मान भी बार बार मेरी तरफ देख रहा था, पता नहीं उसे मैं दिख रही थी या नहीं। फिर मैंने मौका देख कर एक बार फिर से अपने कमरे की बत्ती जला दी। इस बार उस्मान ने मुझे नंगी देखा तो वहीं से मुझे सर झुका कर सलाम किया। मैं भी खुल कर मुस्कुराई ताकि उस तक मेरी मुस्कान पहुँच जाए और उसने भी मुझे मुसकुराते हुये देख लिया।
फिर मैंने बत्ती बंद कर दी और बेड लेट गई, एक मूली अपनी चूत में डाल कर मैंने अपनी काम वासना को शांत किया, पर बाद में मैंने उस मूली से ही कहा- तू वो आखरी मुर्दा चीज़ है, जो मेरी चूत में घुसी है, अगली बार या तो कोई जानदार मर्दाना लंड मेरी चूत में घुसेगा या कुछ भी नहीं। अब जब तक उस उस्मान से नहीं चुदवा लेती, तब तक अपनी चूत को हाथ भी नहीं लगाऊँगी. और वो मूली मैं वैसे ही बाहर सड़क पर फेंक दी।
अब तो अक्सर उस्मान भाई और मेरे बीच नज़रों के तीर चलते ही रहते थे, इशारेबाज़ी भी शुरू हो चुकी थी। वो अक्सर अपनी लुँगी में झूलते अपने लंड को हिला कर मुझे दिखाता और मैं भी समझ जाती कि वो क्या कह रहा है और मैं भी मुस्कुरा देती।
मेरी कामुकता से भरी चोदन कहानी जारी रहेगी.
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कहानी का अगला भाग : पड़ोसन का चोदन देख कामुकता जागी-2
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