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हैलो दोस्तो, आज आपके सामने मैं लेकर आया हूँ, सुरेंदर सिंह पूनिया की कहानी। कहानी नहीं ये असल में घटी घटना है। सुरेंदर सिंह ने जो मुझे सुनाया वो मैं थोड़ा और मसाला डाल कर लिख कर आपके सामने पेश कर रहा हूँ, तो मजा लीजिये। सारे मित्रो और सहेलियों को सुरेंदर की राम राम! मैं जी, हरियाणा का रहने वाला हूँ। मेरी उम्र 23 साल की है, गाँव में रहता हूँ, घर की अपनी खेती बाड़ी है। अपनी हवेली, अपना ट्रेक्टर है। 10वीं तक पढ़ा हूँ, अब अपनी खेती खुद संभालता हूँ। अभी शादी नहीं हुई है। घर में सब हैं, माँ बाप भाई बहन. दो चाचा भी हमारे साथ ही अपने पूरे परिवार के साथ रहते हैं। बहुत भरा पूरा परिवार है।
यह बात 4 महीने पहले की है, जब हमारे गाँव में चुनाव के लिए मतदान केंद्र बना। हमारे गाँव के प्राइमरी स्कूल को चुनाव के लिए तैयार किया गया। बच्चों को छुट्टी कर दी गई। स्कूल के एक कमरे में अधिकारियों के रहने के लिए, एक में मतदान के लिए और कमरे में मत पेटियाँ रखने के लिए इंतजाम किया गया। हमारे आस पास के 7 गाँव के चुनाव का सामान हमारे ही गाँव में रखा जाना था। सरपंच साहब ने गाँव के कुछ चुनिन्दा लोगों की पहले से ड्यूटियां लगा दी थी। उन लोगों में मैं और मेरे चाचा का लड़का तरसेम भी था। हम दोनों भाई सरपंच साहब के दिये हर काम को बड़ी जिम्मेवारी से करते।
शाम को सभी चुनाव पर्यवेक्षक आ गए। जब वो गाड़ी से उतरे तो सरपंच साहब ने उनका स्वागत किया। जो उन सब की इंचार्ज थी, वो एक महिला था। कद सिर्फ 5 फुट होगा, रंग बेहद गोरा, भारी गदराया हुया बदन। उम्र होगी, 40 के आस पास, मगर बहुत ही सुंदर गोल चेहरा, तीखा नाक, मोटी मोटी आँखें, बड़ी कमानदार भवें, गोल चमकदार गाल, सुंदर होंठ, सुंदर दाँत, और बहुत ही सुंदर मुस्कान। सच कहूँ तो मुझे वो पहली ही नज़र में भा गई, बेशक मेरे अपने गाँव में बहुत सी औरतें और लड़कियां हैं, आस पास के गाँव में भी हैं, पर वो सबसे अलग, देखने में ही पढ़ी लिखी, समझदार औरत लग रही थी।
पहले तो सबके चाय नाश्ते का इंतजाम किया हम ने। फिर शाम को 7 बजे के करीब सरपंच साहब ने जो मर्द अफसर आए थे, उनसे पूछा, तो वो सब भी खाने पीने वाले थे। मगर दिक्कत ये थी कि चुनाव के कारण दारू के ठेके बंद थे। मैंने कहा- तलछेड़ा गाँव के बाहर भी एक ठेका है देसी का, वहाँ का मुलाजिम मेरा दोस्त है, अगर कहो तो उस से इंतजाम हो सकता है।
एक साहब मेरे साथ आ गए और दोनों मेरे ही स्कूटर पे बैठ कर पास के गाँव गए। वहाँ ठेका बंद था, मगर गाँव में कौन पूछता है, दरवाजे के नीचे से उसने मुझे दारू की दो बोतलें निकाल कर दे दी। मैंने एक और छोटा सा अद्धा भी लिया, सौंफिया देसी दारू का। उसका फायदा यह है कि न तो उसकी बदबू आए, न स्वाद आए, बस हल्का सा नशा होता है। मैं कभी कभी वही पीता हूँ, तो वो तो मैंने अपने लिए लिया था।
दारू लेकर हम वापिस आए, एक कमरे में मर्द अफसरों की महफिल जम गई, चिकन सरपंच साहब के घर से बन कर आया था। सरपंच साहब, नंबरदार, स्कूल के हेड मास्टर साहब, 5-6 लोग मिल कर बैठ गए, और महफिल चालू हो गई। मैंने अपने अद्धे से एक पेग लगाया और मस्त हो कर बैठा उनकी बातें सुनता रहा।
थोड़ी देर बाद मैं पेशाब करने बाहर गया, तो वापिस आते रास्ते में मुझे ख्याल आया, मैं मैडम जी कमरे में गया, और मैंने उनसे पूछा- मैडम जी आप कुछ लेंगी, आपके लिए लाऊं कुछ? उन्होंने मेरी तरफ देखा और पूछा- बाकी सब क्या कर रहे हैं? मैंने कहा- जी वो सब तो पीने पिलाने के चक्कर में हैं, महफिल जमा कर बैठे हैं। उन्होंने थोड़ा असहज हो कर कहा- हाँ यहाँ तक उनकी आवाज़ें आ रही हैं।
मैंने कहा- आप उनका छोड़ो मैडम जी, आप मुझे हुकुम करो, मैं आपकी क्या सेवा करूँ? मैडम ने मुसकुरा कर मेरी तरफ देखा और बोली- मेरी क्या सेवा करेगा तू? मैंने थोड़ा चहक कर कहा- आप जो बोलो? क्या खाना है, क्या पीना है, चाय, कॉफी, दूध, दारू, चिकन, पकोड़े, सब हाजिर हैं। दारू और चिकन मैंने जानबूझ कर बोला ताकि पता चल सके कि मैडम को भी दारू चिकन का शौक है या नहीं।
वो बोली- अरे बस बस, दारू वारु नहीं पीती मैं, हाँ खाने में चिकन खा लूँगी। और अभी तो खाने में टाइम है, तो एक कप चाय या कॉफी मिल जाती तो मजा आ जाता। मैंने कहा- मैडम तो क्या बना कर लाऊं, चाय या कॉफी? मैडम ने हंस कर पूछा- तू बनाएगा? मैंने कहा- हां जी, मैं चाय और कॉफी दोनों बहुत बढ़िया बनाता हूँ। मैडम बोली- तो ठीक है, बढ़िया सी कॉफी बना कर ला।
मैं दौड़ कर गया, अपने घर की रसोई में कॉफी बनाने लगा, जब कॉफी को उबाल आया तो मेरे मेरे दिमाग में भी एक विचार उबला। मैंने अपनी जेब से वो सोंफिया दारू का अद्धा निकाला और उसमें से एक पेग के बराबर दारू कॉफी में ही डाल दी। अच्छी तरह कॉफी उबाल कर मैंने थर्मस में डाली और मैडम जी के पास ले गया।
उन्होंने बड़े मज़े से कॉफी पी और एक कप पीने के बाद आधा कप और लिया। उसके बाद करीब 9 बजे सबने खाना खाया, और जैसे जैसे उन सब का इंतजाम किया था, सब सो गए। अगले दिन सुबह जब मैं चाय ले कर गया, तो सबसे पहले मैं मैडम जी के कमरे में गया। वो उठी हुई थी, मैंने उनको नमस्ते करके चाय दी। मगर उन्होंने जो मुझे मुस्कुरा कर देखा, सच कहता हूँ, मेरा दिल किया, चाहे ये 45 की है और मैं 23 का, पर अगर ये मान जाए तो मैं इस से शादी करके सारी ज़िंदगी बिता सकता हूँ।
चलो उसके बाद सबको भी मैं चाय पिला कर आया।
करीब 11 बजे मैं फिर से चाय ले कर गया, तो मैडम जी बाहर पेड़ के नीचे अकेली कुर्सी पर बैठी थी। मैं उनके पास गया तो वो बोली- सुरेंदर, चाय दे कर मेरे पास आना। जब मैं वापिस आया, तो उन्होंने पूछा- रात तुमने कॉफी में क्या मिलाया था? मेरे तो टट्टे सूख गए के लो भाई… भैणचोद मारे गए। तो मैंने झट से कहानी सी बना कर बता दी कि जब कॉफी बना रहा था, तो ऊपर कानस पर देसी दारू का आधा पड़ा था, वो मेरा हाथ लगने से दूध में गिर गया, अब दूध उबल चुका तो फेंक भी नहीं सकते थे, तो वैसे ही कॉफी बना लाया कि आप तो पीती नहीं हो, तो आप को कौन सा पता चलेगा। मैंने डरते डरते उनको बात बताई।
मगर वो हंस पड़ी- अरे इतना डरते क्यों हो, कुछ नहीं कहूँगी मैं तुम्हें, पर एक बात कहूँगी, रात नींद बहुत अच्छी आई मुझे, आज भी वैसी ही कॉफी मिलेगी क्या? मैं तो खुश हो गया, मैंने कहा- मैडम जी, आज तो कल से भी अच्छी कॉफी बना कर दूँगा।
दिन में वो लोग अपना काम करते रहे। शाम को मैंने 7 बजे के करीब फिर से कॉफी बनाई और लेकर गया। आज मेरे पास दो कप थे, मैंने भी अपने लिए कॉफी डाली और दोनों बैठ कर कॉफी पीने लगे। मर्दों की जिम्मेवारी मैंने अपने भाई को सौंप दी।
एक एक कप कॉफी पीने के बाद मैंने मैडम के कप में और कॉफी डाली। मैडम ने पूछा- जो लोग दारू पीते हैं, उनकी दारू में से तो इतनी बदबू आती है, इसमें से तो कोई स्मेल नहीं आ रही? मैंने अपनी जेब से वही दारू का अद्धा निकाल कर मैडम को दिखाया- ये सूंघ कर देखिये मैडम जी, सिर्फ सौंफ की खुशबू आती है। मैडम ने अद्धे को नाक से लगा कर देखा- अरे हाँ, इसमें से तो खुशबू आ रही है, सौंफ की।
मैंने पूछा- आपके घर में कोई नहीं पीता मैडम जी? वो बोली- नहीं, मायके में तो खा पी लेते हैं, मगर मेरे ससुराल के घर में सब शुद्ध शाकाहारी हैं। मैं भी अपने ससुराल में नहीं खाती पर जब मायके जाती हूँ, या बाहर कहीं जाती हूँ, तो नॉन वेज खा लेती हूँ। मैंने देखा, मैडम जी को बातें आने लगी थी, मैंने पूछा- तो मैडम जी, कॉफी और लाऊं, या सीधा ही एक पेग बना दूँ? वो मुझे हल्की सी झिड़की देकर बोली- चल हट बदमाश, मैं क्या दारू पियूँगी। मैंने कहा- देखो मैडम जी, ससुराल से बाहर जा कर आप चिकन खाती हो, यहाँ तो न आपका ससुराल है, न मायका, यहाँ तो कोई भी बंधन नहीं है।
मैडम ने मना किया मगर मैंने फिर एक पेग बना कर मैडम के सामने रख दिया और दौड़ कर जाकर एक प्लेट में चिकन की सब्जी डाल लाया। मैडम मेरी तरफ देखने लगी- तू नहीं पीता? मैंने कहा- जी कभी कभी, पर आज मैं आपकी सेवा में हूँ। आप जो कहोगी, मैं करूंगा।
मैंने एक गिलास में एक और पेग बनाया और मैडम को दिखा कर एक ही सांस में अंदर फेंक लिया। मुझे देख कर मैडम ने भी गिलास उठाया, पहले हल्का सा होंठों को लगाया, और फिर मेरी नकल करते हुये एक ही घूंट में पूरा गिलास खाली कर दिया। फिर चिकन का पीस खाते हुये बोली- तू बहुत हरामी है, मुझे दारू पिला दी। मैंने कहा- मैडम जी, बस इस बात को यहीं पर रखो, हम दोनों के बीच, अगर आप कहो तो मैं आपकी और भी सेवा कर सकता हूँ। मैडम बोली- और क्या सेवा करेगा बे? मैंने कहा- मैडम जी, आपकी टाँगें दबा सकता हूँ, मैं मालिश बहुत अच्छी करता हूँ।
मैडम ने मेरी तरफ देखा और फिर हंस कर बोली- मैं तुझसे मालिश करवाऊँगी क्या? मुझे लगा कि मैडम जी को एक पेग भी चढ़ गया है। मैंने उनके लिए खाना ला कर दिया, अपने सामने उनको खाना खाते हुये देखने लगा। उन्होंने बड़े मज़े ले लेकर चिकन खाया। मगर मेरे मन में हलचल सी उठ रही थी, मेरा मन बार बार कर रहा था कि मैं आगे बढ़ूँ और मैडम जी को पकड़ लूँ, इन्हें चूम लूँ, चूस लूँ, चोद दूँ… मगर मैं ऐसा नहीं कर सकता था।
खाना खाने के बाद मैं मैडम जी के लिए स्पेशल गुलाब जामुन ले कर आया। मगर दुकान से गुलाब जामुन लाते वक़्त मेरे मन में एक विचार कौंधा, मैंने एक एक गुलाब जामुन लिफाफे से निकाला और उस पर अपना लंड फिरा दिया। मेरा लंड, उसका टोपा सब मीठे शीरे से सरोबार हो गए। लंड घुमाए हुये गुलाब जामुन ले कर मैं मैडम जी के पास गया। मैंने मैडम जी को गुलाब जामुन दिये, जब मैं मैडम जी के सामने जा कर खड़ा हुआ, तो मैडम जी ने बड़े ध्यान से मेरे लंड की तरफ घूर के देखा। गुलाब जामुन पे फेरते वक्त और मैडम जी के बारे में सोचने से वो थोड़ा अकड़ सा गया था और मेरे लोअर में थोड़ा उभरा हुआ दिख रहा था।
मैंने मैडम जी को गुलाब जामुन दिये और वो दो तीन गुलाब जामुन मजे से खा गई। मेरे दिल को बड़ी तसल्ली मिली के जिस चीज़ को मेरे लंड ने छुआ था, वो मैडम जी के खूबसूरत होंठों को छू कर, उनके मुँह के अंदर जा कर, उनके पेट में पहुँच गई है। काश मेरे लंड का टोपा भी मैडम जी के मुँह में घुसा होता। मैं ऐसा सोच रहा था, मैडम जी पता नहीं क्या सोच रही थी।
उस रात मेरा घर जाने को मन नहीं कर रहा था। अगले दिन चुनाव थे, तो मैडम जी ने बहुत बिज़ी रहना था और शायद चुनाव के बाद मैडम जी चले भी जाएँ। गुलाब जामुन खाने के बाद मैडम जी वहीं बिस्तर पे पसर गई। मैंने पहले बर्तन उठाए, फिर वापिस मैडम जी के पास आ गया। बिना दुपट्टे के वो बेड पे लेटी थी। मैं जाकर उनके पास खड़ा हो गया। उनकी आँखें बंद थी, गहरे हरे रंग के सूट के नीचे से दिख रही उनकी गोरी गर्दन, बहुत ही प्यारी लग रही थी, और सांस लेने से ऊपर नीचे हो रहे उनके दो मोटे मोटे मम्मे, जिन्हें देख देख कर मैं मचला जा रहा था।
तभी मैडम जी ने अपनी आँखें खोली, मुझे देखा और पूछा- क्या देख रहा है? मैं कुछ बोल न पाया, दिल तो चाहा कि कह दूँ कि आपके मम्मे देख रहा था मगर चुप रहा। “आपको कुछ और चाहिए?” मैंने पूछा। वो पहले तो उठ बैठी, फिर मेरी तरफ सर कर करके बेड पे अधलेटी सी लेट गई। इस पोजीशन में उनकी कमीज़ के गले से उनकी गोरे गोरे मम्मे जैसे बाहर ही आ गए हों। मेरी निगाह उनकी वक्ष रेखा में ही फंस कर रह गई।
वो मेरी तरफ देख रही थी और उनको पता था कि मैं उनके मम्मे घूर रहा हूँ, वो बोली- और क्या दे सकता है मुझे? मैंने कहा- जो आप कहो? अब स्थिति थोड़ी असमंजस में थी, न मैं खुल के कह पा रहा था, न वो खुल के कह पा रही थी, पर मुझे उनकी आँखों के लाल डोरे देख कर लग रहा था कि उनके मन में भी कोई शैतानी ज़रूर है, और उनके चेहरे पर आने वाली मुस्कान इस बात का इशारा भी कर रही थी।
और कुछ न सूझा तो मैंने कह दिया- मैं आपकी टांगें दबा दूँ, या सर? वो थोड़ा और खुल कर मुस्कुराई और बोली- पहले दरवाजा बंद करके आ! मैं भाग कर गया और कमरे का दरवाजा बंद करके, सिटकनी लगा के उनके पास आ गया।
“सुरेंदर, बत्ती बंद कर दे.” उन्होंने हौले से कहा। मैंने बत्ती भी बंद कर दी। खिड़की से कमरे में चाँदनी आ रही थी जो उनके बदन पर भी पड़ रही थी। उनकी आँखें बंद थी और चुपचाप लेटी थी।
मैंने उनके बिना पूछे ही उनके पाँव दबाने शुरू कर दिये। उन्होंने नहीं रोका, मैंने पहले एक पाँव दबाया, फिर वो पाँव अपनी गोद में रख लिया और दूसरा पाँव दबाने लगा। उनके पाँव की एड़ी बिल्कुल मेरे लंड को छू रही थी। मैंने पहले पाँव दबाया, फिर पाँव से ऊपर की टांग और उनके घुटने तक जा पहुंचा। टांगें दबाते दबाते मैं उनकी सलवार को भी ऊपर को खिसका रहा था, टखने से थोड़ा सा ऊपर सलवार सरकते ही मैंने पाया कि मैडम जी की टाँगों पर एक भी बाल नहीं है, बिल्कुल चिकनी टांग।
मैंने दूसरी टांग की सलवार ऊपर को करी, दोनों टांगें दूधिया चाँदनी में नहा उठी। मैंने सिर्फ उनकी टाँगों के नंगे हिस्से को हो दबाना और सहलाना शुरू कर दिया। मैडम जी मस्त हुई लेटी रही, न कुछ बोली, न मुझे रोका। उनकी टांगें सहलाते हुये मेरा लंड ताव खाने लगा। मैं खिसक कर थोड़ा सा आगे को हुआ, और अब मैंने उनकी टांग पाँव से लेकर घुटने से ऊपर तक दबानी शुरू की, घुटने से ऊपर मतलब जांघ तक, मगर उनकी आधी जांघ से ही मैं अपने हाथ वापिस ले आता, मुझे डर था कहीं मैं उनकी चूत को न छू लूँ। मगर जांघों को सहलाने, दबाने पर भी मैडम जी ने मुझे नहीं रोका। मेरा दिल धक धक कर रहा था, एक तरफ मेरी घबराहट बढ़ रही थी, दूसरी तरफ मेरा हौंसला बढ़ता जा रहा था। मैं सोच रहा था, अब क्या करूँ, क्या करूँ।
थोड़ा और दबाने के बाद मैं इस बार उनकी टांग दबाता दबाता उनकी कमर तक ही पहुँच गया, जब मैंने उनकी कमर को छूआ तो मैडम जी ने एक लंबा सांस ले कर छोड़ा। मैं उठ खड़ा हुआ और उठ कर उनकी टांगें दबाने लगा, इस बार घुटनों से कमर तक, बस! बार बार दोनों टांगें दबाते दबाते मैंने उनके सूट का पल्ला उनकी दोनों टाँगों के बीच में घुसा दिया, और सलवार का कपड़ा नीचे खिसकने से उनकी दोनों जांघों का पूरा आकार बन चुका था, काफी मोटी जांघें थी, मैडम जी की।
मैडम के तेज़ी से चलने वाली सांस की आवाज़ मैं साफ सुन रहा था। मैंने थोड़ा और हिम्मत की और मैडम के सूट का पल्ला उठा कर उलट दिया। जिससे उनकी पेट पर बांधी सलवार, सलवार का नाड़ा और थोड़ा सा गोरा पेट मुझे साफ दिखने लगा। इस बार मैंने उनके पेट को ही सहला दिया तो मैडम ने एक दम से मेरा हाथ पकड़ लिया। मैंने मैडम की और देखा, मैडम का चाँदनी में नहाया हुआ गोरा मुखड़ा, बड़ी बड़ी आँखें मेरी और ही देख रही थी।
मैडम कुछ पल मेरी ओर देखा, और फिर मेरा हाथ अपने सीने पे रख लिया। “उफ़्फ़…” मेरी तो सांस ही रुक गई। फूल सा नर्म, मोटा मम्मा मेरे हाथ के नीचे था। दूसरा हाथ मैंने बढ़ा कर खुद मैडम जी के दूसरे मम्मे पर रख दिया और दोनों मम्मों को अपने हाथों में कैद कर लिया। बिना मैडम से कुछ पूछे मैंने मैडम के मम्मों को हल्के से दबाया, तो मैडम ने भी अपना हाथ आगे बढ़ा कर मेरे लंड को मेरे लोअर के ऊपर से ही पकड़ लिया।
मैंने मैडम के दोनों मम्मे छोड़े और अपना लोअर और चड्डी दोनों उतार दिये, मेरा 23 साल का नौजवान 8 इंच लंबा काला, पूरा तना हुआ लंड, आज़ाद हो गया। मेरा लंड देख कर मैडम जी उठ बैठी और अपने दोनों हाथों से मेरा लंड पकड़ लिया- सुरेंदर, तू तो कमाल है यार, क्या बढ़िया औज़ार है तेरे पास! मैंने कहा- मैडम जी आपका ही है, जैसे चाहे इस्तेमाल कर लो।
मैडम जी उठ कर खड़ी हुई, और खुद अपनी सलवार का नाड़ा खोला, सलवार उतारी, चड्डी तो उन्होंने पहनी ही नहीं थी, फिर कमीज़ और ब्रा भी उतार दी, बिल्कुल नंगी होकर बेड पे लेट गई। उनको कपड़े उतारते देख कर मैंने भी अपनी कमीज़ उतार दी।
बेड पे लेट कर मैडम जी ने मेरी तरफ अपनी दोनों बाहें उठा कर अपने हाथों से इशारा किया और बोली- आ जाओ। मैं उनके ऊपर गया तो उन्होंने खुद मेरा लंड पकड़ कर अपनी चूत पर रख लिया, मेरे हल्के से दबाव से मेरा लंड उनकी गीली चूत में घुसता हुआ ही चला गया। सिर्फ 2 बार आगे पीछे करने से मेरा सारा लंड उनकी चूत की गहराई में खो गया। मैडम जी मुझे कस कर अपने से लिपटा लिया और अपनी टांगें मेरी टाँगों से लिपटा ली। मैंने अपनी कमर हिला कर मैडम जी को चोदना शुरू किया। पहले भी मैंने बहुत बार चूत मारी थी, मगर तब ये था कि जो मिली, उसकी मार ली।
मगर आज तो मैं उसकी मार रहा था, जिसकी लेने की मेरे दिल में बहुत ही ख़्वाहिश थी। मैंने मैडम जी के गाल, होंठ, माथा, नाक, आँखें सब चूमा। मैडम जी ने खुद अपने हाथ में पकड़ का अपना मुम्मा मेरे आगे किया, मैंने उनका निप्पल अपने मुँह में लेकर चूसा। हर झटके के साथ मैडम जैसे चाहती थी कि मैं और अंदर तक उनके जिस्म में घुस जाऊँ।
मैंने पूछा- मैडम जी, आपके मन में ये मेरे साथ सेक्स करने का विचार कब आया? वो बोली- जब तू आकर मेरे सामने खड़ा हुआ था न, तो सबसे पहले मुझे तेरे लोअर में तेरे लंड का आभास हुआ, फिर तेरी बात याद आई कि यहाँ न मेरा मायका है, न मेरा ससुराल, और जब मैंने अपनी खुशी से चिकन खाया, दारू भी पी, तो फिर अपनी मरवाने में भी क्या दिक्कत थी। मैंने तभी सोच लिया, अगर तुम थोड़ी देर और शराफत का दिखावा करते तो मैंने तुमसे खुद पूछ लेना था, या हो सकता है, मैं तुम पर टूट ही पड़ती। मैंने पूछा- आप में इतनी आग है कि आप मुझ पर टूट पड़ती? वो बोली- अरे यार, जब चूत में आग लगती है न तो दिल करता है बस कोई ऐसे पेल दे इसे कि मजा आ जाए, चाहे अपना पति हो, प्रेमी हो, या तुम्हारे जैसा कोई मौका परस्त इंसान। पर तू बता, तूने कब सोचा मेरे बारे में? मैंने कहा- सच बताऊँ तो जब पहली बार आपको देखा था, परसों, तभी आप मुझे बहुत सुंदर लगी। इसी लिए मैंने सबसे पहले आपकी कॉफी में दारू का एक पेग मिला कर दिया था।
मैडम जी मेरी बात सुन कर हंस पड़ी- अबे साले तू तो बड़ा हरामी है। बड़े तरीके से पटाया तूने मुझे। मैंने कहा- सच कहूँ, मैडम जी, आप तो न मुझे इतनी अच्छी लगती हो कि मैं सारी उम्र आपका गुलाम बन के रहना को भी तैयार हूँ। मैडम बोली- गुलाम नहीं सेक्स गुलाम ताकि मैं तुम्हें जब चाहे इस्तेमाल कर सकूँ।
अगले 5 मिनट की चुदाई में ही मैडम जी की चूत पानी पानी हो गई। थोड़ा सा तड़प कर ही मैडम जी शांत हो गई। उसके बाद मैंने भी अपना पानी उनके पेट गिरा दिया। मेरे झड़ने के बाद मैडम जी बोली- आज रात यहीं रुक जा, और करेंगे। मैंने कहा- मैं कहाँ एक बार करके भागने वाला हूँ, आज तो सारी रात आपको सोने नहीं दूँगा। मैडम जी मेरा मुँह चूम लिया और मुझसे लिपट कर लेट गई।
मैंने भी अपनी टांग उनकी दोनों मुलायम जांघों के बीच में फंसा ली और अपनी जांघ से उनकी चूत को घिसने लगा। मैडम जी ने मेरा लंड पकड़ रखा था और मैं उनके मम्मों से खेल रहा था। 10-15 मिनट के प्रेमालाप के बाद मैंने मैडम जी से कहा- मैडम जी, मैं एक बार और करना चाहता हूँ। मैडम जी सीधी हो कर लेट गई और अपनी टांगें चौड़ी करके बोली- तो आ जाओ, मैंने कब मना किया है। मैंने कहा- नहीं ऐसे नहीं, ऐसे तो मैं कर चुका, इस बार आपको घोड़ी बना कर चोदने का मन है।
मैडम जी झट से घोड़ी बन गई। कसम से क्या मस्त गोलाईदार गांड थी मैडम जी की! मैंने पूछा- मैडम जी आपने कभी अपनी गांड मरवाई है क्या? वो बोली- हाँ, मेरे पति अक्सर मारते हैं। मैंने कहा- मैं भी मारूँगा। वो बोली- नहीं, अभी नहीं पहले मुझे चूत में मजा दो, फिर गांड में करना! मैंने कहा- मैडम जी, आप तो बहुत खुल्ला खुल्ला बोलती हो, बहुत बिंदास हो आप, एक दम मस्त! वो बोली- जब मस्ती कर ही रहे हैं, तो खुल्लम खुल्ला होने में क्या दिक्कत है। मैं तो अपने पति से भी ऐसे ही बोलती हूँ।
मैंने अपना लंड थोड़ा सा हिलाया तो वो भी तन गया, मैंने मैडम जी की चूत पे लंड रखा और अंदर पेल दिया। अभी उनकी चूत सूखी थी, तो लंड का टोपा अंदर घुसने पर उन्होंने हल्की सी “आह, सी…” की आवाज़ निकाली। मगर लंड तो होता ही ढीठ और बेशर्म है, जैसा मर्ज़ी सुराख हो घुस ही जाता है।
2 मिनट की चुदाई में ही मैडम जी की चूत फिर से पानी पानी हो गई। मैंने कहा- मैडम जी आप पानी बहुत छोड़ती हो? वो बोली- औरत को जितना मजा आता है, वो उतना पानी छोड़ती है, जितनी गर्म औरत होती जाती है, उतना पानी ज़्यादा आता है। मैंने पूछा- तो इस वक़्त आप पूरी गर्म हो? वो बोली- आग जल रही है मेरे बदन में आग…
मैंने कहा- अब तक तो आपने बहुत बार सेक्स किया होगा? उन्होंने मुझसे पूछा- क्यों तूने ज़्यादा नहीं किया? मैंने कहा- जी मैंने तो बहुत कम किया है, अब तक 20-22 बार किया होगा बस। वो बोली- तो अब ऐसा कर बातें कम कर और काम पे ध्यान दे, मुझे भी मजा दे और खुद भी मजा ले।
मैंने मैडम जी की बात मान कर उनके दोनों कंधे पकड़ लिए और अपना पूरा लंड उनकी चूत के अंदर बाहर करके उनकी चुदाई करने लगा। इस बार मुझे बहुत मजा आया, ना मैं झड़ने का नाम ले रहा था, और मैडम जी भी इस बार पूरी आग बन कर सामने आई। हर थोड़ी देर बाद अपना आसन बदल लेती थी। कभी सीधी लेट के, कभी उल्टी लेट के, खड़े हो कर, बैठा, उल्टे सीधे, हर तरह से उन्होंने खुद को मुझसे चुदवाया।
मैडम जी शोर नहीं मचाती थी, हाँ पर मजा आने पर “उम्म्ह… अहह… हय… याह… ” ज़रूर करती थी।
आधे घंटे तक हमारा मज़ेदार सेक्स चला। फिर जब मैडम जी झड़ी तो उस वक़्त वो सीधी बेड पे लेटी थी, और मैं ऊपर था, तब मैडम जी ने कहा- सुरेंदर, मेरा होने वाला है, जब मैं अपनी जीभ बाहर निकालूँ तो तुम उसे चूस जाना, जीभ चुसवाते वक़्त झड़ना मुझे बहुत पसंद है। मैं उन्हें “ओ के” कहा और ज़ोर ज़ोर से चोदने लगा।
फिर मैडम जी ने अपनी लंबी गुलाबी जीभ बाहर निकाली और मैं उसे अपने होंठों में पकड़ अपने मुँह में ले गया और चूसने लगा, उनकी जीभ बार बार मेरे मुँह के अंदर बाहर आ जा रही थी, तभी उन्होंने मुझे बड़ी कस कर अपने सीने से लगा लिया, मैंने वैसे ही उनकी जीभ चूसता रहा और अपना लंड पेलता रहा। मैडम जी झड़ने के बाद निढाल हो कर लेटी थी, वो बड़े ही प्यार से मुझे देख रही थी और मैं उनकी गोरी चिपचिपी चूत को चोदता रहा, जैसे कह रही हो- ले यार, जितने मज़े लेना चाहता है ले ले, आज सारी रात मैं सिर्फ और सिर्फ तेरी हूँ।
फिर मैं भी मैं मैडम जी की चूत में ही झड़ गया, और वहीं उनके साथ लिपट कर सो गया।
सुबह तीन बजे मैं चुपचाप वहाँ से निकल आया। अगले दिन चुनाव हुआ, शाम को सारा ताम झाम समेट कर, बक्से बंद करके उन्होंने पुलिस की निगरानी में सौंप दिये। मगर उस रात मैं सिर्फ मैडम जी को खाना ही खिला सका, मगर मैंने एक काम और किया, मैडम जी की दाल सब्जी में ही थोड़ी थोड़ी सौंफिया मिला दी।
खाना खा कर ही मैडम जी मस्त हो गई थी, मगर आज रात उन्होंने मुझे खुद मना कर दिया- आज रात तुम अपने घर ही सोना, यहाँ मेरे पास मत आना।
अगली सुबह वो अपने सारे स्टाफ के साथ और दूसरे गाँव से आई, मत पेटियाँ लेकर, वापिस चली गई। मैं सारा समय सिर्फ उनको ही देखता रहा। आज उन्होंने हल्का गुलाबी रंग का सूट पहना था। मुझ से रहा न गया, तो मैं मौका देख कर उनके पास जाकर कहा- मैडम जी, आज तो आप बहुत ही सुंदर लग रही हैं, मेरा तो फिर से आपको प्यार करने का दिल कर रहा है। वो बोली- अरे दिल तो मेरा भी कर रहा है मगर आज मैं नहीं कर सकती। फिर उन्होंने मुझे अपना मोबाइल फोन नंबर दिया और बोली- ये मेरा नंबर है, कभी शहर आओ, तो काल करना, अगर मौका मिला तो हम फिर से मिलेंगे। और वो चली गई।
मेरी इच्छा रोने की हो रही थी, एक रात के सेक्स में मुझे उससे प्यार हो गया था। आज 2 महीने हो गए, मेरी बदकिस्मती के मैडम जी का मोबाइल नंबर ही गंवा बैठा। पता नहीं फिर कभी मुझे वो मिलेंगी, या नहीं। मेरी सेक्स कहानी इतनी ही है, आप चाहें तो मुझे मेल करके अपने विचार बता सकते हैं. [email protected]
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