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प्रिय पाठकगण।
मेरी कहानियां ज्यादातर गंभीर और शायद कुछ ज्यादा ही भावात्मक पहलुओं को छूती हैं। शायद उनमें दूसरे लेखकों की तरह अत्याधिक तीव्रता और सेक्स के प्रति “आये, ठोका, और चले” जैसे आजकल के युवा लेखकों के भाव नहीं है।
इसी लिए यह लम्बी होती हैं। इन्हें लिखने में मुझे भी कष्ट होता है। पर यदि पाठक को मेरी कहानियां दूसरों के मुकाबले अच्छी लगती हैं और यदि वह अपने कमैंट्स लिख कर मुझे अवगत कराते हैं तो मैं लिखता रहूँगा। वरना मेरे पास करने को बहुत कुछ है। ———
सुनीता अपने पति सुनीलजी और अपने प्रियतम जस्सूजी के बिच में लेटी हुई थी। एक तरफ उसके पति का खड़ा लण्ड उसकी चूत में घुस रहा था, तो पीछे जस्सूजी का मोटा घण्टा सुनीता गाँड़ की दरार में फँसा था। सुनीता को डर था की कहीं जस्सूजी मोटा घोड़े का सा लण्ड उसकी गाँड़ में घुसड़ने की कोशिश ना करे।
पर जस्सूजी का ऐसा कोई इरादा नहीं था। वह तो सुनीता की चूत के ही दीवाने थे। बस वह सुनीता को अपने लण्ड को सुनीता की गाँड़ पर महसूस करवाना चाहते थे। सुनीता जस्सूजी का लण्ड अपनी गाँड़ पर महसूस कर काफी उत्तेजित हो रही थी। सुनीलजी ने सुनीता की चूत में अपना लण्ड पेलना शुरू किया तब जस्सूजी को भी मौक़ा मिला की उनका लण्ड भी सुनीता की गाँड़ में काफी टॉच रहा था। हालांकि जस्सूजी ने अपना लण्ड सुनीता की गाँड़ के छिद्र में नहीं डाला था। अपने दोनों हाथों में जस्सूजी ने सुनीता के भरे फुले हुए स्तनोँ को दबा कर पकड़ रखा था।
सुनीता के जहन में एक अभूतपूर्व रोमांच और उत्तेजना भरी हुई थी। उसे अपने स्त्री होने के गर्व की अनुभूति हो रही थी। अपने बदन के द्वारा सुनीता अपने दो अति प्रिय मर्दों को एक अनूठा अनुभव करा रही थी। सुनीता जानती थी की जितना रोमांच सुनीता के ह्रदय में उस समय दो मर्दों से एक साथ चुदवाने में था शायद उतना ही या शायद उससे ज्यादा अद्भुत रोमांच और उत्तेजना का अनुभव उसके दोनों प्यारे मर्दों को भी उस समय हो रहा था।
सुनीलजी ने अपनी पत्नी की रस भरी चूत में फुर्ती से अपना लण्ड पेलना शुरू किया। उनके चुदाई के झटके के कारण ना सिर्फ सुनीता का बदन जोर से हिल रहा था, बल्कि उसके साथ साथ सुनीता के पीछे चिपके हुए जस्सूजी का बदन भी जोर से हिल रहा था। उस समय जस्सूजी, सुनीता और सुनीलजी के बदन जैसे मिल कर एक ही गए हों ऐसा दिख रहा था।
सुनीलजी दो मर्दों से सुनीता को चुदवाने अपने मन की इच्छा पूरी होने के कारण काफी उत्तेजित और उत्साहित थे। उनकी बीबी भी दो मर्दों से निच्छृंखल भाव से चुदवाने आनंद लेकर बहुत उत्तेजित और खुश थी। उस रात सुनीलजी अपने आप को नियंत्रित रखना नहीं चाहते थे। अपनी पत्नी को इस अनूठी परिस्थिति में चोदते हुए वह इतने ज्यादा उत्तेजित हो गए थे की उनके लिए अपने वीर्य को दबाये रखना काफी मुश्किल लग रहा था।
वह अपनी बीबी की चूत की सुरंग में अपना वीर्य छोड़ना चाहते थे, पर उन्हें पता नहीं था की उस समय सुनीता की माहवारी की हालात क्या थी। अपने अंडकोष में खौलते हुए वीर्य चाप को वह रोक नहीं पा रहे थे। वह एकदम उत्तेजित हो कर सुनीता के बदन से एकदम चिपक कर सुनीता की चूत में हलके हलके झटके मार कर उसे चोदने लगे। सालों से पति से चुदवाने के अनुभव से सुनीता समझ गयी की उसके पति का धैर्य (या वीर्य) अब छूटने वाला था और वह झड़ने वाले थे।
सुनीता ने पहले ही सोच समझ कर अपने आप को गर्भ धारण से सुरक्षित रखने के लिए आवश्यक तैयारी कर रक्खी थी। घर से निकलने के पहले ही वह भली भाँती जानती थी की उस यात्रा में उसकी अच्छी खासी चुदाई होने वाली थी।
सुनीता ने अपने पति के कानों में फुसफुसा कर शर्माते हुए कहा, “जानू, अपने आपको रोकिये मत। अपना सारा माल मुझ में निकाल दीजिये। आप के झड़ने के बाद मुझे जस्सूजी से भी पेलना है। आप ने जस्सूजी का मोटा और तगड़ा टूल तो देखा ही है। आप की मलाई मेरे अंदर रहेगी तो मुझे जस्सूजी का मोटा टूल लेने में कुछ और आसानी रहेगी।
सुनीता की बात सुनकर सुनीलजी ने एक के बाद एक हलके पर जोरदार धक्के मारकर अपने लण्ड को सुनीता की चूत में पेलते रहे। सुनीलजी के दिमाग में अचानक एक धमाके के साथ उनके लण्ड के छिद्र से फव्वारे की तरह उनके वीर्य की पिचकारी निकली और उनकी बीबी सुनीता की चूत की पूरी सुरंग जैसे सुनीलजी के वीर्य से लबालब भर गयी।
सुनीता को अपनी चूत में अपने पति के गरमा गरम वीर्य की पिचकारी छूटने का अनुभव हुआ तो वह भी उत्तेजना के चरम पर पहुँच गयी। सुनीता के लिए भी उस दिन की घटना एक अद्भुत अनुभव और उत्तेजना का अनुभव था। वह भी अपने आप को रोकना नहीं चाहती थी। पति के साथ उनके बैडरूम में तो वह करीब करीब हर रोज चुदती थी। और ऐसा करते हुए रोमांच भी होता था। पर उस समय की बात कुछ और ही थी। पहाड़ों और वादियों में कुदरत की गोद में अपने प्यारे अझीझ दो मर्दों से एक साथ चूदवाना जिंदगी का असाधारण अनुभव था।
सुनीता का बदन भी उत्तेजना के कारण कांपने लगा और एक हलकी सी सिसकारी के साथ सुनीता भी झड़ गयी। उस समय सुनीता के दिमाग में भी अभूतपूर्व सा उत्तेजना भरा धमाका जैसे हुआ। वह अपने पति की बाँहों में समा गयी और बार बार उनसे चिपक कर “सुनील आई लव यू वैरी मच” कहती हुई हांफती अनूठे रोमांच का एहसास करने लगी।
झड़ते ही सुनीता के दिमाग में जैसे एक अभूतपूर्व शान्ति और ठहरे हुए आनंद का अंतरानुभव हुआ। तन और मन में जैसे एक धीरगंभीर पूर्णता प्रतीत हुई। अपने पति के साथ ऐसा अनुभव सुनीता ने शायद सुहागरात को ही किया था।
कुछ देर आँखें बंद कर के शान्ति से पड़े रह कर आराम करने के बाद सुनीता ने आँखें खोल अपने पति की आँखों में आँख मिलाकर देखा। अपने प्रेमी और अपने पति दोनों से अच्छी खासी चुदाई होने के बाद अपनी बीबी के चेहरे पर कैसे भाव आते हैं यह देखने के लिए सुनीलजी तो बस एकटक अपनी बीबी के संतृप्त चेहरे को देखे जा रहे थे।
सुनीता की आँखें जैसे ही मुस्कुराते हुए अपने पति से मिलीं तो सुनीता ने शर्मा कर अपनी नजरें झुका लीं। पति ने अपनी बीबी सुनीता की ठुड्डी पकड़ कर उसका चेहरा ऊपर उठा कर सुनीता के होँठों पर प्यार भर चुम्बन किया।
सुनीलजी जानते थे की जस्सूजी का तो अभी तक काम पूरा नहीं हुआ था। सुनीलजी जस्सूजी की काफी लम्बे अरसे तक बगैर झड़ने के चुदाई करने की क्षमता से बड़े प्रभावित हुए थे। उन्होंने देखा था की जस्सूजी ने सुनीता को करीब आधे घंटे तक एक से बढ़ कर एक पोजीशन में रख कर कितने बढ़िया तरीके से चोदा था और फिर भी वह झड़े नहीं थे। सुनीता जरूर थक गयी थी पर जस्सूजी और उनका कड़ा लण्ड दोनों वैसे के वैसे ही खड़े थे।
सुनीलजी को लगा की शायद जस्सूजी को चोदने के लिए काफी औरतें मिल जाती होंगीं, जिसके कारण उनमें इतनी टिकने की क्षमता आयी। पर सच यह था की जस्सूजी तन से और मन से बड़े ही सजग और फुर्तीले थे। उनमें एक कठोर संकल्प करने की अद्भुत क्षमता थी। ऐसी क्षमता करीब करीब हर जवान में होनी चाहिए और ज्यादातर होती है।
बिना थके मीलों तक चलते दौड़ते और जमीन पर रेंगते हुए यह क्षमता एक सुनियोजित शारीरिक व्यायाम सेना का हिस्सा के कारण पैदा होती है जो एक आम नागरिक के लिए कल्पना की विषय ही हो सकती है।
सुनीलजी देखना चाहते थे की ऐसे करारे, फुर्तीले और शशक्त बदन वाला इंसान झड़ने पर कैसे महसूस करता है। साथ साथ में वह सुनीता की फिर से अच्छी खासी चुदाई देखना चाहते थे।
सुनीलजी ने मुस्कुराते हुए अपनी बीबी को चुम कर उसके कंधे पर हाथ रख कर उसके बदन को करवट लेकर अपने दोस्त की और घुमा दिया। सुनीता तो पहले से ही जस्सूजी का खड़ा कड़ा लण्ड अपनी गाँड़ को टोचता हुआ महसूस कर ही रही थी। उसके ऊपर जस्सूजी के दोनों हाथ सुनीता के गोल गुम्बजों को जकड़े हुए थे। सुनीता को अब जस्सूजी का वीर्य अपनी चूत की सुरंग में उंडेलवाना था।
सुनीता के मन में आया की अच्छा होता की उसने गर्भ निरोधक सुरक्षा ना अपनायी होती। वह इस पूर्ण शशक्त जवान के वीर्य से पैदा हुए बच्चे की माँ अगर बन पाती तो उसके लिए गर्व का विषय होता। पर खैर, अभी वह जस्सूजी का गरमा गरम वीर्य तो अपनी चूत की सुरंग में खाली करवा ही सकती थी।
सुनीता ने घूम कर जस्सूजी की नज़रों से अपनी स्त्री सहज लज्जा भरी नजरे मिलायीं। नजरें मिलते ही जस्सूजी ने झुक कर अपनी प्रियतमा सुनीता को अपनी बाँहों में समेट कर सुनीता रस भरे होँठों पर एक गहरा और प्यार भरा चुम्बन किया।
फिर अपना सर थोड़ा ऊपर उठाकर सुनीता के पीछे लेटे हुए अपने दोस्त और सुनीता के पति सुनीलजी की और देखा। शायद वह सुनीलजी से उनकी बीबी को चोदने की सहमति मांगने की औपचारिकता पूरी करना चाहते थे। सुनीलजी समझ गए और उन्होंने जस्सूजी का हाथ जो नंगी सुनीता के नितम्बों पर टिका हुआ था उसे पकड़ कर दबा कर अपनी अनुमति दे दी।
सुनीता प्रिय पति और प्रेमी की यह दोस्ती देख कर मन ही मन खुश हो रही थी। ऐसा सौभाग्य बहुत ही कम स्त्रियों को प्राप्त होता है। सुनीता जस्सूजी के होँठों से अपने होँठ मिलाये और उनके प्यार भरे चुम्बन को अपने रसीले होँठ सौंप कर और अपनी जीभ को जस्सूजी की जीभ से रगड़ कर सुनीता जस्सूजी उसे चोदने के लिए लालायित कर रही थी।
जस्सूजी को निमत्रण की जरुरत हो थी नहीं। वह तो अपनी प्रेमिका को चोदने के लिए तैयार ही थे। पति की अनुमति भी मिल ही गयी थी। तो देर किस बात की? जस्सूजी ने अपनी प्रेमिका और सुनीलजी की पत्नी सुनीता को अपने ही बगल में सुलाकर थोड़ा ऊपर निचे एडजस्ट कर सुनीता की अपने स्त्री रस और सुनीलजी की मलाई से भरी हुई चूत पर अपना लंबा, मोटा, छड़ के सामान तन कर खड़ा हुआ और ऊपर की थोड़ा सा और मुड़ा हुआ लण्ड सटा दिया। सुनीता को अपनी बाहों में पकड़ कर जस्सूजी ने एक हल्का सा धक्का मारकर सुनीता को इशारा किया की वह उसे सही जगह पर रखे और थोड़ा सा अपनी चूत पर रगड़े।
सुनीता भी तो तैयार थी। सुनीता ने फुर्ती से जस्सूजी का लण्ड अपनी हथेली में पकड़ कर उसे अपनी चूत के प्रेम छिद्र के द्वार पर थोड़ा सा रगड़ कर रख दिया। सुनीता की चूत वैसे ही अपने पति के वीर्य की मलाई से लबालब भरी हुई थी। उसे पता था की यदि जस्सूजी थोड़ा सावधानी बरतेंगे तो उस समय उसे जस्सूजी के इतने मोटे लण्ड को अंदर घुसाने में कोई ज्यादा तकलीफ नहीं होगी।
सुनीता ने जस्सूजी के लण्ड को प्रेम छिद्र पर रख कर जस्सूजी को उनकी छाती की निप्पल पर एक प्यार भरा चुम्बन किया। यह जस्सूजी के लिए चुदाई शुरू करने का इशारा कहो या आदेश कहो, था।
जस्सूजी ने पहले थोड़ा सा अपना लण्ड अपनी प्रेमिका की चूत की सुरंग में घुसाया और पाया की सुनीलजी की मलाई से लबालब भरे हुए होने के कारण उन्हें अपने लण्ड को अंदर घुसाने में ज्यादा दिक्कत नहीं हुई। पर फिर भी वह जानते थे की प्रेमिका की चूत तो अब उनकी ही हो चुकी थी। उसे उनको सावधानी से कोई नुक्सान ना पहुंचाए बिना चोदना था।
उन्हें सुनीता को एक अद्भुत आनंद भी देना था साथ साथ में उन्हें सुनीता की सेहत और दर्द का भी ख्याल रखना था। जस्सूजी चाहते थे की सुनीता को वह एक ऐसा अनूठा उन्माद भरा आनंद की अनुभूति कराएं की जिससे सुनीता जस्सूजी से वह आनंद अनुभव करने के लिए बार बार चुदवा ने के लिए मजबूर हो जाए। जस्सूजी ने फिर एक और धक्का दिया और उनका लण्ड सुनीता की चूत में आधा घुस गया। सुनीता को अपनी चूत के फैल कर अपनी पूरी क्षमता से खिंचा हुआ होने के कारण थोड़ा सा कष्ट हो रहा था पर वह सह्य था।
जस्सूजी के प्यारे और गरम लण्ड की अपनी चूत में उन्माद भरी अनुभूति सुनीता के लिए वह दर्द सहने के लिए पर्याप्त से काफी ज्यादा थी। सुनीता ने जस्सूजी के लण्ड को और घुसाने के लिए अपनी गाँड़ से धक्का दिया ताकि वह जस्सूजी को बिना बोले यह एहसास दिलाना चाहती थी की उसे कोई ख़ास दर्द नहीं महसूस हो रहा था।
जस्सूजी ने एक और धक्का दे कर अपना लण्ड लगभग पूरा घुसेड़ दिया। जस्सूजी का लण्ड जो की पूरा तो नहीं घुस पाया था फिर भी सुनीता के मुंह से एक हलकी सी चीख निकल पड़ी। जस्सूजी ने महसूस किया की उस बार सुनीता की वह चीख में दर्द कम और उन्माद ज्यादा था।
सुनीता नेअपने पति सुनीलजी का लण्ड अपनी गाँड़ पर रगड़ता हुआ महसूस किया। जस्सूजी को अपनी बीबी को चोदने की शुरुआत करते हुए देख कर ही उनका लण्ड जो की एकदम सो रहा था फिर से उठ कर खड़ा हो गया। सुनीता ने पीछे हाथ कर अपने पति का हाथ अपने हाथोँ में लेकर उसे दबाया।
सुनीलजी ने अपनी नंगी बीबी की कमर के ऊपर से अपना हाथ हटा कर पीछे से अपनी बीबी के फुले रस भरे गोल गुम्बज के सामान मम्मों पर रख दिया और वह उसे प्यार से सहलाने और दबा कर मसलने लगे। अपने प्रेमी जस्सूजी का लण्ड अपनी चूत में रहते हुए अपने पति से अपने स्तनों को मसलना सुनीता को कई गुना आनंद दे रहा था। उसे लगा की उस यात्रा में भले ही कितने ज्यादा कष्ट हुए हों, पर यह अनुभव के सामने वह सब गौण लगने लगे थे।
सुनीता ने अपनी गाँड़ हिलाकर अपने पति का लण्ड अपनी गाँड़ की दरार में ला दिया। अगर सुनीलजी के मन में सुनीता की गाँड़ में उनका लण्ड घुसाने की इच्छा हो तो वह घुसा सकते थे; यह इशारा सुनीता ने बोले बिना अपने पति को करना चाहती थी। पर सुनीलजी जानते थे की सुनीता को अपनी गाँड़ मरवाना अच्छा नहीं लगता था। कई बार सुनीता ने अपने पति को गाँड़ मारने से रोका था। शायद सुनीता की गाँड़ का छिद्र उसकी चूत के छिद्र से भी छोटा था।
जस्सूजी का लण्ड कुछ ही देर में प्यार से सुनीता की चूत में अंदर बाहर करने से लगभग पूरा ही घुस चुका था। सुनीता की चूत की सुरंग पूरी भर चुकी थी। जस्सूजी ने सोचा की अब और अपना लण्ड अंदर घुसाने से सुनीता की बच्चे दानी और उसकी चूत की सुरंग का फट जाने का डर था। जस्सूजी ने इस कारण अपना लण्ड उतना ही घुसा कर संतोष माना।
सुनीता जस्सूजी से पूरी तरह चुदवाना चाहती थी। जैसे जस्सूजी चाहते थे की वह सुनीता की ऐसी चुदाई करें की सुनीता को बार बार जस्सूजी से चुदवाने का मन करे वैसे ही सुनीता चाहती थी की वह जस्सूजी को ऐसा आनंद दे की जस्सूजी का सुनीता को बारबार चोदने का मन करे। आग दोनों तरफ बराबर की लगी हुई थी। अब ऐसा नहीं होगा की सुनीता जस्सूजी से चुदवाना नहीं चाहेगी।
सुनीलजी भी यह भली भाँती जान गए थे की अब सुनीता जस्सूजी के मोटे लण्ड से बार बार चुदवाना चाहेगी। वह भी उसके लिए तैयार थे। बद्द्ले में उन्हें पता था की उनके लिए ज्योति को चोदने का रास्ता भी खुल जाएगा।
पढ़ते रहिये.. क्योकि यह कहानी आगे जारी रहेगी!
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