This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: [email protected]. Starting price: $2,000
आज के दिन का ज़रूर मेरी जिंदगी से कोई गहरा नाता है, दो साल पहले यही दिन था जब मैंने पहली बार किसी स्त्री को नग्न देखा था, वो भी जबरदस्त ढंग से चुदाई करवाते हुए लाइव… आज फिर से देखने का मौका मिल सकता है.
आज मैं बड़ी दीदी अनीता और राजन जीजाजी के घर उनके मुन्ने को देखने मम्मी के साथ आया हुआ हूँ. मैंने दीदी के बगल वाला कमरा लिया है. मेरे और दीदी के कमरे के बीच के एक दरवाजा है, दरवाजे के ऊपर शीशे वाले हिस्से में दीदी के कमरे की तरफ से ही टॉम एंड जेरी की तस्वीर वाला पेपर चिपका हुआ है. मैंने मौका देखकर टॉम की दोनों आँखो का पेपर खरोंच दिया है. अब कुर्सी लगाकर मेरे कमरे से दीदी के कमरे का लगभग हर हिस्सा टॉम की आँखों से दिख रहा है.
अभी दो साल पहले की बात बताता हूँ:
छोटी दीदी सुनीता की शादी की रात… बारिश आने के पूरे आसार थे. एक बजे जब शादी समाप्त हुई तो बूँदा-बाँदी शुरू हो चुकी थी. दूल्हा दुल्हन यानि छोटी दीदी सुनीता और उनके पति को सुहागकक्ष में भेज दिया गया और सारे लोग अपने सोने के लिए जगह ढूँढने लगे. हमारे यहाँ शादी वाली रात को ही लड़की के मायके में ही सुहागरात होती है.
बुआजी पिछली तीन रातों की तरह कोमल भाभी के घर जाने के लिये निकली. आज छत पर तो सोया नहीं जा सकता तो मैंने स्टोररूम में देखा, थोड़े अड्जस्टमेंट से एक बिस्तर वहाँ लगाया जा सकता था.
तभी मान मुझे देखते ही बोली- तू बुआ को पहुँचाने नहीं गया? कोमल का घर दूर है और बारिश होने वाली है, जल्दी से उनके पीछे जा.
मैं बाहर निकला गाँव के अंदर का रास्ता काफ़ी लंबा था परन्तु शॉर्टकट वाले सीधे रास्ते में खेतों से होकर गुज़रना पड़ता था. तेज बिजली चमक रही थी, मैंने तीन चार अजनबियों को खेतों की ओर जाते हुए देखा. शायद बाराती थे और टायलेट के लिए उधर खेतों की तरफ जा रहे थे. मैं भी उसी रास्ते पर बढ़ रहा था क्योंकि शॉर्टकट यही था. थोड़ी देर में वो लोग अंधेरे में ओझल हो गये.
तभी तेज बारिश शुरू हो गयी, मैं तुरंत एक बड़े पेड़ के नीचे रुका. रुक रुक कर चमक रही बिजली में पगडंडी से सटे पुराने स्कूल के खंडहर के बरामदे में मुझे कोमल भाभी और बुआ की झलक दिखाई पड़ी. मैंने चैन की साँस ली.
दस मिनट बाद वो दोनों मुझे कहीं नज़र नहीं आई. ‘कहाँ चली गयी?’ मैं बड़बड़ाया और उसी तेज बारिश में मैं खंडहर की तरफ बढ़ने लगा.
स्कूल के अहाते में पहुँचते ही मेरे कदम ठिठक गये. अंदर से भाभी और बुआ की कराहने की आवाज़ आ रही थी. मैं अंदर की और लपका, टूटी खिड़की से जैसे ही मैंने अंदर झांका, मैं सन्न रह गया.
वही चार अजनबी बाराती, जिन्हें मैंने खेतों की ओर जाते देखा था, दो दो के गुट में भाभी और बुआ को दबोचे हुए थे. बुआ बिल्कुल नंगी अपने ही साड़ी पर लेटी थी. एक आदमी ने अपना लंड निकाल कर उनके मुँह में ठूँसा हुआ था और दूसरा उनकी जांघों के बीच बैठकर उन्हें ज़ोर ज़ोर से चोद रहा था. बुआ भी अपना कमर उचका कर उसका साथ दे रही थी. यानि अपनी बेरहम चुदाई का मजा ले रही थी.
इधर कोमल भाभी की भी साड़ी खुल कर नीचे पड़ी थी, उनके ब्लाऊज के सारे बटन टूट चुके थे और पीछे वाला आदमी खड़े खड़े उनकी ब्रा ऊपर कर उनकी चूचियों को बेरहमी से मसल रहा था. दूसरा आदमी उनके पेटीकोट को गैप वाली जगह से फाड़ कर उनके सामने घुटनों के बल बैठ कर भाभी की चूत को कुत्ते की तरह चाट रहा था. भाभी उसका सर अपनी चूत पर दबाती हुई मस्ती में सीसिया रही थी यानि वो भी मजा ले रही थी.
उन अजनबियों के साथ मारपीट करना फ़िजूल था. वैसे भी भाभी और बुआ को नंगी देखकर मेरा लंड तंबू बन चुका था. मैं उसे आज़ाद कर अपने हाथों से सहलाते हुए भाभी और बुआ को चुदते हुए देखने लगा. तभी उस आदमी ने उठ कर भाभी के पैरों को फैलाकर अपना फंफनाता लंड भाभी की चूत में पेल दिया. “आहह…” भाभी की सिसकारी गूँजी.
उधर बुआ को चोदने वाला आदमी झड़ चुका था. दूसरा आदमी बुआ को कुतिया बनाकर पीछे से पेल रहा था. इधर भाभी की गांड में भी दूसरे ने अपना लंड डाल दिया था और उनको सैंडविच बना कर खड़े खड़े दोनों तरफ़ से पेल रहा था. अंदर बुआ और भाभी की कामुक कराहट फैली थी.
कोमल भाभी को तीन लोगों ने जबकि बुआ को दो लोगों ने बारी बारी पेला. लेकिन सारे फिसड्डी निकले. बीस मिनट में ही सारा कार्यक्रम समाप्त हो गया. मैं भी झड़ चुका था. सारे अजनबी भाग गये.
तभी बुआ साड़ी लपेटती हुई फुसफुसाई- कुत्तों ने सारे कपड़े खराब कर दिए परन्तु ठीक से मज़ा भी नहीं दिया. “इस मामले में अनीता बहुत भाग्यशाली है.” भाभी बोली. “क्या कहती हो? क्या उसके साथ भी ऐसा??” बुआ ने उत्सुकतावश पूछा. “नहीं बुआ… वो राजन जीजाजी का बहुत तगड़ा है ना… बिल्कुल घोड़े की माफिक…” “सच में?” बुआ आश्चर्यमिश्रित स्वर में बोली- तुमने लिया है? “हाँ बुआ… मुझे तो दो लोगों से एक साथ चुद कर भी उतना मज़ा नहीं आया जितना अकेले जीजाजी के साथ…”
दोनों अब पगडंडी पर पहुँच गयी, मैं जीजाजी के बारे सोचते हुए वापिस लौटने लगा.
घर पहुँच कर देखा तो सारे लोग अपना जगह पकड़ चुके थे. स्टोर रूम में भी मेरे चुने हुए जगह पर बिस्तर लगा था. जो भी था शायद बाथरूम (जो स्टोररूम के ठीक सामने था) गया था. कमरे में ज़ीरो वॉट का बल्ब जल रहा था और पंखा चल रहा था. मैंने इधर उधर देखा, खिड़की खुली थी लेकिन हवा नहीं आ रही थी क्योंकि सामने एक दीवार से दूसरी दीवार तक रस्सी बंधी थी जिस पर ढेर सारे कपड़े टाँगे पड़े थे. मैं कपड़े हटाने के लिए आगे बढ़ा तो देखा वहाँ एक बेंच पड़ा था जिस पर दो बोरियाँ रखी थी. मेरे सोने का जुगाड़ हो गया, मैंने बोरियाँ उठा कर नीचे रखी, गद्दे स्टोररूम में ही पड़े थे, मैंने एक के ऊपर एक दो गद्दे डालकर अपने भीगे कपड़े निकाले और वहाँ चड्डी में ही बैठ गया. खिड़की से ठंडी हवा आ रही थी. मैं चुपचाप वहीं सो गया.
फिर चूड़ियों की आवाज़ से ही मेरी नींद खुली… घड़ी देखी, चार बज रहे थे, मैंने रस्सी पर टाँगे कपड़ों के बीच से झाँका तो मेरी सिसकारी निकलते निकलते रह गयी. दुल्हन के कपड़ों में सजी सुनीता दीदी सामने दीवार से चिपकी खड़ी थी, राजन जीजा जी उनको दीवार से सटा कर उनके होंठों को चूस रहे थे और हाथों से दीदी के ब्लाऊज के बटन खोल रहे थे. देखते ही देखते दीदी की चुचियाँ ब्रा से भी आज़ाद होकर बाहर उछल पड़ी. मस्त मांसल चूचियों के बीच निप्पल प्रत्याशा में खड़े अपने मर्दन का इंतजार कर रहे थे. जीजा जी उसे मसलने लगे. फिर झुककर उसे चूसने लगे.
दीदी अपना हाथ नीचे कर जीजाजी के लंड को मुठिया रही थी.
जीजाजी और झुके और दीदी की साड़ी पेटीकोट को उठाकर दीदी के हाथ में पकड़ा दिया और खुद घुटने के बाल बैठकर दीदी की पैंटी को निकाल दिया और उनकी नंगी बुर को चाटने लगे. दीदी मचलने लगी. आहह… मेरा दिल धाड़ धाड़ कर रहा था. मैं पहली बार पूरे प्रकाश में खुली बुर देख रहा था. वो भी अपनी बहन की… उसकी सुहागरात को! अपना पेटीकोट उठाए हुए अपने जीजा से बुर चटवाती हुई… मस्ती में अपने होंठ काटती हुई.
फिर दीदी दीवार से सट कर बैठ गयी और जीजाजी का लंड अपने मुँह में लेकर चूसने लगी. मोटा लंड मुश्किल से उनके मुँह में समा रहा था. तभी जीजा जी ने पूछा- तुम्हारे पति को कुछ पता चला? “नहीं…” जीजाजी का लंड मुँह से निकालते हुए दीदी बोली- एकदम अनाड़ी हैं… दो शॉट मारा और शांत… जीजा जी, मुझे आपकी बहुत याद आएगी! “घबराओ मत… मैं हूँ ना… तुम्हारी उबलती चूत को ठंडा करने के लिए…”
फिर जीजाजी ने सुनीता दीदी को बेड पर चित लिटा दिया और उनकी नंगी जाँघों के बीच आकर अपना मूसल बुर के छेद पर भिड़ा कर अंदर ठेलने लगे. मेरी साँसें रुकने लगी. इतना मोटा दीदी की छोटी सी बुर में जाएगा कैसे? आख़िरकार जीजाजी ने अंदर पेल ही दिया… दीदी की सिसकी कमरे में गूँजी “इसस्स्स्स सस्स…”
अब जीजाजी ने दीदी को धकाधक पेलना शुरू किया, भीगा लंड बाहर आता और खच… की आवाज़ के साथ अंदर घुस जाता. दीदी बेडशीट को ज़ोर से पकड़े थी… जीजाजी पेले जा रहे थे… दीदी अपनी कमर उचकाते हुए चुदवा रही थी.
मेरा लंड कच्छे से बाहर निकल कर लपलपा रहा था मानो उसे दस वियाग्रा का डोज दे दिया गया हो. दीदी को अपने जीजा से चुदते देख मैं भी अपना लंड मसलने लगा. उधर जीजाजी झड़ गये, इधर मैं…
तूफान के गुजरने के बाद दीदी जीजा जी से लिपट कर खूब रोई मानो सुबह के बजाय अभी ही उनकी विदाई हो!
सुबह दीदी की विदाई के बाद धीरे धीरे सारे मेहमान भी जाने लगे पर बुआ नहीं गयी. आज पूरे दिन बुआ जीजा जी की खातिरदारी में ही लगी रही. कई बार बुआ ने वेवजह झुक कर जीजा जी को अपने हुस्न का दीदार करा चुकी थी और साथ में मुझे भी, क्योंकि आज मेरी नज़र बुआ के इर्द गिर्द ही घूम रही थी.
रात को सोने के समय सुहागकक्ष अनीता दीदी जीजा जी को मिला और मेरा कमरा बाकी सारे लोगों के लिए. लेकिन बुआ ने एलान किया कि वो काफ़ी थकी हैं इसलिए अकेली सोयेंगी. जीजाजी ने बुआ को स्टोर रूम में जगह के बारे में बताया, बुआ स्टोर रूम में बिस्तर लगाकर खाना खाने चली गयी. मेरे बारे में किसी ने सोचा ही नहीं. मैंने चुपचाप पुरानी जगह को चुना और लेट गया.
बुआ ने आते ही दरवाजा बंद किया और चित लेट गयी, फिर उन्होंने अपने घुटने मोड़ कर अपनी साड़ी और पेटीकोट नीचे खिसकाई. ओह… बुआ की फूली चूत मेरे आँखों के सामने चमक रही थी.
फिर उन्होने एक लंबा बैंगन निकाला और अपने मस्तायी चूत में घुसाने लगी. बुआ ने आँखे बंद कर रखी थी और उम्म्ह… अहह… हय… याह… करते हुए पूरे बैंगन को अपनी चूत में घुसेड़ कर तेज़ी से अंदर बाहर कर रही थी. वो ऐंठते हुए झड़ रही थी… झड़ने के बाद बैंगन फेंक कर नंगी ही सो गयी. बुआ की ऐसी चुदास देख कर मेरा मन कर रहा था कि जाकर बुआ पर चढ़कर उनको हचक हचक कर चोदूं… पर मन मसोस कर रुका रहा… अगर कहीं गुस्सा हो जाती तो मैं कहीं का नहीं रहता.
एक घंटे बाद बाहर हल्की आवाज़ हुई, बुआ ने झट से दरवाजे पर पहुँचकर झिर्री से बाहर झाँका और दरवाजा खोल दिया… जीजा जी बाथरूम जा रहे थे. “जमाई जी, लगता है कोई कीड़ा घुस गया है.” बुआ अपने बदन को खुजलाते हुए बोली- बहुत तंग कर रहा है. जीजाजी अंदर आकर धीमे से बोले- बेड झाड़ लीजिए बुआजी!
बुआ झुक कर बेड झाड़ने लगी… उनके भारी चूतड़ जीजाजी की जाँघों से टकरा रहे थे. जीजाजी भी माहिर खिलाड़ी थे… मौका देखा और बुआ के पिछवाड़े से सट गये. “आहह… लगता है कीड़ा मेरे कपड़ों में घुस गया है.” अपने चूतड़ों को जीजाजी के मूसल पर रगड़ती हुई बुआ खड़ी हुई. “बुआजी, आप अपने कपड़े खोलकर झाड़ लीजिए.” जीजाजी ने धीमे से कहा. “दरवाजा तो बंद कर दीजिए, कोई देखेगा तो क्या कहेगा?”
जैसे ही जीजाजी दरवाजे की तरफ पलटे और दरवाजा बंद किया, बुआ ने साड़ी खोल कर फेंकी और खिड़की की तरफ घूमकर अपना पेटीकोट आगे से जाँघों तक उठा कर झूठ मूठ झुक के देखने लगी.
जीजा जी बुआ के पास आए और उनके पीछे चिपकते हुए बोले- अच्छा कीड़ा वहाँ घुस गया है. लाइए मैं मसल कर मार दूं. और अपना हाथ आगे लाकर बुआ की चूत को मुठ्ठी में भींच लिया. “आहह…” बुआ सिसकी.
जीजाजी अपनी उंगली बुआ की चूत में पेलकर तेज़ी से अंदर बाहर करने लगे- बुआजी, लगता है कीड़े ने आपको गीला कर दिया है. “हां जी, लेकिन वो ऐसे नहीं मरेगा, उसे किसी मोटे डंडे से दबा कर मारिए.” बुआ सिसकारती आवाज में बोली. “अभी लीजिए…” यह कहते हुए जीजाजी ने बुआ को बेड पर झुका दिया और उनका पेटीकोट पीछे से उठाकर अपनी लुंगी खोलकर फनफनाते मूसल को उनकी पनियायी चूत में झटके से पेल दिया.
“उईईईई… माँ… मर गयी…” बुआ हौले से कराही लेकिन जीजाजी उनकी कराहट को नज़रअंदाज करते हुए बिना रुके पेलते रहे. बुआ तकिये को दांटों से दबाए अपनी जिंदगी की सबसे बेरहम दर्द भारी चुदाई का मज़ा लेने लगी और जब जीजाजी आधे घंटे बाद झड़े तो बुआ से खड़ा भी नहीं हुआ जा रहा था. हांफते हुए वहीं नंगी लेट गयी.
इस बात को दो साल हो गये. आगे कहानी में आप पढ़ेंगे कि मेरी आज की रात कैसी बीती.
इस रात की सुबह नहीं-2
This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: [email protected]. Starting price: $2,000