This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: [email protected]. Starting price: $2,000
लेखक: अभिनव गुप्ता संपादक एवम् प्रेषक: सिद्धार्थ वर्मा
अन्तर्वासना की पाठिकाओं एवम् पाठकों को सिद्धार्थ वर्मा का स्नेह भरा नमस्कार! लगभग तीन माह पहले मुझे अन्तर्वासना के एक पाठक एवम् मेरी रचनाओं के प्रशंसक अभिनव का सन्देश मिला जिसमें उसने उसके जीवन में घटी एक यौन सहवास सम्बन्धी घटना के बारे में बताया. जब अभिनव ने मुझसे उस घटना में मिले अनुभव को अन्तर्वासना के श्रोताओं के साथ साझा करने का अनुरोध किया तब मैंने उसे उस घटना को एक रचना के रूप में लिख कर भेजने के लिए कहा. कुछ दिन पहले ही अभिनव ने उस घटना को एक रचना के रूप में लिख कर मुझे भेजा था जिसे मैं संपादित करने के पश्चात अन्तर्वासना पर प्रकाशित करने के लिए प्रेषित कर रहा हूँ. अभिनव के द्वारा उसी के शब्दों में लिखी निम्नलिखित रचना आपके लिए प्रस्तुत है:
अन्तर्वासना की प्रिय पाठिकाओं एवम् पाठकों को मेरा अभिनंदन! मेरा नाम अभिनव है, मेरी आयु पच्चीस वर्ष की है और मेरा शरीर बहुत हृष्ट-पुष्ट एवम् तंदरुस्त है क्योंकि मैं स्कूल और कालेज में खेल कूद में बहुत भाग लेता था. मैं अब भी प्रतिदिन घर पर व्यायाम करता हूँ और कभी कभी व्यायामशाला में जा कर भी भार-उत्तोलन तथा विभिन्न प्रकार की कसरतें इत्यादि करता हूँ. मैं मूल रूप से देहली का निवासी हूँ तथा मेरा पूरा परिवार वहीं रहता है, लेकिन आई-टी में इंजीनियरिंग करने के बाद पिछले तीन वर्षों से बैंगलोर में नौकरी कर रहा हूँ.
तीन वर्ष पहले जब मैं बैंगलोर में आया था तब मैं पन्द्रह दिनों के लिए एक पेइंग गेस्ट-हाउस में रहा था लेकिन उसके बाद कंपनी ने मुझे रहने के लिए एक फ्लैट दिला दिया. मेरा फ्लैट एक बहुमंजिली इमारत के दसवें तल पर है और उसमें एक बैठक, एक बैडरूम, एक छोटा स्टोर कमरा, एक रसोई तथा एक बाथरूम है. मैं अधिकतर बैठक, बैडरूम, रसोई और बाथरूम को ही प्रयोग में लाता हूँ और छोटा स्टोर कमरे में एक फोल्डिंग चारपाई, दो खाली अटैची तथा कुछ फ़ालतू का सामान आदि पड़े रहते हैं.
उस फ्लैट में स्थानांतरण के बाद जब मुझे खाने पीने और घर के रख-रखाव की समस्या आई तब मैंने उसी इमारत के अन्य फ्लैट में काम करने वाली एक पचास वर्षीय वृद्ध महिला को घर का काम करने के लिए रख लिया. वह महिला जिसे सभी अम्मा कहते थी सुबह छह बजे ही आ जाती और मुझे चाय दे कर चौका बर्तन करती तथा मेरे लिए नाश्ता बनाती. मेरे तैयार होकर ऑफिस जाने के बाद वह दूसरे फ्लैट में काम निपटा कर फिर मेरे घर की सफाई आदि करती तथा मेरे कपड़े आदि धो कर सुखाने डाल देती.
क्योंकि वह मेरे ऑफिस जाने के बाद तक घर का काम करती थी इसलिए उसकी सुविधा के लिए मैंने उसे अपने फ्लैट की एक चाबी भी दे रखी थी. वह शाम को मेरे आने से पहले ही धुले हुए सूखे कपड़ों को प्रेस करने के लिए धोबी को दे आती थी और मेरे घर आते ही मुझे चाय बना कर देती तथा रात के लिए मेरा खाना बना कर अपने घर चली जाती.
क्योंकि मुझे अच्छा वेतन मिलता था इसलिए मैं उस वृद्ध महिला को उसके काम के लिए पाँच हज़ार प्रति माह देता था जिस कारण वह बहुत ही लग्न और ईमानदारी से मेरा काम करती थी. लगभग छह माह तक ऐसे ही लगन से काम करते रहने के बाद एक दिन उस वृद्ध महिला ने मुझसे कहा- साहिब, मेरी सबसे छोटी बहू के घर बालक होने वाला है इसलिए मुझे तीन-चार माह के लिए उसके पास जाना पड़ेगा. आप काम के लिए किसी दूसरी कामवाली को रख लीजिये अथवा अगर आप सहमत हों तो मैं अपनी मंझली बहू को आपके यहाँ काम के लिए लगा देती हूँ.
उसकी बात सुन कर मुझे एक बार तो झटका लगा लेकिन अपने को सम्हालते हुए मैंने कहा- अम्मा, आप यह क्या कह रही हो. आप तो मेरे घर का सभी काम अच्छे से जानती हो और उसे बहुत निपुणता से संभाल भी रखा है. अगर आप नहीं आओगी तो मेरा काम कैसे होगा? मैं किसी दूसरी कामवाली को कहाँ से ढूँढ कर लाऊं? आप अपनी जगह अपनी मंझली बहू को ही छोटी बहू के पास को क्यों नहीं भेज देती? मेरी बात सुन कर वह बोली- साहिब, यह जच्चा और बच्चा संभालने की बात है कोई सैर-सपाटा करने की बात नहीं है. आजकल की लड़कियाँ तो ऐसा कोई भी काम नहीं कर सकती. साथ में वह लड़की जो खुद अभी तक माँ नहीं बनी हो उसे तो पता ही नहीं होगा कि गर्भावस्था में एक जच्चा को क्या खाना पीना है. उसे तो यह भी नहीं पता है कि प्रसव के समय क्या करना होता है.
उसकी बात सुन कर मैंने कहा- अम्मा, तुम जैसा ठीक समझो वैसा ही प्रबंध कर दो. क्या जो घर का काम आप करती हो वह सब तुम्हारी मंझली बहू कर लेगी? मेरी बात सुन कर अम्मा बोली- आप चिंता नहीं करें, तुम्हें कोई कष्ट नहीं होगा. मैं जाने से दो सप्ताह पहले ही उसे रोज़ अपने साथ ले कर आऊंगी और उन दो सप्ताह में घर का सभी काम सिखा दूंगी.
उस माह के दूसरे सप्ताह में अम्मा रोजाना की तरह सुबह छह जब बजे काम पर आई तब वह अपनी मंझली बहू माला को भी साथ लेकर आई. माला बहुत ही सुन्दर एवम् आकर्षक नैन नक्श वाली स्त्री थी जिसका वर्ण बहुत हल्का गेहुँआ था, शरीर पतला और कद लम्बा था, उठे हुए उरोज और बाहर निकले हुए नितम्ब मध्यम नाप के थे, गर्दन लम्बी तथा पेट समतल था.
उसने हरे रंग की सूती साड़ी में अपना पूरा बदन छुपा रखा था और घर में घुसते ही मुझे बैठक में अख़बार पढ़ते हुए देख कर दोनों हाथ जोड़ कर प्रणाम किया. उत्तर में जैसे ही मैंने उसके प्रणाम का उत्तर दिया तभी अम्मा बोली- साहिब, यह मेरी मंझली बहू माला है जिसके बारे में मैंने आपसे बात करी थी. अब दो सप्ताह तक यह रोज़ मेरे साथ आएगी और यहाँ का सभी काम सीख लेगी ताकि दो सप्ताह के बाद जब मैं चली जाऊँगी तब यह आपकी अपेक्षा के अनुसार ही सभी कार्य करेगी. उत्तर में मैंने कहा- ठीक है अम्मा, इसे मेरी पसंद एवम् सभी आवश्यकताओं के बारे में अच्छे से समझा देना और क्या कैसे करना है यह भी सिखा देना!
उसके बाद मैं अख़बार पढ़ने लगा और वे दोनों रसोई में जा कर चौका एवम् बर्तन और सफाई आदि में व्यस्त हो गई.
लगभग सात बजे रोज़ की तरह अम्मा ने मुझे चाय दी और कहा- साहिब, इस माह की तीस तारीख को मैं छोटी बहू के पास जाऊंगी इसलिए अगर मुझे मेरी इस माह की पगार कल मिल जाती तो मैंने जो खरीदारी करनी है वह कर सकूँगी. मैंने उत्तर दिया- अरे अम्मा, इसमें अगर की क्या बात है? आप कल क्यों आज ही ले लो.
तब अम्मा ने एक और बात कही- साहिब, मेरा मंझला बेटा दुबई में काम करता है इसलिए मंझली बहू मेरे साथ रहती है. मेरे जाने के बाद वह अकेली रह जायेगी और जिस बस्ती में हम रहते हैं वह एक अकेली औरत के लिए बिल्कुल ही सुरक्षित नहीं है. इसलिए मेरे जाने के पश्चात मुझे मंझली बहू की सुरक्षा की चिंता लगी रहेगी. अम्मा की बात सुन कर मैंने कहा- आप उसके लिए किसी दूसरी सुरक्षित बस्ती में कोई अच्छा घर किराए पर ले दीजिये. वह बोली- पिछले दो माह से उसके लिए जगह ढूँढ रही हूँ लेकिन मुझे अभी तक कोई भी सुरक्षित जगह नहीं मिली. अगर कोई है भी तो वह बहुत दूर है या फिर वह ऐसी जगह है जो अवैध रूप से बनी हुई है और कभी भी गिराई जा सकती है.
मैंने कहा- अम्मा, मैं तुम्हारी समस्या को समझता हूँ लेकिन मैं इस बारे में तुम्हारी क्या मदद कर सकता हूँ? अम्मा तुरंत बोली- साहिब आप ही तो सब से अधिक सहायता कर सकते हो. अगर मेरे वापिस आने तक आप माला को इस घर के स्टोर कमरे में रहने की आज्ञा दे देंगे तो आपके द्वारा मेरे ऊपर इससे बड़ा कोई उपकार नहीं हो सकता. इसके लिए आप बेशक हमारी पगार में से जितना चाहे वह काट लीजिये लेकिन एक असहाय को आसरा जरूर दे दीजिये.
मैंने उसके अनुरोध पर अचंभित होते हुए कहा- अम्मा, आप यह क्या कह रही हो? एक अविवाहित पुरुष के घर में उसके साथ एक अकेली विवाहित स्त्री का रहना ठीक नहीं है. अड़ोसी-पड़ोसी और इमारत के बाकी सब लोग क्या कहेंगे? अम्मा बोली- लोगों का क्या है वे तो जो मन में आएगा वही बोलते रहेंगे. मुझे आप पर बहुत भरोसा है और अगर माला इस घर में रहेगी तो आपको कष्ट नहीं होगा तथा आपका सभी काम आपकी आवश्यकता के अनुसार समय-बद्ध तरीके से हो जाया करेगा. मुझे आशा है की आप इस बात को ध्यान में रखते हुए मना नहीं करेंगे.
पता नहीं अम्मा की बात सुन कर मुझे उन दोनों पर क्यों तरस आ गया और मैंने उन्हें कह दिया- ठीक है अम्मा, ऐसा करो, आप आज ही अपना और माला का सभी सामान ले कर यहाँ आ जाओ. इस तरह आप कुछ दिन साथ में रह कर सब ठीक से समायोजित कर सकोगी और माला को भी हर काम अच्छे से समझा दोगी.
नाश्ता करने के बाद मैं अम्मा को उस माह का वेतन दे कर ऑफिस चला गया और शाम को घर लौटने पर देखा की अम्मा और माला ने अपना सभी सामान लाकर स्टोर में रख दिया था. मुझे शाम की चाय नाश्ता कराने के बाद अम्मा रात का खाना बनाने लगी और माला स्टोर में समान सजाने लगी.
अम्मा उन दो सप्ताह में माला को घर का काम सिखाती रही और जब माला सारा काम संतोषजनक तरीके से करने लगी तब वह माह के अंतिम दिन अपनी छोटी बहू के पास चली गई.
कुछ ही दिनों में माला ने मेरे घर का काम ऐसे संभाल लिया था जैसे वह वर्षों से काम कर रही हो और अम्मा की तरह मेरे लिए हर काम बड़ी सफलता से समय पर कर देती.
अगले एक सप्ताह तक सब ठीक-ठाक चलता रहा और माला सुबह से रात तक घर काम करती तथा आराम एवम् सोने के लिए स्टोर में चली जाती. अगला दिन शनिवार था तथा छुट्टी होने के कारण मैं देर से उठा और जब रसोई में माला से चाय बना कर देने के लिए कहने गया तो उसे वहाँ नहीं पाया तब मैंने स्टोर में देखा तो वह वहाँ भी नहीं थी.
माला कहाँ गई होगी यह सोचते हुए जब मैं अपने कमरे की ओर लौट रहा था तब मुझे बाथरूम में नल चलने की आवाज़ सुनाई दी. पानी की आवाज़ को सुन और बाथरूम का खुला दरवाज़ा देख कर मैं समझा कि माला कपड़े धो रही होगी इसलिए मेरे कदम अनायास उस ओर मुड़ गए और मैं यकायक उसमें घुस गया.
बाथरूम में कदम रखते ही अंदर का नज़ारा देख कर मेरे पाँव आगे नहीं बढ़ पाये और दो क्षण के लिए माला को देख कर उल्टे पाँव वापिस कमरे में आ गया. कमरे में जब मैं बिस्तर पर बैठा तब मेरी आँखों के सामने, अपनी योनि से निकले खून को धोती हुई अर्ध-नग्न माला की छवि घूम रही थी.
कुछ क्षणों के बाद जब मुझे झाड़ू की आवाज़ सुने दी तब मैं दोबारा बाथरूम में घुसा तो देखा की माला ने अपनी योनि को ढक लिया था तथा वह फर्श पर बिखरे खून को झाड़ू से साफ़ कर रही थी. मुझे बाथरूम में देख कर माला बोली- बस मुझे एक मिनट और दीजिये. मैं अभी सब साफ़ कर देती हूँ फिर आप अपने दैनिक क्रिया से निपट लीजियेगा.
मैंने अनजान बनते हुए कहा- अच्छा मैं प्रतीक्षा करता हूँ, लेकिन यह खून कहाँ से आया? क्या तुम्हें कहीं चोट लगी है? मेरे प्रश्न सुन कर उसने शर्म से सिर झुका लिया तथा उसका चेहरा एवम् कान लाल हो गए और उसने बाथरूम से बाहर जाते हुए कहा- साहिब, सब ठीक है आप निश्चिंत रहिये और मुझे कहीं कोई चोट नहीं लगी है. आज सुबह से मुझे माहवारी शुरू हो गई है और यह उसी का खून था.
माला की बात सुन कर मैं चुप हो गया और सुबह की नित्य क्रिया से निपट कर बैठक में अख़बार पढ़ने बैठा ही था कि वह मेरी चाय दे गई. ऑफिस की छुट्टी होने के कारण मैं पूरा दिन घर पर आराम करता रहा और माला दिन भर रोजाना की तरह घर के काम में व्यस्त रही. रात को मैं तो समय पर खाना खा कर सोने चला गया और मुझे नहीं पता चला कि माला कब सोने गई थी.
उसके बाद अगले पाँच दिन यानि रविवार से बृहस्पतिवार तक बिल्कुल सामान्य निकल गए और कोई भी उल्लेखजनक प्रसंग नहीं हुआ. शुक्रवार सुबह सात बजे जब मैं उठा और मुझे लघु-शंका के लिए जाना था इसलिए बाथरूम की और बढ़ा तो वहाँ पानी चलने की आवाज़ सुन कर थोड़ा ठिठका. लेकिन दरवाज़ा खुला देख कर मैं बाथरूम के दरवाज़े के पास जा कर अंदर झाँका तो देखा पूर्ण नग्न माला कपड़े धो रही थी.
मैं वापिस कमरे में आ गया लेकिन माला ने शायद मुझे देख लिया होगा इसलिए एक मिनट के बाद ही उसकी आवाज़ आई- साहिब, आप अंदर आ जाइए मैंने अपने आप को ढक लिया है. मैं झिझकते हुए एक बार फिर बाथरूम में घुसा तो देखा की माला ने अपने शरीर को अपनी गीली साड़ी से ढक लिया था जो उसके जिस्म से बिल्कुल चिपकी हुई थी.
माला के बदन से चिपकी साड़ी में से उसका हर अंग मुझे दिख रहा था जिस कारण मेरा लिंग एक नाग की तरह अपना सिर उठाने लगा था. जब माला ने मुझे उस नाग के फन पर हाथ रख कर दबाते हुए देखा तब वह मुस्कराते हुए मेरी तरफ पीठ करते हुए बोली- साहिब, लगता है कि आपको बहुत तेज़ मूत आया है. मैं दूसरी तरह मुंह कर के बैठ जाती हूँ तब तक आप उससे निपट लीजिये.
पिछले शनिवार को हुई घटना के कारण मुझे माला की बात सुन कोई संकोच नहीं हुआ और मैंने भी मुस्कराते हुए झट से अपना लिंग निकाल कर मूतने लगा. जब मैं मूत्र विसर्जन कर रहा था तब मैंने देखा कि माला मुड़ कर मेरे आठ इंच लम्बे लिंग को बहुत ध्यान से घूर रही थी. जैसे ही मैंने अपना सिर उसकी ओर घुमा कर उसकी आँखों में झाँका तो वह शर्मा गई और झट से मुड़ कर दूसरी तरफ देखने लगी.
मैं मूत्र विसर्जन से निपट कर जब कमरे में जाकर बिस्तर पर लेटा तब माला के नग्न शरीर के हर अंग की छवि मेरी आँखों के आगे एक चलचित्र की तरह घूमने लगी और मेरा मन उसे नहाते हुए देखने की लालसा ने जकड़ लिया. इतने में जैसे ही मुझे शावर चलने की ध्वनि सुनाई दी, मैं समझ गया कि माला नहा रही होगी इसलिए मैं उठ कर बाथरूम में घुसा और पूछा- माला अभी और कितनी देर लगेगी? ज़रा जल्दी करो मुझे भी ऑफिस जाने के लिए नहाना एवम् तैयार होना है.
शावर की फुआर के नीचे नहाती पूर्ण नग्न माला ने जब मुझे उसके नग्न शरीर को घूरते हुए देखा तो अपने गुप्तांगों को हाथों और बाजुओं से छिपाते हुए बोली- बस समझिये नहा चुकी हूँ. अभी दो मिनट में बाहर आती हूँ.
माला के नग्न शरीर के ऊपर से फिसलती हुई पानी की बूँदें ऐसे लग रही थी जैसे सूर्य उदय के समय पेड़ एवम् पौधों की पत्तियों पर से मोती जैसी ओस की बूँदें फिसलती हैं. मैंने बाथरूम से निकल कर दरवाज़े के पास खड़ा हो कर माला के निकलने की प्रतीक्षा करने लगा.
इस बार बाथरूम में माला के नग्न शरीर के भरपूर दीदार हो जाने के कारण मेरा लिंग तन कर खड़ा हो गया था जिसे ना तो मैंने छिपाने की और ना ही दबाने की चेष्टा करी. कुछ देर के बाद माला ने अपने पेटीकोट को स्तनों के ऊपर बाँध कर और नीचे के शरीर को उसी से ढक कर बाहर निकली तब मैं दरवाज़े में ही खड़ा था.
अर्ध-नग्न माला जब मेरे पास से बाहर निकलने लगी तब मैंने थोड़ा से आगे सरक कर अपने लोहे जैसे सख्त लिंग को उसके जिस्म के साथ रगड़ने दिया. मेरे लिंग की रगड़ महसूस होने पर माला पलट कर मुड़ी और मुझे ऊपर से नीचे तक देखा और मेरे लोअर में बने तंबू को देख कर हंसती हुई वहाँ से भाग गई.
उसके बाद मैंने बाथरूम में जा कर अपने सभी कपड़े उतार कर दरवाज़े के बाहर रख दिए और नहाते हुए माला को आवाज़ लगाईं- माला, मैंने मैले कपड़े बाहर दरवाज़े के पास रख दिए है उन्हें उठा लो और मैं तौलिया लाना भूल गया हूँ वह दे देना.
कुछ ही क्षणों में मैंने गर्दन मोड़ कर देखा की माला अपने हाथ में मेरा तौलिया लिए दरवाज़े पर खड़ी मुझे नहाते हुए देख रही थी तथा उसने मैले कपड़े उसके कंधे पर रखे हुए थे. उसकी ओर देखते हुए मैंने मुड़ कर अपने शरीर की दिशा को उसकी तरफ कर दिया ताकि वह मेरे तने हुए लिंग को भी अच्छी तरह से देख ले. मेरे आठ इंच लम्बे तने हुए लिंग को एक बार फिर देख कर उसकी आँखें फट गई और वह अपने खुले मुंह पर हाथ रख कर वहाँ से हट गई.
मेरे नहाने के बाद जैसे ही माला ने शावर के बंद होने की आवाज़ सुनी तो वह मुझे तौलिया देने के लिए एक बार फिर बाथरूम के दरवाज़े मुस्कराते हुए खड़ी हो गई. माला की मुसकराहट का उत्तर मैंने भी मुस्करा कर दिया और उसके पास आ कर तौलिया लेकर अपने बदन को पौंछता रहा. जब माला वही खड़ी मुझे देखती रही तब मैंने पूछा- तौलिया तो दे दिया है अब क्या देख रही हो? क्या कुछ चाहिए है या फिर कुछ कहना है?
माला को शायद मुझसे ऐसे प्रश्न की आशा नहीं थी इसलिए शर्माते हुए मुड़ कर रसोई की ओर जाते हुए बोली- नहीं, मुझे अभी कुछ नहीं चाहिए. मैं तो यह कहने आई थी की नाश्ता तैयार है आप जल्दी से तैयार हो कर खाने की मेज़ पर आ जाइये.
मैंने तैयार हो चाय नाश्ता किया और ऑफिस चला गया तथा शाम छह बजे के बाद रोजाना की तरह घर वापिस आया तथा शाम की चाय पी और रात को खाना खाने के बाद सो गया. रात को लगभग तीन बजे दरवाज़ा खड़कने की आवाज़ से मेरी नींद खुल गई और जब मैंने उठ कर देखा तो पाया की रसोई की ओर वाली बालकनी का खुला दरवाज़ा हवा के तेज़ झोंके से खुल बंद रहा था.
मैंने उस दरवाज़े को चिटकनी लगा कर बंद किया और बाकी के दरवाज़े एवम् खिड़कियाँ देखते हुए जब स्टोर में पहुंचा तो देखा की माला सिर्फ ब्लाउज और पेटीकोट पहने हुए सीधा सो रही थी. माला के ब्लाउज के ऊपर वाले दो बटन ही सिर्फ बंद थे और सोते हुए ऊपर सरक जाने के कारण उसके दोनों उरोज उसमें से बाहर निकल गए थे. क्योंकि माला एक टाँग सीधी और दूसरी टाँग ऊँची कर के सो रही थी इसलिए उसका पेटीकोट उसके घुटनों के ऊपर हट कर उसकी कमर तक सरक गया था और उसकी योनि और जघन-स्थल का क्षेत्र बिल्कुल नग्न हो रहा था.
मैंने कमरे की लाईट जला कर उस कमरे की खुली खिड़की को बंद किया जिसका माला को कुछ पता नहीं चला और वह वैसे ही सोई रही. कमरे की लाईट की रोशनी में मुझे उसके जघन-स्थल के काले घने बालों के बीच में छुपी ही योनि और उसके गुलाबी होंठ दिखाई दिया. उस सुबह बाथरूम में घटित घटना और उस समय सोई हुई माला के खुले उरोज और योनि को देख कर मैं उत्तेजित होने लगा और मेरे लिंग ने अपना सिर उठा लिया. मैं काफी देर तक असमंजस की स्थिति में वहीं खड़ा उसको देखता रहा.
मैं कुछ देर तक असमंजस की स्थिति में वहीं खड़ा माला को देखता रहा. और फिर जब अपने पर नियंत्रण नहीं रख सका तब अपने एक हाथ से उस उरोजों को तथा दूसरे हाथ से योनि को सहलाने लगा. माला के उरोज पर हाथ रखते ही मैं दंग रह गया क्योंकि वह बहुत हो ठोस एवम् सख्त था लेकिन उनकी त्वचा बहुत ही मुलायम थी. उसके जघन-स्थल के बाल बिल्कुल रेशम की तरह मुलायम थे और उसकी योनि डबल रोटी जैसे फूली हुई थी तथा उसका भगांकुर एक मटर के दाने जितना मोटा था.
मेरे हाथों द्वारा माला के उन अंगों के छूते ही उसने आँखें खोल दी लेकिन बिना हिले डुले वह मेरी ओर बहुत कामुक दृष्टि से देखने लगी. मैं समझ गया कि वह भी वासना की आग में जल रही थी इसलिए मैंने झुक कर अपने होंठ माला के होंठों पर रख दिये और तेज़ी से उसके अंगों को मसलने लगा. माला ने मेरे होंठों का स्वागत उन पर अपने होंठों का दबाव डालते हुए किया और उन्हें चूसते हुए अपनी जीभ को मेरे मुंह डाल दी. कुछ देर तक होंठों एवम् जीभ के इस आदान प्रदान के बाद मैंने माला को अपनी बाजुओं में उठा कर अपने कमरे में ले जा कर बिस्तर पर लिटा कर पास में लेट गया.
मेरे लेटते ही माला तथा मैं एक दूसरे के होंठों को चूसने लगे और जैसे ही मैंने उसके उरोजों और भगांकुर को सहलाने लगा उसने भी मेरे लोअर के अंदर अपना हाथ डाल कर मेरे लिंग को सहलाने लगी. अगले दस मिनटों तक इस क्रिया के करते रहने से हम दोनों इतने उत्तेजित हो गए की माला के अंगूर जितने मोटे चूचुक बहुत सख्त हो गए और मेरे लिंग की नस फूलने लगी. तब मैंने माला की चूचुक को मुंह में ले कर चूसने लगा और अपने हाथ की बड़ी उँगली को उसकी योनि में डाल कर अंदर बाहर करने लगा. माला ने भी मेरे लिंग की त्वचा को पीछे सरका कर लिंग-मुंड को बाहर निकाल लिया और फिर उसके किनारों को अपनी उँगलियों एवम् अंगूठे से सहलाने लगी.
लगभग दस मिनट की इस क्रिया से दोनों ही अत्यंत उत्तेजित हो गए और मेरे लिंग में से पूर्व-रस की कुछ बूँदें निकल गई और माला की योनि में से भी रस का रिसाव होने लगा. उस हालत में जब मैंने माला की आंखों में आँखें डाल कर देखा तब उनकी मदहोशी ने मुझे संसर्ग शुरू करने के लिए प्रेरित कर दिया.
मैंने तुरंत उठ कर माला का ब्लाउज एवम् पेटीकोट उतार कर उसे नग्न किया और फिर अपनी टी-शर्ट एवम् लोअर उतार दिया. फिर मैं पीठ के बल बिस्तर पर लेट गया और माला को मेरे लिंग के ऊपर बैठने का इशारा किया. मेरा इशारा समझ कर माला मेरी कमर के दोनों ओर टांगें कर के नीचे हुई और मेरे लिंग को हाथ से पकड़ कर अपनी योनि के मुंह की सीध में कर के उस पर बैठ धीरे से दबाव दिया.
कुछ ही क्षणों में जब मेरे लिंग-मुंड ने माला की योनि में प्रवेश किया तब माला के चेहरे कुछ असुविधा एवम् कष्ट की रेखाएं दिखाई दीं और उसके मुंह से उम्म्ह… अहह… हय… याह… की सीत्कार निकली. उस सीत्कार को सुन कर मैंने पूछा- क्या हुआ? बहुत दर्द हुआ क्या? माला ने सिर हिलाते हुए कहा- हाँ, बहुत दर्द हुई है. पति के दुबई जाने के बाद पहली बार इसमें कोई लिंग प्रवेश कर रहा है इसलिए. मैंने कहा- थोड़ी देर ऐसे ही रुकी रहो और जब दर्द कम हो जाए तब आराम से धीरे धीरे अन्दर प्रवेश कराओ.
माला दो मिनट तक वैसे ही बैठी रही और फिर जब कुछ सहज हुई तब उसने एक बार फिर नीचे की ओर दबाव बनाया तो मेरा पूरा लिंग एक झटके से उसकी योनि में घुस गया. ऐसा होते ही माला जोर से ‘आह्ह.. मर गई’ की चीत्कार मारते हुए मेरे ऊपर लेट गई और मैंने देखा कि उसकी आँखों में आंसू निकल आये थे. मैंने उसे अपनी बाहुओं में ले कर उसके गालों और होंठों चूमते हुए पूछा- क्या हुआ? अपनी आँखों से निकले आंसुओं को पोंछती हुई माला बोली- आपका बहुत लम्बा और मोटा है. जब अकस्मात पूरा अंदर चला गया तो बहुत दर्द हुआ. मैंने पूछा- क्या मेरा लिंग तुम्हारे पति के लिंग से अधिक बड़ा है? उसने कहा- जी हाँ, आपका बहुत ज्यादा बड़ा है. उनका तो सिर्फ साढ़े चार इंच लम्बा और एक इंच मोटा है. वह तो सिर्फ गर्भाशय के मुंह तक ही जाता है उसके अंदर नहीं. आपका तो मेरे गर्भाशय के अंदर भी घुस गया है तभी तो बहुत ज्यादा दर्द हो रहा है.
उसके बाद माला अगले पाँच मिनट तक मेरे ऊपर लेटी रही और अपने ठोस एवम् सख्त उरोज और चूचुक मेरे सीने में चुभाती रही तथा मैं उसकी पीठ एवम् नितम्बों को सहलाता एवम् मसलता रहा. पाँच मिनट के बाद उसने मेरे ऊपर उठ कर बैठ कर अपने कूल्हों को हिलाया और जब मेरा लिंग उसकी योनि के अन्दर ठीक से सेट ही गया तब वह उचक उचक कर उसे योनि के अन्दर बाहर करने लगी. पाँच मिनट तक वह आहिस्ता आहिस्ता ऐसा करती रही और फिर उसके बाद वह बहुत तेज़ी से उछल उछल कर संसर्ग करने लगी.
माला को ऊपर बैठ कर संसर्ग करते हुए अभी दस मिनट ही हुए थे कि उसका शरीर अकड़ गया तथा उसकी योनि में बहुत तेज़ संकुचन हुआ और वह सीत्कार मारते हुए मेरे ऊपर लेट गई. पसीने से भीग रही माला हाँफते हुए बोली- बस, मैं थक गई हूँ और नहीं कर सकती. अब आप ही ऊपर आ जाइये.
उसकी बात सुन कर मैंने करवट ली और उसे अपने नीचे लिटा लिया और खुद ऊपर चढ़ कर संसर्ग करने लगा. क्योंकि माला की योनि ने अभी तक मेरे लिंग को जकड़ रखा था इसलिए मुझे उसे अन्दर बाहर करने में बहुत अधिक रगड़ लग रही थी. मैंने माला से कहा- तुम्हारी योनि बहुत कसी हुई है जिससे मुझे संसर्ग करने में काफी दिक्कत हो रही है. थोड़ा ढीली करो ताकि मैं अन्दर बाहर कर सकूं. मेरी बात सुन कर उसने कहा- मेरी कसी हुई नहीं है बल्कि आपका बहुत फूला हुआ है.
मैंने माला की बात सुन कर जब अपने लिंग को उसकी योनि में से थोड़ा निकाल कर देखा तो वह सचमुच में बहुत फूला हुआ दिखाई दिया. मैंने उसी हालत में संसर्ग शुरू किया और इस डर से की मेरा शीघ्रपतन न हो जाए मैं आठ-दस धक्के मारने के बाद रुक जाता. मेरे द्वारा पाँच-छह बार ऐसा करने पर माला ने जो की काफी देर से सिसकारियाँ ले रही थी एक जोर की सीत्कार मारी और उसकी योनि में से गर्म गर्म रस का रिसाव हो गया. उस रस स्त्राव से माला की योनि में बहुत चिकनापन हो गया जिससे मेरे लिंग पर कम रगड़ लगने लगी और मैं बहुत सहजता से तेज संसर्ग करने लगा.
अगले पन्द्रह मिनट तक मैंने बहुत तेज़ी से धक्के लगाते हुए संसर्ग किया और इस दौरान माला ने तीन बार बहुत जोर से सीत्कार ली तथा उसकी योनि में से रस का स्त्राव हुआ. इसके बाद मैंने अत्यंत तीव्रता से धक्के लगाये जिस कारण योनि लिंग के संसर्ग से निकली फच.. फच.. की आवाज़ पूरे कमरे में गूंजने लगी. माला उस आवाज़ को सुन कर अत्यंत उत्तेजित हो गई और अपने कूल्हे उठा उठा कर मेरे हर धक्के का उत्तर देते हुए मेरा साथ देने लगी.
पाँच मिनट की इस अत्यंत तीव्र क्रिया के बाद उसने मुझे बहुत ही जोर से अपनी बाजुओं में जकड़ लिया और अपने हाथों के नाखून मेरी पीठ में गाड़ दिए. मैंने उसके नाखूनों की चुभन को सहते हुए उसी तीव्रता से संसर्ग करता रहा और कुछ ही क्षणों में माला ने बहुत ही ऊँची आवाज़ में एक लम्बी चीत्कार मारते हुए मेरी कूल्हे एवम् कमर को अपनी टांगों से जकड़ लिया. उसी अत्यंत उत्तेजित स्थिति में माला की योनि में बहुत ज़बरदस्त सिकुड़न हुई और उसमें से निकलने वाले रस के लावा मेरे लिंग को गर्मी पहुँचाने लगा.
उस गर्मी के मिलते ही मेरे लिंग ने उस योनि रस के लावा को ठंडा करने के लिए वीर्य रस की बौछार कर दी. कुछ ही क्षणों में मेरे लिंग से वीर्य रस का इतना विसर्जन हुआ कि उससे माला की योनि पूरी भर गई तथा वह उमसे से रस बाहर निकल कर बहने लगा. पैंतीस-चालीस मिनट के इस घमासान संसर्ग में हम दोनों पसीने से भीग गए थे और हमारी सांसें फूल गई थी इसलिए अगले दस मिनट तक हम उसी तरह एक दूसरे से चिपक कर लेटे रहे.
इन दस मिनट में माला ने मुझे गालों एवम् होंठों पर लगभग कई बार चूमा और कहा- साहिब, आप में बहुत सहन-शक्ति है. मैंने अब तक के जीवन में पहली बार इतनी देर यौन संसर्ग किया और कई बार स्खलित भी हुई हूँ. मेरे पति तो तीन से पाँच मिनट में निपट जाते है. वह खुद तो स्खलित हो जाते थे लेकिन उन्होंने मुझे एक बार क्या, कभी भी स्खलित नहीं किया था. उसकी बात सुन कर मैं उसके ऊपर से उठते हुए बोला- तुम्हें तो बिल्कुल नया और बहुत अच्छा अनुभव मिला होगा. क्या तुम्हें आनन्द एवम् संतुष्टि मिली या नहीं?
माला भी उठते हुए बोली- हाँ, यह पहली बार है जो मुझे बहुत अच्छा एवम् एकदम नया अनुभव मिला है और साथ में आनन्द और संतुष्टि किसे कहते है यह भी पता चल गया है. लेकिन एक शिकायत यह है कि आपका लिंग बहुत लम्बा है और जब वह मेरी गर्भाशय की दीवार से टकराता है तो मेरे जिस्म में एक झुरझुरी सी उठती है जिससे पूरे शरीर हलचल मच जाती थी. क्योंकि ऐसा मुझे पहली बार महसूस हुआ है इसलिए मैं नहीं जानती कि उस झुरझुरी एवम् हलचल को क्या कहूँ आनन्द या संतुष्टि या फिर दोनों? मैंने चुटकी लेते हुए मुस्करा कर माला से कहा- ऐसा करो, इसके बारे में अम्मा जी से पूछ लो. माला मेरी बात सुन कर हंसते हुए बोली- धत, क्या कोई लड़की अपनी सास से ऐसी बातें पूछती है?
इसके बाद हम दोनों बाथरूम में घुस गए और अपने गुप्तांगों को साफ़ कर के फिर बिस्तर पर एक दूसरे से चिपक कर सो गए. कामवाली की चुदाई कहानी जारी रहेगी. [email protected]
कामवाली की मंझली बहू-2
This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: [email protected]. Starting price: $2,000